प्रेम उपदेश / (परम गुरु हुज़ूर महाराज)
44. किसी क़दर बेकली और घबराहट और बेचैनी और मन का किसी और काम में अच्छी तरह न लगना और बार बार सतगुरु के चरनों की चाह और दर्शनों की बिरह उठाना और उदासीन रहना, यह सब निशान सतगुरु राधास्वामी दयाल की मेहर और दया के हैं और इसी से ज़ाहिर होता है कि जिन लोगों की ऐसी हालत है, उनके काम को वे जल्दी से बना रहे हैं।
45. और जिनको अंतर में शांति और रस इस क़दर मिल जाता है कि जब चाहें जब थोड़ा बहुत चरन रस लेवें, उनकी हालत में इतना भेद होगा कि उनको बिरह और बेकली अंतरी होगी, पर हर वक़्त नहीं। जब जब मौज से थोड़ी भी होगी, वह बहुत काम थोड़ी देर में बना लेगी और मेहर और दया उस दर्जे के मुआफ़िक़ प्राप्त होती जावेगी।
46. और जिनको कि अभी खटक कम है और जब जब सतसंग में आवें, उस वक़्त बचन सुन कर और औरों की हालत देख कर खटक और बेकली पैदा हो जाती है या दुःख के वक़्त याद आ जाती है और कुछ देर ठहरती है और फिर हल्की हो जाती है या भूल जाती है, वह भी अच्छे हैं। आहिस्ता आहिस्ता उनका काम भी बन जावेगा और खटक रोज़ बरोज़ बढ़ती जावेगी। और मालूम होवे कि यही खटक और यही बिरह और यही बेकली और यही सोच और फ़िक्र और यही प्रीति जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है सतगुरु राधास्वामी दयाल की मेहर और दया की दात का निशान है। इसीसे उद्धार की सूरत रोज़ बरोज़ नज़र आवेगी। इसमें किसी तरह का संदेह नहीं है।
राधास्वामी
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