**राधास्वामी!! 27-12-2020- (रविवार) आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) नाम रस चखा गुरु सँग सार। काम रस छोडा देख असार।।-(नाम धन पाया गगन निहार। मगन होय बैठी तज अहंकार।।) (सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.231,232)
(2) दरस गुरु निस दिन करना सही।।टेक।।
जो तन से गुरु संग न पावे। ध्यान धार चित चरन पई।।-(राधास्वामी परम गुरु सुखदाता। निज चरनन की सरन दई।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-10-पृ.सं.375) सतसंग के बाद विद्यार्थियों व बच्चो के पाठ:- (1) धन्य धन्य सखी भाग हमारे धन्य गुरु का संग री।।-(प्रेमबिलास-शब्द-126-पृ.सं.185) (2) सतगुरु प्यारी चरन अधारी। खुन २ करती आई हो।।(प्रेमबानी-4-शब्द-16-पृ.सं.102)
(3) राधास्वामी दया प्रेम घट आया। बंधन छूटे भर्म गँवाया।।(सारबचन-शब्द-सोलहवाँ-पृ.सं.145)
(4) सुन सुन रह्या न जाय महिमा सतगुरु की।।(प्रेमबिलास-शब्द-117-पृ.सं.174) (5) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-रोजाना वाकिआत- 31 मार्च 1933- शुक्रवार :-
मालूम हुआ कि दयालबाग में चंद ऐसे आदमी है जो बाल बच्चों वाले या बूढे हैं। और आमदनी कम होने से डेरी का दूध नहीं खरीद सकते। चुनाँचे आज फेहरिस्त पेश हुई जिसमें 101 आदमियों के नाम दर्ज थे। फैसला किया गया कि इन भाइयों को रियायती कीमत से दूध दिया जाये (रियायती कीमत डेड आना प्रति सेर मुकर्रर की गई )। और डेरी का घाटा दूसरे तरीके से पूरा कर दिया जाये।
हम लोग जरा सी परेशानी सर पर आते ही उदास हो जाते हैं और दो चार बातें उम्मीद व मर्जी के खिलाफ घटित मैं आने पर अपनी किस्मत पर आँसू बहाते हुए कोने में बैठना अख्तियार कर लेते हैं। लेकिन आज अमेरिका के प्रेसिडेंट रूजवेल्ट का हाल पढा। आप अभी बड़ी धूमधाम के साथ प्रेसिडेंटी की कुर्सी पर आसीन हुए हैं। कुर्सीनशीनी के दिन का हाल मुलाहजा हो। आसमान पर स्याह बादल छाये हुए थे गोया आसमान अमेरिकन मुरझाए दिलों की कैफियत जबानेहाल से पुकार पुकार सुना रहा था ।
48 में से 48 रियासतों में दीवाले निकल जाने के खौफ से सब बैंक गवर्नमेंट हुकुम से जबरन तातील बना रहे थे गोया मुल्क भर में रुपए का लेनदेन बंद था। और हर शख्स को फिक्र पकड़े था आया तातील खत्म होने (पर जिंदगी की पूँजी बैंकों से वापस मिल जायेगी या भीख माँग कर गुजारा करना होगा। मुल्क के 2 सबसे बड़े शहरों में भूखे मजदूर टोलियाँ बाँधकर प्रदर्शन कर रहे थे । गर्जेकि अमरीकन अवाम का हर व्यक्ति यही महसूस कर रहा था कि मंदी की पराकाष्ठा हो रही है। इन हालात में मिस्टर रुजवेल्ट की कुर्सीनशीनी के लिये बंदोबस्त हो रहा था ।
आप कैपिटल की तरफ रवाना होने को थे कि एक पाजी ने रिवाल्वर से अचानक आप पर गोलियाँ बरसा दी। जैसे तैसे बचकर घर पहुँचे । कुर्सीनशीनी के जश्न का दिन आया तो आपका कैबिनेट के एक निहायत प्रतिष्ठित मेंबर के अचानक मौत हो गई। यह बेचारा जलसे में शिरकत के लिए आ रहा था रास्ते ही में उसकी रूह मानव शरीर से अलग हो गई । यह सब बातें थी लेकिन मिस्टर रुजवेल्ट ने हस्बे प्रोग्राम सद्रनशीनी की और धुआँधार स्पिच दी कि कुल महाद्वीप अमेरिका में तहलका मच गया।
और हर मर्द व जन को मालूम हो गया कि उनका सद्र पझमुर्दा दिल नहीं है । वह मौजूदा मंदी बाजार से कतई नहीं घबराता। वह मर्दानावार मुल्क में नए सिरे से समृद्धि का दौर कायम करेगा। काश हमारे दिल भी ऐसा ही मजबूत हो।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【शरण आश्रम का सपूत】 कल से आगे:-.
