**राधास्वामी!! 27-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) तुम अब ही गुरु से मिलो। जगत की लज्या तजो।।-(मेहर दया सतगुरु की लेकर। राधास्वामी चरनन जाय रजो।।)-(प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.64)
(2) कंठ करी कुछ साखियाँ पढे ज्ञान के ग्रंथ। जो इतने ज्ञानी बने सुगवा बडा महन्त।।-(तन सम मन में भेद हैं मोटा पतला होय। जैसा मन जाका रहे परगट दीसे सोय।।) (प्रेमबिलास-शब्द-113-ज्ञान-पृ.सं.169,170)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
27- 12- 2020 -
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-(100)-
अब विचार का विषय है कि क्या ऐसा पुरुष कल्याण के लिए तड़पते हुए जीवो के लिए ईश्वर ठहरा या कुछ और ? क्या मनुष्य अपने पाप कर्मों का मन और माया के रुकावटों पर अपने बल से विजय प्राप्त कर सकता है ? क्या ऐसे महापुरुष को, जिसकी वाणी में यह सकती हो कि प्रबल से प्रबल रुकावटों को आकाश में उड़ते हुए बादल के समान टुकड़े-टुकड़े कर दे, केवल अल्पज्ञ जीव कहा जायगा ? और क्या उसे साधारण मनुष्यों के समान हाड मास चाम के बंदीगृह में बंद और भूख प्यास और रोग आदि मानवी विकारो से व्याप्त समझा जायगा ? और यदि सर्वसाधारण के लिये अपने माता पिता और शिक्षक की सेवा करना धर्मानुकूल और उचित है और लकड़ी और धातु की मूर्तियों की पूजा ईश्वर की पूजा है तो ऐसे महान् आत्मा के चरणों में यथायोग्य आदर सत्कार के भाव रखना और उनकी सेवा शुश्रूषा करना तथा आज्ञाकारी होकर उनके आशीर्वाद प्राप्त करने की चेष्टा करना धर्म- विरुद्ध अथवा अनकेश्वरवाद या मनुष्य पूजा समझा जायगा ? आप से अधिक विचारशील तो इसाई भाई हैं जो हजरत मसीह के इस संबंध में दिये हुए आदेशों को बिना तर्क वितर्क के यथार्थ मानते हैं। हजरत मशीह अपने समय के पैगंबर थे, और उनकी भाषाशैली अत्यंत ओजस्विनी थी। योहन्ना की इन्जील के १४ वें में बाब में आप अपने शिष्यों को संतोषजनक उपदेश देते हुए फरमाते हैं:- " राह हक और जिंदगी मैं हूँ। कोई मेरे वसीले के बगैर बाप के पास नहीं आता (६)। अगर तुमने मुझे जाना होता तो मेरे बाप को भी जानते। अब उसे जानते हो और देख लिया है(७)। फिलिप्स ने उससे कहा ' ऐ खुदावन्द बाप को हमें दिखा, यही हमें काफी है' (८)। यसू ने उससे कहा- ऐ फिलिप्स! मैं इतनी मुद्दत से तुम्हारे साथ हूँ, क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा उसने बाप को देखा। तू क्योंकर कहता है कि बाप को हमें दिखा (९)। क्या तू यकीन नहीं करता कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें है। ये बातें मैं तुमसे कहता हूँ अपनी तरफ से नहीं कहता लेकिन बाप मुझमें रहकर अपने काम करता है(१०)। मेरा यकीन करो कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझमें है" (११)। इसके उउउअतिरिक्त इसी इंजील के दसवें बाब में लिखा है-" मेरी भेडें मेरी आवाज सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ और वह मेरे पीछे पीछे चलती है (२७)। और मैं उन्हें हमेशा की जिंदगी बख्शता हूँ और वह अबद तक कभी हलाक न होंगी और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा(२८)। मेरा बाप जिसने मुझे वह दी है सबसे बड़ा है और कोई उन्हें बाप के हाथ से नहीं छीन सकता(२९)। मैं और मेरा बाप एक है(३०)।
🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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