Sunday, December 27, 2020

दयालबाग़ सतसंग सुबह 28/12

 **राधास्वामी!! 28-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     

(1) नाम रस चखा गुरु सँग सार। काम रस छोडा देख असार।। नाम धुन सुनी सुन्न दस द्वार। नाम पद मिला महासुन पार।।-(करो अब सतसंग जग को जार। होय घट भीतर नाम उजार।। (सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.232)                                                         

 (2) चरन गुरु मनुआँ हो जावो दीन।।टेक।। भोगन में क्यों उमर गँवाता। बल पौरुष नित होते छीन।।-(शब्द भेद दे अधर चढावें। राधास्वामी चरनन जाय बसीन।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-11-पृ.सं.373)                                       

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर महाराज-

 प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-

 जो वे भी होशियारी और एहतियात के साथ प्रेमीजन के मुआफिक उन भोगों को सच्चे मालिक और उसके भक्तों को अर्पण करके और प्रसादी करा के आपस में बाँटकर भोगते हैं, तो बजाय दूरी और दुःख के, मालिक के नजदीकी और विशेष दया हासिल करके, महासुख को प्राप्त होते हैं।                                                  

 जाहिर है कि कुल भोग मन और इंद्रियों के जड़ है और जिस किसी का उनमें मोह और वासना रही, वह दिन दिन उनके संग से मनुष्य की निस्बत कम चैतन्य और ज्यादा कम चैतन्य और बहुत ही ज्यादा कम चैतन्य  जोनों में उतर जावेगा।  इस सबब से भोगी और रागी जीव अपनी नादानी और मन हठ करके आपही अपना नुकसान करते हैं।

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 शरण आश्रम का सपूत】

कल से आगे:-         

  [ छटा दृश्य]-( वक्त सुबह- शरण आश्रम के चबूतरे पर शोभावंती एक बच्चे को खिलाती है और गाती है)                                                    

 ●● गाना ●●                                             

 यह बालक दीन बेचारा है, मुझे लागे अधिक पियारा है।                                               

  बिन सतगुरु कौन सहारा है, वह मात-पिता है सबके जी।

 वह मात-पिता.....                     

   मैं हरविधि इसे संभालूँगी, हित चित से देखूँ भालूँगी। गुरुआज्ञा निस दिन पालूँगी। वह मात पिता है सबके जी। वह मात पिता..... 

 मेरे भाई प्रेमबिहारी हैं, वचनों के सच्चे भारी हैंl

 सतगुरु के आज्ञाकारी है , वह मात पिता है सबके जी। वह मात पिता......                                             

अब काम सीख कर आवेंगे, सत्संग की शान बढ़ावेंगे। मेरे सतगुरु आज मिलावेंगे, वह मात पिता है सबके जी । वह मात पिता.....

( प्रेम बिहारी दाखिल होता है)             

               

शोभभवन्ती- आइये भाई साहब! राधास्वामी- आइये।

( दोनों गले से मिलते हैं)

मैं अभी दिन गिन रही थी- तुम्हें यूरोप गये आज 5 दिन कम 3 वर्ष हुए हैं। 

प्रेमबिहारी- शुक्र है कि मैं वादे के अंदर आ गया। यह नन्हा बच्चा किसका है? 

शोभावंती- हमारे जैसा ही मुसीबतजदा है। अभी दो दिन हुए आश्रम में आया हैं। तीन वर्ष की उम्र है कि माँ-बाप दोनों मर गये।                                      

प्रेमबिहारी-देखना प्यार से रखना- हमारे वादों में फर्क न आवे।

  शोभावंती- में अभी एक गीत गा रही थी- अगर आप ने सुना होता तो मेरे दिल का हाल आज ही मालूम हो जाता। कहो- अच्छी तरह तो आये। आप के तार में लिखा था कि मालिक की दया से सब काम दुरुस्ती से अंजाम पा गया है।  एक लाख की मशीनरी और अनार्किस्ट के पकड़ने का इनाम - दयालबाग भर में इसकी धूम मच रही है । आज शाम को तुम्हारे स्वागत के लिए जल्सा- होगा सब भाई और बहनें जमा होंगी - वह देखो शामियाना इसीलिये लगा है।

 क्रमशः                 

                   

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -रोजाना वाकिआत-1 अप्रैल 1933- शनिवार :-   

