Thursday, December 17, 2020

हनुमान जी का कर्जा 😗

 *हनुमान जी का कर्जा 😗

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रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। 

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तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,

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अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से !

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अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।

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माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, 

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वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका ले के गए, और धीरज बंधवाया कि...!


*कछुक दिवस जननी धरु धीरा।*

*कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।*


*निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।*

*तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥*

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मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।

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अब बारी आयी लखनजी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।


*प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।*

*आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।*

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ये तो जो खड़ा है, वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं !

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अब बारी आयी भरतजी की, अरे ! भरतजी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझपे, हनुमानजी का सब मिलके और लगवा दो !

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और दूसरी बात ये कि...!


*बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।* 

*अधम कवन जग मोहि समाना॥*

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मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!

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*रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।*

*सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥*

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मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।

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अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुहन भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुहन भैया बोल पड़े.. 

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मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकलने के लिए, 

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जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो ! किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।

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अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार... 

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माता सीता ने कहा प्रभु ! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है। और आप खुद भी कहते हो कि...!

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*प्रति उपकार करौं का तोरा।*

*सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥*

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आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु ! 

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राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..

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*सनमुख होइ न सकत मन मोरा*

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देवी ! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। 

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क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो हनुमानजी का कर्जा कैसे उतारा जा सकता है।

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पहले हनुमान विवाह करें,

लंकेश हरें इनकी जब नारी।

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मुदरी लै रघुनाथ चलै,

निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।

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अायि कहें, सुधि सोच हरें, 

तन से, मन से होई जाएं उपकारी।

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तब रघुनाथ चुकायि सकें, 

ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।

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देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!

"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"

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मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।

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दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।

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राघवजी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। 

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विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?

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हनुमानजी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!

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तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना

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तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?

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सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। 

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रामजी ने कहा ! ठीक है, मांग लो, 

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सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।

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हनुमानजी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, 

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तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए ?

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हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।

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हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।

नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।


*जय श्री राम*🌹🙏🏻

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