प्रेमबिहारी- काउन्टेस! मेरी मेहरबानी
काउन्टेस! मैंने आश्रम से चलते वक्त प्रण कर लिया था कि शादी के मुतअल्लिक ख्यालात दिल में ना आने दूँगा। इसलिए मेरी तरफ से इस कदर सर्दमेहरी का इजहार हुआ। मैं हर तरह से हाजिर हूँ मगर बिलाइजाजत अपने इंडियन मुरब्बियान के मैं कुछ नहीं कर सकता। काउन्टेस-( जल्दी से) क्या उन लोगों के दिल सख्त हैं?
प्रेमबिहारी- हरगिज़ नहीं- वह निहायत नर्मदिल और वसीअ व आजाद ख्याल लोग हैं। दयालबाग बहिश्त का एक छोटा नमूना है। तुम जरूर मेरे हमराह चलो और वहां की सैर देखो और अपने मुआमला पेश करो- मैं भी तुम्हारी सिफारिश करूँगा।(हँस देता है) काउन्टेस-( हाथ दबा कर ) शुक्रिया- हजार बार शुक्रिया -बार बार शुक्रिया- कुछ रुपया आश्रम के लिए भेज दो तो अच्छा है- केबल कर दो। प्रेमबिहारी - मैने अपने इनाम की कुल रकम मशीनरी बनाने वाले के हवाले कर दी है ताकि हमारे पहुँचने तक मसनूई रेशम बनाने की कुल मशीनें तैयार हो जायें। काउन्टेस- मेरा मतलब उन लाख लायर्ज को छोड़ने से नहीं था- रीटा की सब दौलत आज से आप की है। प्रेमबिहारी- वह लोग गैर मजहब वालों का रुपया नहीं लेते। काउनटेस- तो मुझे तुम्हारा मजहब कबूल है- और कोई शर्त हो वह भी तय कर लो। प्रेमबिहारी- इंडिया चल कर ही ये सब फैसले होंगे -अभी दिल की बातें दिल ही मैं रक्खों और अगर नागवार न हो तो कोई बढ़िया गीत गाकर सुनाओ।( काउन्टेस खुशी से वायलेन मँगाती है और गाती है)
◆◆गजल ◆◆
चल रही है जोरों की बादे बहारी इन दिनों । छा रही हरसू है मस्ती और खुमारी इन दिनों।।१।। जिस तरफ देखो खुशी के महफिलें ही गर्म हैं। कर रही किस्मत हमारी भी है यारी इन दिनों।।२।। गौहरे मकसूद मेरा आज मुझको मिल गया। रंज है न फिक्र है, न इंतजारी इन दिनों।।३।। जी चाहता है कि गाऊँ राग तेरी हम्द के। बात बिगड़ी मेहर से तूने सवाँरी इन दिनों।।४।। खिल उठो ऐ लाला ओ गुल! दामन अपने लो सँभाल। जल्वागर शाहे चमन की है सवारी इन दिनों।।५।। लोग पूछे हैं खुशी की शक्ल क्या तस्वीर है। मिल कर बैठे देख लो मैं और बिहारी इन दिनों।।६।। प्रेमबिहारी -शुक्रिया -गजब का गाना है- दिल का थामना ही मुश्किल हो गया था। काउनटेस-क्या मेरा गाना पसंद आया? ( मुस्कुरा कर ) प्रेमबिहारी- हद से ज्यादा- मगर अब चलने की तैयारी करना मुनासिब है। एक केबल भेजना चाहता हूँ ताकि आश्रम के मन्तजिमान को इत्तिला हो जाय।(काउन्टेस दौड कर कागज पेन्सिल लाती है और मुलाजिम को बुला कर सौ लायर्ज का नोट देती है) प्रेमबिहारी-(कुछ लिख कर) देखो यह लिखा है- इंडस्ट्रीज दयालबाग- राधास्वामी दयाल की दया से सब काम दुरुस्ती के साथ अन्जाम पा गया । 