   आज साल समाप्त हो गया । सुबह का कुल वक्त आइंदा साल के बजट की जांच में सर्फ हुआ।  शुक्र है दया से सब कामों के लिए धनराशियाँ मुहैया हो गई ।और गत वर्ष के पिछले कुछ माह में उम्मीद व अनुमान से ज्यादा आमदनी हो जाने से कोई कर्जा नहीं लेना पड़ा हालाँकि बजट में 20 हजाल कर्जे के लिए इंतजाम किया गया था।।                         

 पैम्फलेट का नया एडिशन आज मेंबरान सभा के भेंट किया गया। छपाई काबिले तारीफ है । प्रेमी भाई हर नारायण साहब बी० ए०  एल ० एल० बी हजारों रुपए साल के आमदनी छोड़कर बिना प्रतिपल (क्षतिपूर्ति) प्रेस की मजदूरी करते हैं। और काम ऐसा सुंदर करते हैं कि अंग्रेजी छापेखाने भी उसे देखकर चकित हो जायें। सेवा करना इसी को कहते हैं । प्रेमी भाई हरनारायण जिंदाबाद ।     

                             

 रात के सत्संग में एक भाई ने सवाल किया जबकि यह बयान किया जाता है कि मालिक एक सादा हरकत है फफिर यह कैसे माना जावेगा कि माजिद अडिग व अडोल है। जवाब दिया गया कि स्थूल देश में हरकत करने वाले वस्तु व हरकत पृथक बातें हैं। और हरकत किसी वस्तु की जगह  परिवर्तन करने को कहते हैं लेकिन निर्मल चेतन या अवस्था में सिवाय चेतन शक्ति के और कुछ नहीं है। वहाँ सिर्फ प्रेम रूपी हरकत है और वे हरकत शक्ति के केंद्र से शक्ति की धार के जारी होने की है। शक्ति का केन्द् स्थान परिवर्तन नहीं करता। वह बदस्तूर अडिग व अडोल कायम है। उससे शक्ति की धार प्रकट होती है। यही  धार उनकी हरकत है।।                                                    

 शाम के वक्त एक कंपनी के एजेंट हम्बर कार बेचने के लिए आये। मुझे ताज्जुब हुआ कि एजेन्ट साहब को दयालबाग की सब मोटरकारों का खानदानी हालत बखूबी मालूम है। मैंने कहा आज ही बजट बना है आराम के सामान पर खर्च करने के लिए इस वर्ष एक पाई भी नहीं है।  आपने जवाब दिया आइंदा साल कीमत अदा कर देना। मैंने कहा कर्जे की मोटर कार की सवारी से पैदल चलना अच्छा। इतने में एक और कंपनी के ऐजेंट तशरीफ लाये। आप की फर्म कोलकाता में बल्ब यानी बिजली के लैंप बनाती है।  आप चाहते हैं की सभा उस कंपनी के कुछ हिस्से खरीदें। जवाब दिया गया कि सभा अपना रुपया दयालबाग ही में खर्च करना पसंद करती है।  एजेंट साहब ने कहा तो फिर दयालबाग की में शाख जारी कर दी जावे।  जवाब दिया गया अगर कोई ऐसी तजवीज निकल आवे तो जरूर सभा गौर कर सकती है।                                

 बाहर लोगों लोगों को शुबह हो रहा है कि दयालबाग में बहुत रुपया है इसलिए लोग बड़ी बड़ी उम्मीदें लेकर आते हैं लेकिन हकीकत परिचित होने पर मुरझाए दिल लौटते है। मोटर कार के ऐजेंट साहब ने बहुत जोर दिया कि एक मर्तबा हंबर कार की सवारी करके तो देख लो। 

मैंने यही जवाब दिया -जब हम्बर कार से ताल्लुक ही पैदा करना मंजूर नहीं है तो सवारी के लिए दिल नहीं उमंगता। उन्होंने कहा मैं दिल्ली से कार आपकी सवारी के लिये  लाया हूँ जरा इस बात का तो ख्याल फरमा लिया जाये। मैंने कहा इस इनायत के लिए शुक्रिया सौ बार शुक्रिया। लेकिन जब सौदा करने की सलाह नहीं है तो सवारी करने सवारी का लालच फिजूल है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


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