Saturday, December 19, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 19/12

 **राधास्वामी!! 19-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                       

(1) मेरे प्यारे बहन और भाई। जरा सोचो समझो मन में। गुरु लो पहिचानी।।टेक।।-(दया करें गुरु सुरत चढावें। घट का भेद सबहि दरसावें। इक दिन राधास्वामी चरन समानी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-7-पृ.सं.58,59)                                                      

  (2) जो जबाँ यारी करे खुल कर सुना आज दिल कोई राग बज्में यार का।। नफ्स के फरमान जारी हो रहे खाक मल मल के है जामा धो रहे।। -(हरफो से हट के टिका कोइ बोल में राग और सुर के रहा वह तोल में ।।) (प्रेमबिलास -शब्द-110-पृ.सं.162,163)                                                

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!               

                                        

19- 12 -2020-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 90) :-                 

अब जबकि सिक्ख गुरु महाराज ब्रह्मज्ञानी को सब सृष्टि का कर्ता और अमर ठहराते हैं और समस्त जगत को ब्रह्मज्ञानी का स्वरूप मानते हैं और फरमाते हैं कि ब्रह्मज्ञानी स्वयं निरंकार है और ब्रह्मज्ञानी को महेश्वर तक खोजता है और ब्रह्मज्ञानी स्वयं परमेश्वर ही है तो क्या सिक्ख आक्षेपक सज्जनों को उचित नहीं है कि राधास्वामी- मत के विरुद्ध मुहँ खोलने से पहले यह तो विचार करलें कि उनकी इस कार्यशैली से स्वयं उनके परम पूज्य महापुरुषों के ग्रंथ का निरादर होता है। गुरु महाराज एक और जगह फरमाते हैं:- समुंद्र विरोल (मंथन करके) सरीर हम देख्या। इक वस्तु अनूप दिखाई।।                             गुरु गोविंद, गोविंद गुरु है। नानक भेद न भाई।।                                               

   पारब्रह्म परमेश्वर सतगुरु। सभना( सबका) करत उधारा।।                                        

कह नानक गुरु बिन नहीं तरिये। एह पूरन तत्त विचारा ।।                                         

 अब जबकि गुरु महाराज की राय में पूर्ण विचार के अनन्तर तत्तव यह निश्चित होता है कि सतगुरच परब्रह्म- परमेश्वर- स्वरूप है और सबका उद्धार करने वाले हैं और उनकी शरण के बिना कोई जीव भवसागर से पार नहीं जा सकता और गुरु महाराज ने शरीर रूपी समुद्र का मंथन करके यह रहस्य साक्षात किया कि गुरु गोविंद है और गोविंद गुरु है तथा गुरु और गोविंद में भेद नहीं होता तो क्या प्रत्येक व्यक्ति को उचित नहीं है कि गुरु महाराज के बचन ध्यान सहित और आदरपूर्वक सुने ? और यदि उनके बचन किसी व्यक्ति की समझ में नहीं आते तो क्या उसका कर्तव्य यह नहीं है कि किसी जानकार महापुरुष की सेवा में उपस्थित होकर समझने का प्रयत्न करें कि सिक्ख गुरुओं ने गुरु को गोविंद ,परब्रह्म ,परमेश्वर और निरंकार की पदवी किस कारण से दी है?                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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