Tuesday, December 29, 2020

सतसंग शाम DB 29/12

 **राधास्वामी!! 29-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) तुम अब ही गुरु सँग रलो। हिये में प्रेम भरो।।-(राधास्वामी मेहर से पार लगावें। अस भौसागर सहज तरो।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-7-पृ.सं.65)                                             

  (2) हे दयाल सद कृपाल हम जीवन आधारे। सप्रेम प्रीति और भक्ति रीति बन्दे चरन तुम्हारे।। दीन अजान इक चहें दान दीजे दया बिचारे। कृपख दृष्टि निज मेहर बृष्टि सब पर करो पियारे।। (प्रेमबिलास-भाड-4- शब्द-114-पृ.सं.171)                                                                             

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                                

   सतसंग के बाद स्पेशल सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                     

 (1) चली सुरत अब गगन चली री। मिली जाय अब पिया से अली री।।                                              

(2) कोइ कदर न जाने सतगुरु परम दयाल री।।

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!                                            

 29- 12 -2020

आज शाम सत्संग में पढा गया बचन

- कल से आगे:-                                                       ( 105)-

महाराष्ट्र देश में समर्थ रामदास एक प्रसिद्ध तपस्वी हुए हैं।  शिवा जी आपके गुरुमुख शिष्य थे। उन्हीं की आज्ञा से शिवा जी ने मुगल साम्राज्य के विरुद्ध युद्ध आरंभ किया था।

बहुत से हिंदू उन्हे हनुमान जी का अवतार मानते हैं। जो हो, यह भक्ति-मार्ग के एक प्रसिद्ध प्रचालक थे।  लोकमान्य तिलक की भागवद्गीता के हिंदी अनुवाद की भूमिका में उनके बहुत से बचन साक्षीरूप से उपस्थित किये गये हैं।

 इस समय संयोगवश उनकी एक प्रमाणिक पुस्तक 'दासबोध' हाथ में आ गई है । उसमें स्थान स्थान पर गुरु और ब्राह्म की एकता के संबंध में बचन लिखें हैं। उदाहरणार्थ तीन मरहठी प्रश्नों का हिंदी अनुवाद नीचे लिखा जाता है:-

                                              

 (१) जीव बेचारा जो एकदेशी है उसे जो साक्षात ब्रह्म ही बना देता है और जो उपदेशमात्र से संसार के सारे संकट दूर करता है वह सतगुरु है"( दशक ५ समास २ , पृष्ठ १०६)                                                              

(२)" शास्त्र में परमात्मा और सतगुरु दोनों बराबर कहे गये हैं। अतएव परमात्मा की तरह सतगुरु से भी मित्रता करनी चाहिए"( दशक ४, समास, ८,पृष्ठ ९८)   

                                           

 (३) " मोक्ष की इच्छा रखकर तन मन और बचन से सतगुरु के चरणों की सेवा करना ही पाद- सेवन भक्ति है । जन्म मरण की यातनाएँ दूर करने के हेतु सद्गुरु के चरणो में अननन्यता रखने का ही नाम पाद-सेवन है। सतगुरुकृपा के बिना इस संसार में पार होने के लिये कोई उपाय नही है। इस कारण प्रेमपूर्वक सतगुरुचरणों की सेवा करनी चाहिए"( दशक ४, समास ४, पृष्ठ ८६)                              

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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