**राधास्वामी!! 13-12-2020-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) मेरे प्यारे बहन और भाई। तुम्हे लाथ न आई। क्यों नहिं मोहि सम्हारो।।टेक।।-(तुम सब करो मदद मेरी मिल कर। तब प्यारे राधास्वामी चरन निहारी। तन मन से होकर न्यारो।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1भाग ६)
(2) स्वामी तुम अचरज खेल दिखाया।।टेक।। मौसम पिछली आई लौट के चहुँ दिश खुश्का छाया। स्वर्गपुरी सम कुटुँब नया भी मृगतृष्णा दरसाया।।-(लिपट रहूँ चरनन में तुम्हरे राधास्वामी जिन सरनाया। तुम बिन मीत न देखा जग में आखूँ ढोल बजाया।।) (प्रेमबिलास-शब्द-107-पृ.सं.158,159)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
13- 12- 2020-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 84)
अब हुजूर स्वामीजी महाराज के एक शब्द की कुछ कड़ियाँ लिखकर उनके अर्थ उपस्थित किये जाते हैं जिससे भक्ति -मार्ग की शिक्षा की समानता का ठीक अनुमान किया जा सके।
【 सारबचन छंदबंद वचन 38】
●●अगहन मास●●
मन हुआ निर्मल चित्त हुआ निश्चल। काम क्रोध गये इंद्री निष्फल।।२।।
धरन छोड़ स्रुत चढी अकाशा। शब्द पाय आई महाकाशा।।३।। ★ ★ ★ ★
छोडा यह घर पकडा वह घर। खोया जग को पाया सतगुरु।।५।। ★ ★ ★ ★
कर सत्संग काज किया पूरा। पाप नसे मानो खाया धतूरा।।८।।
पाप पुन्न दोउ गये नसाई। भक्तिभाव जिव हृदय समाई।।९।।
अब यह सत्संग गुरु का पावे। हिलमिल चरन माहिं लिपटावे।।१०।।।
गुरुभक्ति जानो इश्क गुरु का। मन में धसा सुरत में पक्का।।१५।।
पक पक घट में गाडा थाना। थान गाड अब हुआ दीवाना ।।१६।।
गुरु का रूप लगे अस प्यारा । कामिन पति मीना जलधारा।।१७।।
सत्संग करना ऐसा चहिये। सत्सँग का फल येही सहि है ।।१८।। ★ ★ ★ ★
सत्संग महिमा अति भारी । पर कोई भी मिले अधिकारी।।२०।।
बाहर का संग जब अस होई। सतगुरु सम प्रीतम नहिं कोई।।२५।।
तब अंतर का सत्सँग थारे। सुरत चढे असमान पुकारे।।२६।।
अर्थ स्पष्ट है, वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है। फरमाया है कि सतगुरु के सत्संग में उपस्थित होने से प्रेमीजन का मन निर्मल और चित्त निश्चल हो गया और काम क्रोध आदि का मल एकदम दूर हो गया । सावधान होकर सत्संग में सम्मिलित रहकर प्रेमीजन ने अपने मन के अंतर में बसे हुए पापों को छिन्न-भिन्न कर दिया।
पाप पुण्य दोनों टुकड़े टुकड़े हो गये। और उसके हृदय में भक्ति-अंग का अविर्भाव हो गया। यह अंग जागने पर वो सत्संग से क्या लाभ उठाने लगा । सतगुरु के चरणों में उसका प्रेम बढ़ने लगा । सत्संग के बचन सुनकर और प्रसाद का उपयोग करके उसके हृदय में भक्ति का अंग प्रबल हो गया और उसके मन और सुरत दोनों भक्ति से सराबोर हो गये है।
जैसे स्त्री अपने पति से मिलकर सुखी और पृथक होने पर दुखी होती है, जैसे मछली जल से मिलने पर सुखी और पृथक होने पर तडपने लगती है, वह भी सतगुरु के चरणों में उपस्थित रहकर सुखी और चरणों से दूर होने पर व्याकुल होता है ।
फरमाया- यह है रीति सतसंग करने की और यह है वास्तविक फल सत्संग का। सतसंग की महिमा बड़ी भारी है किंतु अधिकारी पुरुष ही सत्संग से लाभ उठा सकता है। जब मनुष्य इस प्रकार सतगुरु के बाहरी संग से लाभ उठा ले अर्थात् उसकी सतगुरु के चरणो में अनन्यभक्ति दृढ हो जाय तब वह सतगुरु के अंतरी सतसंग का अधिकारी होता है, अर्थात तब उसमें योग्यता अंतरी चढाई और चेतन घाट के अनुभव प्राप्त करने के लिए आती है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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