परम पूज्य हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब का सारगर्भित अमृत बचन- 25-12-2000
परम गुरु हुज़ूर महाराज के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर आरती सतसंग के बाद
25-12-2005
राधास्वामी! परम गुरु हुज़ूर महाराज के बहुमूल्य बचनों से हमें सीख मिलती है कि किसी भी हालत में चाहे दुनियवी या परमार्थी हो हमें निराश नहीं होना चाहिये। हमें हतोत्साहित नहीं होना चाहिये और सुमिरन, ध्यान, भजन भरसक नियमित रूप से करते रहना चाहिये। जिससे सुमिरन, ध्यान, भजन नहीं बनता है या जिसको उपदेश नहीं मिला है, उन सब के लिए जो अमूल्य औषधि राधास्वामी दयाल ने हमें बख़्शी है वह राधास्वामी नाम की है। राधास्वामी नाम का जाप कीजिए। दम-दम, पल-पल। देखिये किस ख़ूबी से आपकी परेशानियाँ, कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि जो भी दुनियवी ख़्वाहिश आप उठायेंगे वह सब पूरी हो जाएगी, पर आपको निश्चित रूप से अपने दुनियावी और परमार्थी कार्यों में सहायता मिलेगी। इसी वजह से आज कल जब यहाँ पी.टी. होती है तो हर नंबर के साथ अंतर में सब लोग बड़े और बच्चे भी रा-धा-स्वा-मी का उच्चारण शान्त रूप से करते हैं। आप चल रहे हों, हर क़दम के साथ रा-धा-स्वा-मी अंतर में कहिए। आप ख़ाली बैठे हों रा-धा-स्वा-मी अंतर में जपिये। रात में आपकी नींद खुल जाये तो विकारों से बचने के लिए रा-धा-स्वा-मी जपिये। आप सतसंग में बैठते हैं या अभ्यास में बैठते हैं और आपका ध्यान केन्द्रित नहीं होता तो आप रा-धा-स्वा-मी चार चक्रों पर क्रमशः अंतर में उच्चारण करिये। अर्थात् अपना ध्यान नाभि चक्र पर रखते हुए ‘रा’ हृदय चक्र पर रखते हुए ‘धा’, कण्ठ चक्र पर रखते हुए ‘स्वा’ और नेत्र चक्र पर रखते हुए ‘मी’ का सुमिरन कीजिए। आप ऐसा करते रहेंगे तो यह संभव है कि राधास्वामी लय आप के अंतर में अपने आप होने लगे और जिनको अभ्यास प्राप्त है वह शुरु में पाँच मिनट इस प्रकार राधास्वामी सुमिरने के बाद अभ्यास की विधि से सुमिरन ध्यान, राधास्वामी नाम का सुमिरन, और स्वरूप, जो सिंघासन पर आसीन है, का ध्यान करें। अगर आप को दूसरा उपदेश प्राप्त है तो आप को ऊँचे स्थानों का पता भी मालूम है और आप राधास्वामी नीचे के चक्रों पर ही न करके नेत्र चक्र से ऊपर किन्ही चार चक्रों में करते हुए अन्ततोगत्वा शीर्ष स्थान राधास्वामी धाम तक करिये।
अक्सर यह समझा जाता है कि दूसरा उपदेश मिल गया तो सुमिरन ध्यान की इतनी आवश्यकता नहीं है परन्तु आप जानते हैं कि यह सुमिरन ध्यान ही तो है जो आप ऊँचे स्थानों पर करते हैं जिससे सुरत शब्द योग का साधन बन पाता है। यह भी धारणा है कि जब तक पहले स्थान का शब्द न खुल जाए तो ऊपर के स्थानों पर भजन ध्यान का अभ्यास करना सम्भव नहीं है। पर अभी जो परम गुरु हुज़ूर महाराज के बचन आपने सुने और मेरी तुच्छ समझ में तो यही आता है कि पहले स्थान का शब्द खुलने का आप ज़रूर प्रयत्न करें। पहले भजन ध्यान करने के, आप राधास्वामी नाम का सुमिरन करें, गुरु स्वरूप का ध्यान करें और फिर बताई हुई विधि से पहले स्थान पर भजन ध्यान करें। इसमें अधिक समय दें, बीस पच्चीस मिनट, आधा घंटा या उससे ज़्यादा। पर अगर शब्द नहीं खुलता तो आप राधास्वामी नाम का सुमिरन और गुरु स्वरूप का ध्यान ऊपर के स्थानों पर भी करने का प्रयत्न करें। अनुमान करें, आप पहले स्थान से दूसरे स्थान तक सुरत की तवज्जह ले जाने के लिए चार पायदानों वाली रा-धा-स्वा-मी सीढ़ी का प्रयोग करें। इस सीढ़ी से आप पहले स्थान से दूसरे स्थान तक अपनी सुरत की तवज्जह ले जा सकेंगे। फिर वहाँ ठहरें, वहाँ ध्यान करें, वहाँ सुमिरन करें और शब्द सुनने का प्रयत्न करें। फिर इसी प्रकार तीसरे स्थान पर जाएँ, उससे ऊपर के स्थान पर जाएँ और सबसे ऊँचे स्थान राधास्वामी धाम तक यह प्रयोग करें। इसका एक और लाभ यह है कि अगर आप पहले स्थान पर ही भजन ध्यान करते रहे और शब्द नहीं खुला, कई वर्ष व्यतीत हो गए तो आप को जो अभ्यास की विधि बताई गई है, स्थानों का पता बताया गया है, वह भी भूल जाते हैं। और फिर, फिर आपको दोहराने की आवश्कता होती है। अगर आप रोज़ यह अभ्यास करेंगे चाहे शब्द सुनाई दे या नहीं सुनाई दे कि आप पहले स्थान से राधास्वामी धाम तक अभ्यास करेंगे, सुमिरन ध्यान करेंगे तो एक तो आप इस विधि को नहीं भूलेंगे और दूसरे जैसा अभी परम गुरु हुज़ूर महाराज के बचनों में आपने सुना अगर आपकी तवज्जह नहीं भी हो और आप शब्द न सुन सकें तो भी यह सम्भव है कि आपका सम्पर्क शब्द स्वरूप से हो रहा हो। तो मैं तो यही समझता हूँ कि आप को दिन प्रति दिन यदि आपको दूसरा उपदेश प्राप्त है तो अभ्यास पहले स्थान पर अधिक और दूसरे स्थानों पर कम करना अवश्य चाहिये।
(क्रमशः)
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