**राधास्वामी!! 17-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) धुन सुन कर मन समझाई।।टेक।। घट अकाश औघट परकाशा। लख अकाश कोटिन परसाई।।-( राधास्वामी राज छिपे को। परघट कर सरसाई।।) (सारबचन-शब्द-9वाँ-पृ.सं.225)
(2) सुरत मेरी प्यारे के चरनन पडी।।टेक।। जगे भाग गुरु सन्मुख आई। त्रिय तापन से अधिक डरी।।-(राधस्वामी महिमा कस कह गाऊँ। चरन सरन गह आज तरी।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-1,प्रेम बहार-भाग दूसरा-पृ. सं. 369)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाक्यात- 23,24 मार्च 1933- बृहस्पतवार व शुक्रवार:-
मद्रास की तरफ से अंग्रेज लेडीज आई है। गेस्ट हाउस में ठहरी है। रात के सत्संग में सम्मिलित हुई। 5 साल हुए जब हम मद्रास स्टेशन से रेल में सवार हुए इनमें से एक हमारी सहयात्री थी। लड़कियों की गाइड मोमेंट की जबरदस्त समर्थक है। कहने लगी हम सब लड़कियों को तालीम देती हैं कि अपने अपने मजहब की खूब पाबंदी करो। मैंने पूछा जबानी लेक्चर से या अपनी मिसाल से । जवाब दिया दोनों तरीकों से। सभी मजसबी पुस्तकों में लिखा है कि मालिक दुःख सुख से ऊपर है और परम आनंद का भंडार है लेकिन साथ ही यह भी फरमाया है कि भक्तों को दुःखी देखकर दुःखी होता है और सुखी देख कर सुखी। प्रकट रूप से दोनों विपरीत बातें हैं। दो दिन सुबह व शाम इसी मजमून पर बहस रही। आखीर में समझाया गया कि संतमत बतलाता है कि इंसान की सुरत मालिक का अंश है। इसलिये दोनों के गुण एक ही है। अगर सुरत ने मनुष्य शरीर रचा है तो मालिक ने कुल रचना तैयार की है। यथ पिण्डे तथ ब्रह्मांडे ।(जैसा पिण्ड में है वैसा ब्रह्मांड में है) इंसान का जिस्म आलमे-सगीर(मानव शरीर) और रचना आलमे-कबीर ( ब्रह्मांड)। और दोनों में पूरी सदृश्यता है। हमारे शरीर में तीन चीजें हैं रूह, मन व स्थूल मसाला। ऐसे ही रचना में भी तीन दर्जे है।
(१) निर्मल चेतन देश यानी खालिस रुहानी मंडल जो दशा में रुह के हैं ।
(२) ब्रह्मांड यानी निर्माल माया देश जो बमंमिले मन के है और
(३) पिंड यानी मलीन माया जो बमंजिलें शरीर के स्थूल मसाला के है।
अब गौर का मकाम है कि सब दुःख सुख हमारे मन ही को व्याप्ते है इससे नतीजा निकलता है कि आलमें कबीर में यह दशा यानी दुःख सुख का अहसास आलमें कबीर के मन ही को हो सकता है। जैसे हमारी रूह दुःख सुख की अनुभूति से निर्लिप्त है और ऐसे ही आलमें कबीर की रूह मालिके कुल भी। जैसे किसी महापुरुष के रूह जागृत होने पर दुनिया का ज्ञान व तजर्बा हासिल करती है कुल मालिक को जो हमेशा से बेदार रूहानियत का स्रोत है उसी किस्म का ज्ञान होता होगा । मामूली इंसान की रूह सोई हुई है और वह फकत जिस्म व मन को जान देती है इसलिये नहीं समझ सकता कि रुह को संसार का किस तरह का ज्ञान होता है या हो सकता है । मामूली इंसान का इल्म मन के घाट पर खत्म हो जाता है इसलिये वह अंदाजा नहीं कर सकता कि मालिके कुल को दुनिया के दुःख सुख का किस शक्ल में एहसास होता है । अलबत्ता मालिक के मन और हमारे मन का चूँकि एक ही मसाला है इसलिए हम समझ सकते हैं कि मालिक के मन यानी ब्रह्म पुरुष को हमारी तरह संसार का ज्ञान हो तजर्बा होता है. और चूँकि किसी शख्स के मन को दुःख सुख व्यापने पर यही कहा जाता है कि उस शख्स को दुःख सुख व्यापता है इसलिये कुल मालिक के मन को दुःख सुख व्यापने पर यह कहना बेजा न होगा कि मालिक को दुःख सुख व्याप्ता है । मजमून इस तरह समझने से मालिक दुःख सुख से बालातर भी करार पा जाता है और भक्तों के दुःख सुख का अहसास रखने वाला भी।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【शरण आश्रम का सपूत】
