Tuesday, December 15, 2020

दयालबाग़ सतसंग 15/12

राधास्वामी !! 15-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                           

 (1) धुन सुन कर मन समझाई।।टेक।। बुद्धि चतुरता काम न आवे। आलिम रहे पछताई।।-(बुलहवसी और कपटी जन को। नेक न धुन पतियाई।।) (सारबचन-शब्द-9वाँ-पृ.सं.223,224)                                  

(2) आज बरसत रिमझिम मेघा कारे।।टेक।। कोयल मोर बोल रहे बन में। पपिहा टेरत पिउ पिउ प्यारे।।-(संत रुप धर राधास्वामी प्यारे। आन मिले मोहि लीन मिला रे।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-28-पृ.सं.367,368)                                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 15-12-2020-

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-   

                                   

(1) मेरे प्यारे बहन और भाई। या जग बिच घोर अँधेरा। तन में भी तम रहा छाई।।टेक।। -(चलो री सखी अब देर न कीजे। गुरु सतसंग में तन मन दीजे। धार हिये राधास्वामी सरनाई।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-3-पृ.सं.54,55)                                                                      

(2) संत बिन सब जिव आत्मघाती।।टेक।। कोइ कोइ माया धर धर जोडी हो गये लाख करोडी। जब जम आकर गर्दन तोडी कौडिक काम न आती।।-(आतमतत्त की सुद्धि भुलाना तन मन साँचे माना।  नीच ऊँच पडे जोनी जाना सहन पडे उत्पाती।।) (प्रेमबिलास-शब्द-108-पृ.सं.159,160)                                                    

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।        

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!! 15-12- 2020

- आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन

-कल से आगे-( 86)

राधास्वामी दयाल के उपरोक्त बचन को पढ़कर प्रत्येक व्यक्ति, जिसका हृदय पक्षपात के मल से रहित है और जिसमें मालिक के प्रेम की चिंगारी विद्यमान है, सहज में समझ जायगा कि राधास्वामी- मत निर्मल और विशुद्ध आध्यात्मिक भक्ति का मार्ग से खिलाता है , और  जीव को सच्चे मालिक के चरणो में अनुराग उत्पन्न कराके सहज में जगत के बंधनों से मुक्ति दिलाता है।

परंतु जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है प्रत्येक व्यक्ति इस उपदेश का सम्मान नहीं कर सकता। नरक का कीडा नरक ही में रहकर और नरक ही की बातें सुनकर प्रसन्न होता है। इतना और निवेदन कर देना अनुचित न होगा कि अनन्यभक्ति का उपदेश केवल हिंदू -समाज के महापुरुषों तक सीमित नहीं है।

  सूफी महात्माओं ने भी इश्केहकीकी अर्थात भगवतभक्ति पर जोर दिया है और फरमाया है:- मजहब ए इश्क अज हमा दींहा जुदास्त। आशिकाँ रा मजहबो मिल्लत  खुदास्त।।   अर्थ- भगवद्भक्ति का मार्ग दूसरे सब मतों से न्यारा है। भक्तों का मार्ग खुदा ही है।।                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

यथार्थ प्रकाश-भाग-दूसरा -

कल से आगे।**

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