Friday, December 11, 2020

दयालबाग़ सुबह-शाम 11/12

  **राधास्वामी!! 11-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                  

  (1) शब्द सँग बाँध सुरत का ठाट। बहे मत जग का चौडा फाट।। शब्द बिन हो गई बारहबाट। शब्द सँग जग से रही उचाट।।-(राधास्वामी कहते मार कुटाँट। शब्द ही खोलै घट की साँट।।) (सारबचन-शब्द-7वाँ-पृ.सं.220,221)                                  

  (2) भाव धर करत सुरत गुरु सेव।।टेक।। या जग में कोई मीत न साँचा। याते सरन गही गुरु देव।।-(राधास्वामी दयाल बचाय काल से। मोहि निरबल अपना कर लेव।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-24-पृ.सं.364)                                                 

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


 **राधास्वामी!! 11-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) जागो रे यहँ कब लग सोना।।टेक।।  चेत करो निज घर को खोजो। बिरथा वक्त यहाँ नहिं खोना।। -(पिंड अंड ब्रह्मंड के पारा। राधास्वामी धाम करो अब गौना।।)-- (प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.50)                                                          

 (2) स्वामी तुम अचरज खेल दिखाया।।टेक।। सुत तिरिया और नाती गोती बहुतक से मन लाया। आठ पहर निसदिन रहें घेरी हिरदे हित उमँगाया।।-(मेहर दया का धार भरोसा चरनन में चल आया। मेहर भरी दृष्टि इक लेकर दुख सब दूर बहाया।।)-(प्रेमबिलास- शब्द-107-पृ.सं.154-155)                                            

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।     

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!

                                    

   आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन -कल से आगे-( 81) प्रश्न- भगवद्गीता में सब यज्ञों से ज्ञानयज्ञ ही श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि अंततोगत्वा सब कर्म ज्ञान में समाप्त होते हैं अर्थात् सब कर्मों का परिणाम ज्ञान ही है।                            

  उत्तर- यहाँ ज्ञान से तात्पर्य मन- मत ज्ञान नहीं है।  गीता में जिस स्थान पर ज्ञान की श्रेष्ठता का वर्णन आया है वहाँ श्री कृष्ण जी ने यह भी फरमाया है- " लेकिन यह ज्ञान तुम्हें तत्वदर्शी ज्ञानी पुरुषों से प्राप्त हो सकता है और इसे प्राप्त करने के लिए तुम्हे उनके चरणों में गिरना, जिज्ञासा अर्थात् प्रश्नोत्तर करना और उनकी सेवा में लगना अनिवार्य होगा।( अध्याय चौथा, श्लोक 33 और 34) । 

प्रकट है कि जो लोग गुरु के नाम से घबराते हैं वे भला कब तत्वज्ञानी पुरुषों के चरणों में गिरे और कब उनकी सेवा में लगे और कब उन्होंने जिज्ञासा कर के तत्वज्ञान प्राप्त किया?  इसके अतिरिक्त भक्ति की श्रेष्ठता जानने के लिए गीता का 12वाँ अध्याय भी अवलोकन करें। फरमाया है- "जिनका मन मुझमें लगा है और जो अंतर में मेरे साथ जुड़े हैं और जिनके दिल में मेरे लिए परम श्रद्धा है वे मेरी राय में योग में सबसे बढ़कर है।  और जो निराकार में मन लगाते हैं उनको अधिक क्लेश झेलना पड़ता है। क्योंकि देहधारी के लिए निराकार की उपासना के मार्ग पर चलना कठिन है" ( श्लोक ३ और ४)

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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