**राधास्वामी!! 25-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) तुम अब ही मन को माँजो। बहुर क्या काज सरे।।-(तब मन निश्चल चित होय निर्मल। राधास्वामी ध्यान धरे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-3-पृ.सं.63)
(2) जा मंदिर में दासता नहीं दीप उजियास। प्रेम भक्ति और सील का तहाँ न जानो बास।।-(धनबस परबस दासता करे सभी जग आय। दास सोई जन जानिये जाका दास सुभाय।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-112-दोहे.दासता-पृ.सं.168,169)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
25-12 -2020 आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे (98 )-
कुछ काल हुआ गुरुकुल- विश्वविद्यालय, कांगड़ी के मुख्यअधिष्ठाता महाशय की ओर से 'ब्राह्मण की गौ' नाम की एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी । उस पुस्तक के पृष्ठ ६३ पर वाणी की शक्ति का वर्णन करते हुए सुयोग्य लेखक ने पतंजलि महाराज का पूर्वोक्त सूत्र उद्धृत करते हुए निम्नांकित वाक्य लिखे हैं:- "वाणी की असली शक्ति को पतांजलि मुनि जानते थे जिन्होंने कहा है- सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम्। और व्यास मुनि जानते थे जिन्होंने इस योगसूत्र का अर्थ करते हुए कहा है कि जो मनुष्य अपने में सत्य को प्रतिष्ठित करता है उसकी वाणी में यह सामर्थ्य आजाता है कि वह जो कुछ कहता है वह पूरा हो जाता है।
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धार्मिको भूया इति भवति धार्मिक:,स्वर्गं प्राप्नोति, अमोघास्सय वाग्मवतीति'।। अर्थात ऐसा आदमी यदि किसी को कहता है कि 'तू धार्मिक हो जा' तो यह क्रिया हो जाती है। वह मनुष्य सचमुच धार्मिक हो जाता है। वह यदि किसी को कहता है - 'स्वर्ग को प्राप्त हो जा' तो यह फल उसे मिल जाता है। वह स्वर्ग को प्राप्त हो जाता है। मतलब यह है कि ( अमोघास्सय वाग्भवति) उसकी वाणी आमोघ(अटल) हो जाती है ।
वह कुछ कहें और वह पूरा न हो यह हो नहीं हो सकता (यहाँ सारबचनकी इस कड़ी का अर्थ भी समझ लें- " संत मौज फिर कोई न टारे। ईश्वर परमेश्वर सब हारे"। संतों की मौज भी अमोघ हो सकती है। " ईश्वर परमेश्वर सब हारे" ये सब उनकी मौज अर्थात सत्यमय वाणी की अटलता प्रकट रूप से मदद में लाने के लिए प्रयुक्त हुए हैं। सत्यमय वाणी की इतनी शक्ति है । जरा पाठक इसे सोचें विचारें, इसे हृदय में सँभाले"।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी
महाराज!**
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