25 दिसंबर तक दयालबाग पहुँच जाऊँगा। एक लाख लायर्ज की मशीनरी हमराह लाता हूँ। यह रकम मुझे गवर्नमेंट इटली से इनाम में मिली थी। मैनें एक अनारकिस्ट को पकड़ा था और शाह इटली की जान बचाई थी। काम पूरी तरह से सीख लिया है।। प्रेमबिहारीलाल काउन्टेस -मेरा कुछ जिक्र नही किया। बढा न दो कि एक नफीस मछली इत्तिफाकन मेरे जाल में फँसी है, वह भी हमराह लाता हूँ। प्रेमबिहारीलाल-अफसोस! हिंदुस्तानी तहजीब इन बातों की इजाजत नहीं देती। अलावा इसके दयालबाग की मस्तूरात ज्यादा हैरान व खुश होंगी अगर तुम नामालूम तौर वहाँ पहुंचोगी। काउन्टेस- मैं तो योंही हँसी करती थी- मैं काहे को तुम्हारे जाल में फँसी -तुम ही मेरे जाल में फँसे। नौकर! देखो यह तार फौरन ले जाओ और नोट से दाम दो। प्रेमबिहारी- न तुम मेरे जाल में फँसी और न मैं तुम्हारे जाल में। हम सब उस सच्चे मालिक के बच्चे हैं। " खेल खिलावें बाल समान- देखें मात पितू हरखान।" जाहिरन् उन दयाल को यह मंजूर है कि हम दोनों से अपने दूसरे बच्चों की सेवा करावें। (ड्राप सीन) क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे-( 2)
सवाल- जो संसार में भोग पैदा किए हैं। तो वह जरूर रोकने के वास्ते पैदा हुए हैं। फिर उन भोगों के हासिल करने और भोगने की वजह से जीवों को क्यों सजा या दंड दिया जाता है, यानी नीची ऊँची जोनों में क्यों भरमाया जाता है? जवाब- जो भोग इस रचना में पैदा हुए हैं वह सच्चे मालिक ने प्रसन्न होकर अपने प्यारे भक्त और प्रेमीजन के लिए काल पुरुष और माया के हाथ से पैदा कराये। वे उन भोगों को प्रथम अपने सच्चे मालिक के सन्मुख (जब संत सतगुरु रूप धरकर जगत में प्रगट होवें) पेश करते हैं या उसके प्रेमी और भक्तजन के निमित्त तैयार करते हैं और फिर आप भी उन्हीं भोगों को प्रसादी कराकर भोगते हैं और उनका रस लेते हैं । और उनको इस भक्ति और भाव के बदले में दया मिलती है और प्रेम दिन दिन बढ़ता है और सच्चे मालिक के दिन दिन ज्यादा प्यारे होते जाते हैं। ऐसे प्रेमियों की बदौलत संसारी जीव भी उन भोगों का भोग करते हैं , पर वे उनको अपने और अपने कुटुम्बियों के निमित्त तैयार करके निहायत लगन के साथ उनका रस लेते हैं और दूसरों को उसमें शरीक करना नहीं चाहते। और एक दूसरे की आपस में उन्हीं लोगों के सबब से ईर्षा करते हैं , और विरोध पैदा करके कभी-कभी आपस में एक दूसरे पर ज्यादती करते हैं । और ऐसा जबर बंधन उनका इन भोगों में हो जाता है कि उन्हीं को अपना सुखदाई मानते हैं और जो कोई उनको उन भोगों से छुड़ावे उसको बैरी के समान देखते हैं और उन लोगों की प्राप्ति के सबब से निहायत दर्जे का अहंकार और गफलत और बेपरवाही और सख्ती उनके मन में बढ़ती जाती है कि जिसके सबब से अपने सच्चे मालिक और निज घर को भूलकर दिन दिन उससे दूर होते जाते हैं और नीची ऊँची जोनों में अपनी करनी का फल भोगते हैं।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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