:- कल से आगे -[तीसरा दृश्य]
(शहर रोमा में शाम के वक्त प्रेमबिहारी एक बाग में लेटा है)
प्रेमबिहारी- आज दस माह रोमा में आये हो गये। काऊन्टेस की कोई चिट्ठी भी नहीं आई। उनकी बहिन ने भी कोई जिक्र नहीं किया। आया था मसनूई रेशम का काम सीखने और बन गया चीफ कांस्टेबल । हे मालिक! यह क्या माजरा है ।दूसरा साल भी खत्म होने को है। मैंने कितनी मर्तबा कारखानों में घुसने की कोशिश की मगर यहाँ मालिकान पुलिस के अफसरान को भी अंदर नहीं आने देते । यहाँ इंग्लैंड से भी बढ़कर सख्तियाँ है। कैसे नैया पार लगेगी। परसों बादशाह सलामत की सालगिरह का जश्न है। मेरी ड्यूटी खास काम पर लगी है । न जाने हिज मेजस्टी पर कोई हमला कर बैठे और मेरी जान इसी में जावे। अच्छा जो मौज! मगर कुछ हो जाए तो अच्छा है , अब जीना नहीं सुहाता है, या तो गौहरे मकसूद हाथ आये या जान जाये। मामला एक तरफ हो , सिसक सिसक कर प्राण देने कठिन है। मेरे मालिक! क्यों देर लगा रहे हो - आप तो भक्तवत्सल हैं- मेरी बेर क्यों इतनी देर कर रहे हो।( चौंक कर) उफ! बैठा था आराम लेने के लिये और सुस्ती ने आ दबाया।( उठ कर बैठ जाता है। कुछ फासले पर पेड़ के नीचे दो मर्द लेते हैं और बातें करते हैं ) एक मर्द- जिप्सी का मामला निहायत खूब रहा। जरुर आरलेण्डो को इसमें कामयाबी हो जायगी । दूसरा -आखिर यह सूजी किसे? पहला- खुद आरलेण्डो को। दूसरा - आपका बाप भी बड़ा चालाक और पक्का अनार्किस्ट था। पहला- लायक बाप का लायक बेटा है । दूसरा- बादशाह को हाथ दिखलाने का बड़ा शौक है। वह जरूर आरलेण्डो के दम में आ जावेगा। पहला- मैंने सुना है कि आरलेण्डो को जिप्सी का स्वाँग बनाना खूब आता है।( यह बातें सुनकर प्रेमबिहारी लेट जाता है और गौर से सुनने लगता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1
- कल से आगे:-(6)
अब समझना चाहिए कि जिस तरफ जिस आदमी की तवज्जह होती है, उसी तरफ को उसके मन से धार प्रकट होकर जारी होती है और जिस कदर उसका शौक तेज होता है, उसी कदर ताकतवर और मजबूत धार जारी होकर उनकी चाह के पूरा करने के लिये, जो जतन के मुनासिब और जरूरी है, करती है।।
(7) इसी तरह जब किसी के मन में परमार्थ की चाह शौक के साथ पैदा होगी , तो जो उसको राधास्वामी मत के मुआफिक भेद अपने निज घर का और महिमा सच्चे और कुल मालिक राधास्वामी दयाल की और हाल रास्ते और मंजिलों का और जुगत चलने की संत सतगुरु या साधगुरु या उनके सच्चे प्रेमी सतसंगी से मालूम हुई है, तो उसकी चाह के साथ बदस्तूर धार प्रगट हो कर निज घट में ऊपर की तरफ जरूर जारी होगी। और जिस मंजिल का शुरू में उसने ठेका(ठहराव का स्थान) मुकर्रर किया है , वहाँ तक थोड़ी बहुत जरूर पहुंचेगी और उसी देश की चढ़ाई का थोड़ा बहुत जरूर रस आवेगा, यानी हल्कापन और शीतलता थोड़ी बहुत मालूम पड़ेगी। पर शर्त यह है कि उस वक्त दूसरी धार न उठे यानी देह या या दुनियाँ की तरफ का कोई ख्याल मन में न आवे, नहीं तो जो धार ऊपर की तरफ को जारी हुई है वह गिर पड़ेगी और नई धार उस ख्याल के मुआफिक नीचे या बाहर की तरफ को जारी हो जावेगी और वह प्रमार्थी रस और आनंद जाता रहेगा।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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