राधास्वामी!! 15-12-2020- आज सुबह सतसंग के पाठ:-
(1) धुन सुन कर मन समझाई।।टेक।। बुद्धि चतुरता काम न आवे। आलिम रहे पछताई।।-(बुलहवसी और कपटी जन को। नेक न धुन पतियाई।।) (सारबचन-शब्द-9वाँ-पृ.सं.223,224)
(2) आज बरसत रिमझिम मेघा कारे।।टेक।। कोयल मोर बोल रहे बन में। पपिहा टेरत पिउ पिउ प्यारे।।-(संत रुप धर राधास्वामी प्यारे। आन मिले मोहि लीन मिला रे।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-28-पृ.सं.367,368)
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकिआत- 21 मार्च 1933- मंगलवार-
रात के सत्संग में जिक्र हुआ यह मालूम होने पर कि राधास्वामी सत्संग में बताया जाता है कि संतमत पुराने जमाने से जारी है और इस बयान के समर्थन में पिछले वक्तों के मार्गदर्शको के कलाम पेश किये जाते हैं? यह दुरुस्त है कि दुनिया में जगह जगह संतमत का उपदेश जारी है जगह जगह संतो, फकीरों,महात्माओं व औलियाओं ने इसका प्रचार फरमाया है और जबकि राधास्वामी सत्संग में नाम और नाम के सुमिरन को महत्व दी जाती है, बहुत सी मजहबी समूह उनको सही अहमियत देती है लेकिन फर्क यह है कि उन जमाअतो में ऐसे पुरुष लुप्त हैं जिनके अंदर नाम प्रकट हो। अगर किसी मजहबी जमात में ऐसे पुरुष मौजूद हों जिनके अंदर वह नाम जिसका उपदेश दिया जाता है प्रकट है तो वह जमाअत राधास्वामी सत्संग की तरह जिंदा मानी जायेगी । और जिस दिन राधास्वामी सत्संग में ऐसे पुरुष नदारद हो जायेंगे सत्संग दूसरों की तरह मुर्दा जमाअत हो जायेगा। अंतर में नाम प्रकट होने से यह मुराद नहीं है कि लोगों को किसी नाम का इल्मी ज्ञान हासिल हो, बल्कि मतलब यह है कि उनका नाम उस नाम के नामी के साथ सीधे ताल्लुक्क हो। ऐसा पुरुष ही नाम का भेद देकर जिज्ञासुओं का उस नाम के नामी के साथ रिश्ता कायम करा सकता है। और यह इंतजाम होने पर कोई सुरत इस मृत्युलोक से छूटकर ऊँचे रूहानी मकामात पर पहुँच हासिल कर सकती है। मेरी बातचीत खत्म करने पर ब्यास के महाराज जी ने जो इत्तेफाक से आज यहाँ मौजूद थे मेरे दरख्वास्त करने पर अपने तजर्बात बयान करके मजमून पर रोशनी डाली।।
मॉडल इंडस्ट्रीज ने stainless steel के निब तैयार करके पेश किये। जो इंतिहान करने पर निहायत संतोषप्रद साबित हुए। एक पेंसिल के नमूने का फाउंटेन पेन भी पेश किया जिसमें यही निब लगा था। फाउण्टेनपेन निहायत खूबसूरत है स्याह रंग है मामूली पेंसिल की मोटाई है। कीमत सिर्फ ₹1 आठ आना मुकर्रर की गई है। उम्मीद है कि यह कलम बेहद लोकप्रिय होगा। stainless steel ऐसा फौलाद है जिस पर रोशनाई के तेजाब का असर कुछ नहीं होता। इसलिये उसके निब बडे देरपा होते हैं। फाउंटेन पेन में अब यह इंतजाम किया जा रहा है कि हर शख्स इच्छा अनुसार सफलतापूर्वक निब बदल ले। जिसका नतीजा यह होगा कि लोग बजाए मूल्यवान कलम खरीदने के यह सस्ता कलम इस्तेमाल करेंगे और साल दो साल के बाद निब घिस जाने पर खुद ही दूसरा निब बदल लेंगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
【 शरण आश्रम का सपूत】
कल से आगे:-
