**राधास्वामी!! 22-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे जाने वाले पाठ:-
(1) मेरी प्यारी सहेली हो। दया कर कसर जता दो री।।टेक।।-(सुरत चढाय अधर में धाऊँ। राधास्वामी दरस दिखा दो री।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.60-61)
(2) जो जबाँ यारी करे खुल कर सुना आज दिल कोई राग बज्मे यार का।। प्रेमियों की चाल है जग से जुदा जानते हैं प्रेमी इसको बेवफा।।-(शौक दिल का जो कि पूरा कर सके दामने उम्मीद जो कि भर सकें।।)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🙏🙏 जोनल सतसंग में पढे गये पाठ:- 🙏🙏🙏
(1) हे मेरे समरथ साईं । निज रुप दिखा दो।।(प्रेमबानी-4-शब्द-11-पृ.सं.98) पुरुष पार्टी द्वारा।। (2) मेरा जिया न माने सजनी। जाऊँगी गुरु दरबार।। (प्रेमबानी-3-शब्द-12-पृ.सं.353) (3) बिन सतगुरु दीदार तडप रही मन में। बेकल बिरह सताय रही मेरे तन में।।(प्रेमबानी-1-शब्द-2-पृ.सं.95) (4) गुरु प्यारे की मौज रहो तुम धार।।टेक।।(प्रेमबानी-3-शब्द-74-पृ.सं.-62) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!!
22-12 -2020 -आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 93)
विदित हो कि जो परिणाम ऊपर निकाला गया वह केवल हमारी ही कल्पना नहीं है। मुंडक उपनिषद के तीसरे मुडंक के पहले खंड के तीसरे श्लोक में भी यही परिणाम निकाला गया है। लिखा है- "जब वह देखने वाला सुनहरी रंग वाले कर्तार मालिक, पुरुष , ब्रह्म (हिरण्यगर्भ) के योनि (चश्मे) को देखता है तब वह विद्वान् पुण्य और पाप को झाड कर निरंजन (क्लेशों से बचा हुआ) हो कर परम तुल्यता को प्राप्त होता है"। यह पंडित राजारामजी का उक्त श्लोक का अनुवाद है। उपनिषद का यही श्लोक वेदांत दर्शन के पहले अध्याय के तीसरे पाद के 22वें सूत्र की टीका में उद्घृत हुआ है जिसे लिख करके आपने निम्नलिखित वाक्य पर बढ़ा दिये है:- "जीवात्मा चैतन्य होने से पहले भी परमात्मा के तुल्य तो है तथापि अपहृतपाप्मत्वादि(पाप से रहित होना आदि गुण) कल्याणधर्मों के अभाव से तुलना छोटी है । पर जब यह परमात्मा को देख लेता है तो यह भी अपहतपाप्मा(पाप से रहित) विजर(बुढापे से रहित) विमृत्यु(मरण से रहित) विशोक(शोक से रहित) अविजिघत्स(खाने की इच्छा से रहित) अपिपास(पीने की इच्छा से रहित) सत्यकाम(सत्य का प्रेमी) और सत्यसंकल्प(इरादे को पूरा करके छोडने वाला) हो जाता है इसलिए यह परम तुल्य हो जाता है"( देखो पृष्ठ 230 )।
( 94 ) यहाँ इतना और स्पष्ट कर देना आवश्यक है की मूल श्लोक में ' परमं साम्यमुपैती ' वाक्य प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ है- ' परम समानता को प्राप्त होता है'। ' परम समानता का अर्थ है हद दर्जे की एकता ।।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी
🙏🙏🙏✌️महाराज!**
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