Thursday, December 24, 2020

दयालबाग़ सतसंग सुबह 25/12

 

 **राधास्वामी!! 25-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                 

 


 (1) नाम निर्णय करुँ भाई। 7 भेद बतलाई।। धुनी धुन भेद नहिं चीन्हा। सुरत और वब्द नहिं लीन्हा।।-( सुरत का जोघ लखवावें। जीव नहिं कहन उन मानें।।) (सारबचन-   शब्द-पहला-पृ.सं.229,230)                                                (2) सरन गुरु प्रानी क्यों नहिं ले।।टेक।। माया सँग रहा बहुत भुलाना। सतसँग में अब चित दे रे।।-(राधास्वामी मेहर से लें अपनाई। पार उतारें भौजल से।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-8-पृ.सं.373,374)                                        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- कल से आगे- रात के सत्संग में मशवरा दिया गया कि सत्संगी भाई अपनी सेहत का खास ध्यान रखा करें।  वैसे दयालबाग की आबोहवा दया से निहायत सुहावनी है और आमतौर निवासियों की सेहत बहुत अच्छी है। लेकिन बावजह ज्यादातर आबादी शायरियों की होने से लोगों के जिस्म जैसा कि चाहिए शक्तिशाली व मजबूत नहीं है । आखीर में कुछ हल्की वर्जिशे बतलाई गई जो हर शख्स बआसानी कर सकता है और जिन पर सिर्फ 15 मिनट खर्च होते हैं । लेकिन उनसे तमाम बदन खुल जाता है और दिन भर काम करने के लायक बन जाता है। यह दुरुस्त है कि 40, 50 बरस की उम्र को पहुंचकर सत्संगी अपनी ज्यादा से ज्यादा तवज्जह परमार्थ की जानिब देता है अपने जिस्म व दुनिया के सामान से लापरवाह हो जाता है लेकिन जो लोग सैर के आदी नहीं है और जिन्हें हाथ पाँव  चलाकर परिश्रम करने का मौका नहीं है, उनके लिए  निहायत जरूरी है कि थोड़ी सी वर्जिश करके अपनी कुवाए जिस्मानी को गतिमान कर ले।  इससे दो फायदे होंगे। अब्बल खुद उनके जिस्म सही रहेंगे दोयम उन्हें वर्जिश करते देखकर उनके बाल बच्चों को वर्जिश का शौक पैदा होगा । मर्दों व औरतों दोनों को उनको वर्जिश करनी चाहिये।।                              हिंदुस्तान की आंखें वाइट पेपर की जानिब लगी थी आखिर वह प्रकाशित हो गया है और हर तरफ चीख-पुकार हो रही है। सिवाय एंग्लो इंडियन भाइयों के हर वर्गों के लीडर असंतुष्ट हैं मगर लुत्फ यह है कि इस पर भी कंजरवेटिव मेंबर आफ पार्लियामेंट शिकायत करता है कि अहले हिन्द को जरूरत से ज्यादा अख्तियारात दे दिए गये हैं। दर असल हालत की है कि न अंग्रेजों को अहले ए हिंद का ऐतबार है और न अहले हिंद को अंग्रेजों का। दोनों तरफ से रस्साकशी हो रही है ।और दोनों ही परेशान हैं । अहले हिंद जो आमतौर जिस्म के कमजोर हैं कब तक रस्साकशी के झटका बर्दाश्त करेंगे ? राधास्वामी दयाल ऐसी दया फरमावें कि दोनों में भाईचारे का रिश्ता कायम हो। तभी दोनों के संकट दूर हो सकते हैं।  जब महात्मा गांधी यहाँ तशरीफ़ लाये थे तो यह जिक्र आ गया था कि हिंदुस्तान को कब तक स्वराज्य मिलेगा। दरियाफ्त किये जाने पर मैंने अर्ज किया कि 10 बरस तक कुछ न मिलेगा । मुझे बाद में अफसोस हुआ कि क्यों दिल तोड़ने वाले अल्फाज मुँह से निकाले और पिछली राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के प्रारम्भ में अफवाहे सुनकर नादानी पर और भी अफसोस हुआ । लेकिन वाइट पेपर के मुतअल्लिक लीडरों की राय पढकर मालूम हुआ कि वाकई अभी दिल्ली दूर है। रगड खाकर ही लोग गहरी नींद से जागृत होते हैं। अंग्रेज परमार्थ की तरफ से लापरवाह और अहले हिन्द परमार्थ व स्वार्थ दोनों की तरफ से । सरहीन मालिक दोनों को रगड देकर विदा किया चाहता है । दोनों के बेदार होने ही पर भाईचारा का रिश्ता  कायम होगा। और तभी दोनों मुल्कों को और भी कुल दुनिया को चैन मिलेगा।                