Thursday, December 10, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 10/12

 **राधास्वामी!! 10-12-2020-

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-

                                 

  (1) चेतो रे घर घाट सम्हारों।।टेक।। या देंही संग क्यों दुख सुहाना । निज सुख घर की ओर सगधारो ।।-(सुन सुन बतियाँ अलग अगम की। राधास्वामी चरण करो दीदारो।।) ( प्रेमबानी- भाग 4- शब्द- 3- पृष्ठ संख्या- 49)                                                        

 (2) साईं मोहि नाम लगा भल तेरग जिन मन बस कीन्हख मेरा।।टेक।।                                  

 (3) यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -कल से आगे।                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 10-12- 2020 -

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे :-(80 )

जो सिक्ख भाई राधास्वामी- मत की सतगुरु भक्ति संबंधी शिक्षा पर नाक भौं चढाते हैं क्या वे इस शब्द मैं गुरु अर्जुन साहब का अपने गुरु महाराज के देहरूप में प्रेम का वृतांत पढ़कर और उनके लिए "प्रभ अविनाशी" शब्दों का प्रयोग देखकर अपनी राय न बदलेंगे ?

पर जिनका हृदय भगवत्- प्रेम की चिंगारी से शून्य है वे क्यों टस से मस होने लगे। और सच पूछो तो वे मनुष्य कहलाने के अधिकारी नहीं है।   

                                                          

 दर्दे दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को। वरना ताअत के लिए कुछ कम न थे कर्रो बयाँ।                                                                ऐसे लोगों के बारे में कबीर साहब ने तो यहाँ तक फरमा दिया है कि :-                         

जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जान मसान। जैसे खाल लौहार की, स्वाँस लेत बिन प्रान। ऐसे मृतहृदय न भक्ति की कद्र कर सकते हैं न भक्ति -मार्ग की । कहने के लिए अपने को ज्ञानी या ज्ञान-मार्ग का अनुयायी प्रकट करते हैं किंतु वास्तव में वे मन-मत के अनुचर होते हैं और मन के कहने में चलने वालों के लिए न भक्ति हैं, न प्रमार्थ और न सच्चे मालिक का दर्शन।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻   

             

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

 -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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