( चपरासी कार्ड लेकर आता है। काउन्टेस की बहिन पढकर) बहिन- कर्नल साहब को अंदर ले आओ । कर्नल- गुड मॉर्निंग। बहिन- गुड मॉर्निंग ,कर्नल । कर्नल- सीनियर प्रेमबिहारीलाल जो आपका मुलाजिम है, उसकी कल की बहादुरी का हाल आप ने अखबारों में पढ़ा होगा? बहिन- हाँ पढ़ा है। कर्नल -मैं चाहता हूँ कि वह इटली की खुफिया पुलिस में चीफ कांस्टेबल मुकर्रर किये जावे। बराय मेहरबानी आप उसे मुझ से तआरूफ करावें। (काउंटेस प्रेमबिहारीलाल को बुलाती है। प्रेमबिहारीलाल आता है) कर्नल-( हाथ मिला कर) गुड मॉर्निंग सीनियर प्रेमबिहारीलाल। मैं आपको कल की बहादुरी पर मुबारकबाद देता हूँ। मैं इटली के मुहक्मा खुफिया पुलिस का सब से आली अफसर हूँ। मैं चाहता हूँ कि तुम हमारे मुहक्में की इज्जत बढ़ाओ और चीफ कान्सटेबली की असामी मंजूर करो। (प्रेमबिहारी काउन्टेस की तरफ देखता है) बहिन- मैं खुशी से इजाजत देती हूँ। प्रेमबिहारी -मैंने सिर्फ अपना फर्ज अदा किया है। लेडीज की इज्जत करना व जान बचाना हमारा एक मुकद्दस फर्ज है। मैने कोई बडे मार्के का काम नही किया जिसके एवज मेरी इतनी इज्जत की जावे। मैं आपकी जर्रानिवाजी का शुक्रिया अदा करता हूँ। कर्नल-(हँसकर)और इटली के मुहक्मा खुफिया पुलिस की कान्सटेबली मंजूर करता हूँ। बहिन- बेशक ,बेशक. अब इनसे ज्यादा ध पूछिये। इनकी मंजूरी नोट कर लीजिये। प्रेमबिहारी -आप का मुल्क मुबारक है जिसके मर्द व औरत ऐसे शरीफ और कदरदान हैं। कर्नल-आप रोमो में कब से आये हैं ? बहिन- करीब छः महीने से ।लेकिन इस अर्से में इन्होंने न सिर्फ यहाँ कि जवान बखूबी सीख ली है बल्कि यार दोस्तों का एक वसी दायरा बना लिया है ।प्रेमबिहारी निहायत ही शरीफ नौजवान है। मैं पेशीनगोई करती हूँ कि आपके मुहक्मे में रहकर यह जरूर कारहाय करेगालिए lll
।क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग्-1- कल से आगे:-(4)
जो कोई कहे कि जो धारे इंद्रियों के द्वारा खर्च होती हैं वह तो वापस नहीं आती है , पर अनेक धारें बाहर से इंद्रियों के द्वारा अंदर में दाखिल होती है, तो यह बात सच है। पर मालूम होवे कि जिस कदर धारें बाहर से अंदर में आती है वह बनिस्बत उन धारों के जो बाहर निकलती रहती है बहुत ओछी और स्थूल और चैतन्यता में बहुत निर्बल होती है । और जो कुछ भी खर्च हो रहा है वह उसका पूरा पूरा बदला नहीं दे सकती है, क्योंकि वे सब धारें बहुत करके जड़ पदार्थों या कम दर्जे के चैतन्य से आती है। और जो धारें के बाहर के तत्वों से आती है वह अलबत्ता स्थूल देह के मसाले की किसी कदर मददगार है। पर सूरत चैतन्य को इनमें से किसी धार का भी फायदा नहीं पहुँचता है ।।
और तन मन और इंद्रियों को भी इन धारों से बहुत कम मदद मिलती है । अलबत्ता प्राण को बाहर की ताजी हवा बहुत मदद देती है, यानी उसकी गंदगी को दूर करके ताजगी देती है और उसका असर किसी कदर मन तक भी पहुँचता है। यहाँ खान पान का कुछ जिक्र नहीं है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[ 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏✌️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️🙏🙏🙏✌️
No comments:
Post a Comment