Tuesday, December 8, 2020

रोजाना वाक्यात/08/12

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात -15 मार्च 1933 -बुधवार :-


 देहली और पूना की नुमाइशों से खबरें आई कि बिक्री बहुत कम है । लोग बेचारे कहाँ से रुपया लावें? इधर अपने पास धन की कमी उधर जापान के घटिया लेकिन कम कीमत माल की भरमार । हिंदुस्तान सचमुच चक्की के दो पाटों में आ गया है।।                                                                                  "न पाये रफतन - न जाये मांदन"!                                               (न चलने के लिए पांँ( शक्ति) - न रहने के लिए स्थान)                                                            मेहता ऊधो दास साहब पंजाब से वापस आये हैं ।आप को मिस्टर कृष्णमूर्ति से मुलाकात का नीज ब्यास सत्संग देखने का मौका मिला।  आपकी राय है कि दयालबाग व ब्यास के मेल से जनसाधारण को बहुत फायदा हुआ। मेरी भी यही राय है। मिस्टर कृष्णमूर्ति के लेक्चरों के बारे में कोई राय कायम नहीं कर सका।  न मालूम अखबारों की रिपोर्ट ठीक-ठाक रिपोर्ट करते हैं या नहीं। जब तक किसी शख्स के दिल का हाल मालूम न हो जाये उसके संबंध में सुनी सुनाई बातों से प्रभावित होकर राय कायम करना नामुनासिब है। प्रकट रूप से उनका नौजवान को उपदेश कि न किसी मजहब में अटको न किसी सोसाइटी के नियमों में, और अपने लिए खुद जांच करो, अनुचित है। जब तक किसी शख्स को नेक व बद और नफा नुकसान की काफी तमीज न आ जावे उसके लिए हिफिजत व मार्गदर्शन की जरूरत है। उनसे किसी ने पूछा कि मौत का डर कैसे दिल से दूर हो?  कहते हैं जवाब मिला- "जिंदगी का अध्ययन करने से"।  मैं अर्ज करूंगा "मौत का अध्ययन करने से"।  मगर अपनी राय है। ऐसे ही उन्होंने फरमाया लोग जो नहीं है वह बनना चाहते हैं यह मुनासिब है मेरी राय है  यह निहायत मुनासिब है अलबत्ता अपने तई बढ़ाकर दिखलाना बुरी बात है ।                                                      🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 शरण आश्रम का सपूत 】कल से आगे:- डायरेक्टर- सोभावन्ती! तुम क्या कहती हो?   शोभावन्ती- मालिक को मालिक मानकर इस किस्म का सवाल पैदा ही क्योंकर हो सकता है? एक शक्ल को गोल मानकर उसके मुतअल्लिक जावियों का सवाल करने की इजाजत ही नहीं हो सकती।  डायरेक्टर -अच्छा! यह बतलाओ- अगर आश्रम में एक हजार यतीम आ जायँ तो खर्च कैसे चलेगा? एक लड़की- इतने बच्चे एक दम कैसे आ सकते हैं। अव्वल सबकी दरख्वास्ते ही तो आये़ंगी -मुन्तिजमान के पास जितने बच्चों के लिए गुंजायश होगी उतनी ही दरख्वास्तें मंजूर करेंगे।।                                           दूसरी लड़की- अगर एक हजार बच्चे मालिक भेजेगा तो उनके गुजारे के लिए बंदोबस्त भी करेगा। हिंदुस्तान में 31 करोड़ आदमी बसते हैं -जो मालिक 31 करोड़ मनुष्यों का पालन कर सकता है उसके लिये एक हजार का बंदोबस्त करना कठिन है। मेम०- अगर मालिक ने उनके लिए बन्दोबस्त करना होता तो उनको यतीम ही क्यों बनाता?  लड़की - यतीम बनाने का तो सिर्फ इसी कदर मकसद मालूम होता है कि उनका पालन उनके माँ-बाप के हाथों न हो और अगर मालिक को यह मंजूर होता कि उनका पालन कोई भी न करें तो उनके पालन के लिए दूसरों के दिलों में तरस क्यों होता नीज उनके पैदा करने से मतलब ही क्या था? मेम०-यह था कि उन बच्चों को तरसा और तड़पा कर मारा जाय।  शोभावन्ती- अगर मालिक की मर्जी किसी बच्चे को तरसा और तड़पा कर मारने की है तो वह शरण आश्रम में क्यों आवेगा। उनको मालिक ऐसे लोगों के सुपुर्द न करेगा जो बच्चों को तड़पाने व तरसाने में उस्ताद है? क्रमशः                                                 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे -(19) जिस अभ्यासी की ऐसी हालत होती है कि कभी शब्द प्रगट होता है और कुछ दिन पीछे गुप्त हो जाता है और फिर थोड़े दिन पीछे सुनाई देने लगता है, तो यह कसर उसके पिछले साल के कर्मों और ख्यालों की है, या यह कि अभ्यासी दस्तूर के मुआफिक रोजमर्रा अभ्यास नहीं करता है यानी कभी-कभी छोड़ देता है।।                            इसका इलाज यह है कि अभ्यासी अपने (१) ब्यौहार, और (२) खानपान, और (३) अपने मन और इंद्रियों की चाल ढाल, और (४) अपनी समझ और ख्याल, और (५) अपनी प्रीति और प्रतीति को गौर करके देखें और जाँच करें कि उसमें किस कदर कमी है, और (६) अपने संग कुसंग की भी एहतियात करें, क्योंकि संसारी और निंदको के संग से अभ्यास में विघ्न पड़ता है। और जो इन बातों में कसर और नुक्स नजर आवे तो उसको प्रेमी अभ्यासियों का सत्संग करके या बानी का गौर से पाठ करके दूर करें और आइंदा को अपने ब्यौहार और बरताव और खान पान और चाल ढाल और ख्यालों को सँभाले राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रीति और प्रीतीति को बढ़ावे और संशय और भरम को जिस कदर जल्दी बने अपने मन से निकाल देवे। और कुछ वक्त अभ्यास का भी बढावे, और जो भजन में रस न आवे तो ध्यान ज्यादा करें और ध्यान में भी रस न आवे तो नाम का सुमिरन धुन के साथ करें। तब आहिस्ता आहिस्ता यह विघ्न हट जावजगा और फिर बराबर भजन में शब्द सुनाई देने लगेगा और ध्यान में भी थोड़ा बहुत रस आवेगा। क्रमशः                                                🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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