राधास्वामी!! 30-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) नाम रस चखा गुरु सँग सार। काम रस छोडा देख असार।। नाम का परदा दिया उघाड। कहूँ मैं तुमसे कर अति प्यार।।-(सुरत अब पाया निज घरबार। मिले राधास्वामी पुरुष अपार।।) (सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.233)
(2) धार नर देह किया क्या आय।।टेक।। सत करतार का मरम न चीन्हा। मन माया सँग रहा लिपटाय।।-(राधास्वामी चरन सरन गह अबकी। जस तस अपना काज बनाय।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-13-पृ.सं.376,377)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
आज से हम परम गुरु हुजूर मेहता जी महाराज के बचन भाग 1- शुरू करने जा रहे हैं l हजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना है कि हम प्रयासरत है कि हमसे टाइपिंग करते समय कोई गलती न हो अनजाने में कोई गलती हो जाये तो उसके लिये वे दाता दयाल तुच्छ जीवों को क्षमा करें।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻🌹🌹
परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज]-
भाग 1- बचन नंबर 1:- 13 सितंबर 1937
परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज ने आज छात्रों के सत्संग में फरमाया- प्यारे बच्चों , मुझे खुशी है कि आज मुझे पहली बार आप सब विद्यार्थियों के साथ इकट्ठा बैठने का अवसर मिला है । आपको याद होगा कि हुजूर साहबजी महाराज ने 23 जून, 1937 को शाम के वक्त मद्रास में समुंदर के किनारे तशरीफ़ रखते हुए फरमाया था कि मैंने अपनी जिंदगी में अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को सरंजाम देने में कभी कोताही नहीं की। हजूर साहबजी महाराज के इस बचन से मालूम होता है कि उनकी मंशा यह थी कि राधास्वामी सत्संग सभा और सब सत्संगी यह याद रक्खें कि वे अपने कर्तव्यों को न भूलें और उनके पालन करने में पूरी तनदेही (तन मन ) के साथ अमल करें।
शायद आपको मालूम नहीं कि मैं अपनी पूज्य माता जी और उसके कुछ अर्से बाद अपने पिताजी के देहांत के समय मौजूद न था। इस वास्ते मैं खूब जानता हूँ कि बच्चों के लिए अपने माँ-बाप की जुदाई कितनी नागवार होती है और ऐसी हमेशा की जुदाई उनके नर्म और नाजुक दिलों पर गहरे असर छोड़ जाती हैं और उनको या तो बड़ी मायूसी (निराशता) की ओर ले जाती है यह बाज औकात (कभी-कभी) बड़े-बड़े काम करने के लिये उकसाती है।
हमारी मौजूदा हालत में भी हममें से अधिकतर भाई हमारे परम पिता हुजूर साहबजी महाराज के देहांत के वक्त मद्रास में मौजूद नहीं थे, इसलिये मैं महसूस करता हूँ कि उपरोक्त प्रकार के असरात( प्रभाव) हम सब सतसंगी भाइयों और बहिनों , छोटों और बड़ों , सबके दिल व दिमाग पर बड़े गहरे नक्श कर गये होंगे। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【शरण आश्रम का सपूत】
कल से आगे:-
शोभावंती- यह तुम्हारी गलती है। तुमने कोई बुरा काम नहीं किया। वह औरत तुमसे मोहब्बत करती है और उसकी आदतें तुम्हें पसंद है और उसने मुश्किल के वक्त तुम्हारी मदद की और अब तुम से शादी किया चाहती है इस गरज से तुम्हारे हमराह चली आई है , इसमें तुम्हारा क्या कसूर है। तुम जाओ, बेधड़क भाभी जी को ले आओ। मैं सब ठीक कर दूँगी।
( प्रेमबिहारी होटल जाता है। शोभावंती सेक्रेटरी साहब के पास जाती है)
शोभावंती- सेक्रेटरी साहब! प्रेमबिहारी आ गये हैं । सेक्रेटरी- हैं!- कब ? कहाँ है वह?
शोभभवंती- अभी आये हैं लेकिन एक काम से फिर बाहर चले गये हैं। कल जो उनकी शादी की निस्बत जिक्र था वह अपनी मर्जी की एक लड़की हमराह लाये हैं मगर बहुत कुछ घबराये हुए हैं कि यहाँ के लोग बुरा न मानें। उस लड़की ने उनकी बहुत मदद की है और वह बड़े अमीर घर की लड़की है और उपदेश लेने के लिए रजामंद है।
सेक्रेटरी- इसमें घबराने की क्या बात है ? प्रेमबिहारी के चाल चलन की निस्बत हरगिज कोई शुबह न करेगा। वह सतसंग का एक सपूत है। वह लड़की कहाँ है? शोभावंती एक होटल में छोड़ आये हैं- अब मेरे कहने से उसे लिवाने गये हैं । सेक्रेटरी- अगर आपकी राय हो तो आज शाम ही को उनकी शादी हो जाय ताकि प्रेमबिहारीलाल के दिल से परेशानी दूर हो- अगर कहो तो इजाजत हासिल कर लूँ? शोभावंती- इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है मगर पहले उपदेश हो जाय तो अच्छा है। सेक्रेटरी- बेहतर है।( शोभावंती चली जाती है)
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग-1-
कल से आगे :-
(4 )
सवाल:- मालिक जो रहीम और दयाल है तो ऐसी सख्ती और तकलीफ जैसे अकाल और मरी वगैरह जीवो पर क्यों रवा (जारी) होती है? जवाब:- सच्चा मालिक सदा दयाल है और तीन लोक की रचना की कार्रवाई सुपुर्द कालपुरुष यानी ब्रह्म के हैं। वह जैसी जिसकी करनी होती है, उसी मुआफिक उसके साथ बर्ताव करता है।।
जब जीव अधिकता से बिल्कुल संसारी भाव में बर्ताव करके और मालिक को भूल कर अपनी तमाम तवज्जह भोग बिलास और देह के पालन पोषण में खर्च करते हैं और इस सबब से नीचे की जोनों में कसरत से जीव उतरते जाते हैं, तब वह मालिक दया करके अकाल डालता है।
उस वक्त सब जीवों की हालत मय जानवरों के भूखे प्यासे और चिंता और दुःख में परेशान और व्याकुल होकर बदलती है, यानी जिस रीति से तन मन और इंद्रियाँ शिथिल और निर्बल होकर ऊपर की तरफ तवज्जह करें या उनका ऊपर की तरफ को खिंचाव होवे और थोड़ी बहुत सुरत की ताकत जागे, उस ढंग में यह सब जीव लाचार होकर आप ही बरतते है और इस तरह सब की सुरत यानी रूहो का घाट बदलता है यानी नीचे से ऊँचे को चढाई होती है। और सिलसिलेवार सब जीवों को इस तरह दर्जे बदर्जे फायदा पहुँचता है, यानी ज्यादा सुख का स्थान पाते है। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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