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -【शरण आश्रम का सपूत 】कल से आगे- प्रेमबिहारी-( हैरान हो कर) ऐ मेरी मेहरबान! मेरी मुसीबत की मददगार ! यह क्या बातें जबान पर लाती हो ? काउन्टेस- जब मेरे पास इंग्लैंड में बहिन की भेजी हुई आपके कारनामों को चिट्ठी पहुँची, मुझे उम्मीद हुई कि अब मेरी तकलीफ का खात्मा होनेवाला है और खुशकिस्मती अपना रुख दिखलाने को है - लेकिन इन बातों के लिए आप की सी किस्मत दरकार है।  काश आप अपनी खुशकिस्मती में मुझे भी शरीक कर लेते!  प्रेमबिहारी - चे निस्बत खाक रा बा आलिमे पाक।  काउन्टेस साहिबा ! कहाँ  आप और कहाँ यह नाचीज़ । आपकी ही बदौलत मेरे दुख दर्द दूर हुए हैं और आज मैं इंसान कहलाने का मुस्तहक हुआ हूँ। आप मेरी  निस्बत ऐसा ख्यालात क्यों अपने पाक दिल में उठाती हैं?  काउन्टेस-इसलिये कि तुम कहते कुछ हो और करते कुछ हो। प्रेमबिहारी-( हैरान व शर्मिंदा होकर) मेरी मेहरबान! मैंने तो कभी ऐसी नाशायस्ता हरकत  नहीं की।  काउन्टेस मैं साबित कर दूँगी और तुमको तस्लीम करना होगा । अच्छा खैर यह बातें जाने दो।  प्रेमबिहारी- जब मैं इंग्लैंड के समुद्र के किनारे गम के समुन्दर में गर्क था उस वक्त आपने मुझे बचाया और आप की मेहरबानी से मैंने गोहरे मकसूद पाया । काउन्टेस तुमने या मैंने।  क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे - जो कोई कहे कि तीन गुण कैसे पैदा हुए तो जवाब यह है कि ऊपर से जो चैतन्य की धार आई और वह त्रिकुटी के स्थान पर माया से मिली तब तीन धारे हो गई, यानी चैतन्य की धार सतोगुण, चैतन्य और माया की मिलौनी की धार रजोगुण और माया की धार तमोगुण। और मालूम होवे कि तीनों धारों में इस मुकाम पर और उसके नीचे थोड़ी बहुत माया की मिलौनी है, लेकिन सतोगुण में चैतन्य मुख्य और रजोगुण में दोनो का बल बराबर है और तमोगुण में माया प्रधान है। जो जीव सतोगुणी हुए चक्र में पैदा हुए वह संतोषी और शीलवान और प्रमार्थी थे ,और जो रजोगुणी के चक्र में पैदा हुए वे भोग बिलास और जाहिरी नुमाइश और मान बढ़ाई के चाहने वाले और समझ बूझ और सफाई के साथ कार्रवाई करने वाले और ताकत वाले थोड़ा परमार्थी अंग लिये हुए थे, और जो तमोगुणी चक्र में पैदा हुए वे किसी कदर कम समझ और सुस्त और आलसी और लालची और परमार्थ की तरफ से बेखबर थे। और इनमे यह भी स्वभाव जोरदार रहा कि आप तो मेहनत और तवज्जुह और कार्यवाही कम करें और दूसरों की मेहनत और कोशिश से जो फायदा होवे उसमें शरीक होने को तैयार। इस सबब से इनकी तरफ से जुल्म व जबरदस्ती के काम जाहिर हुए और इनकी ऐसी हालत देख कर दूसरी तरफ से भी बदले की कार्रवाई होने लगी । इसी तरह रफ्ता रफ्ता दुनिया में सुकर्म और कुकर्म दोनों प्रकट हुए और उन्हीं के मुआफिक जीवों को फल मिलने लगा। और फिर ऐसे कर्मो का सिलसिला आइंदा के जन्मों में भी जारी हो गया। क्रमशः                                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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