Monday, December 7, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 07/12

 **राधास्वामी!! 07-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) हेरी तुम कौन हो री। मोहि भरमावनहारी।।टेक।। बहु दिन कीना संग तुम्हारा। दिन दिन जग बिच रही फँसा री।।-(सतपुर सतगुरु दर्शन करके। राधास्वामी चरन मिलत सुखियारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.47)                                                       

 (2) स्वामी तुम काज बनाए सबन के।।टेक।। जो कोई सरन तुम्हारी आया दीन गरीबी पन ले। सभी भार उसका तुम लीना दुक्ख हरे तन मन के।।-( बारम्बार करुँ शुकराना धर धर सीस चरन पै। धन्य धन्य राधास्वामी सतगुरु मात पिता सब जन के।।) (प्रेमबिलास -शब्द-104-पृ.सं.150,151)  

                       

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!  

                                                

  आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-( 78)-

 परंतु प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि मनुष्य का मन परमार्थ का जानी दुश्मन है।  संसार के साज- सामान और संग- साथ मन को अपना रसास्वादन कराके उन्मक्त सा कर लेते हैं और यह बारम्बार उन्हीं की ओर झुकता है। प्राचीन समय में परमार्थ के प्रेमीजन मन के इसी उपद्रव और उत्पात के कारण ग्रहस्थाश्रम से संबंध तोड़ करके बनों और पर्वतों में निवास करते थे और घोर तपस्याएँ करके अपने तन और मन को रेत डालते थे, तब कहीं इस योग्य होते थे कि अंतर में गति प्राप्त कर सकें।

  इस समय में वे सब कठिनाइयाँ तो , जो प्राचीन समय में प्रमार्थियों के मार्ग में विघ्नरूप थी, पूर्ववत् वर्तमान है; किंतु अब परमार्थियों के लिए संभव नहीं कि बनों और पर्वतों में जाकर एकान्तवास कर सकें।

राधास्वामी- मत ने- यह उपदेश करके कि संसार की सामग्री और संग साथ छोड़ने की आवश्यकता नहीं, आवश्यकता उनके रसास्वाद की स्मृति छोड़ने की है- प्रमार्थियों की यह कठिनाई हल कर दी है। और संत सतगुरु की सेवा और भक्ति से कभी-कभी इस दर्जे का अंतरी रस और आनंद प्राप्त हो जाता है कि फिर संसार के सब रस नीरस प्रतीत होते हैं।


 इसके अतिरिक्त सत्संग में उपस्थित रहकर उनके उपदेश सुनने, उनके पवित्र प्रभामंडल (Aura) में सांस लेने और उनके स्पर्श किये हुए पदार्थ का उपयोग करने से ( जैसा कि नारद जी को अनुभव हुआ था) परमार्थी के मन में सच्चे कुलमालिक के चरणो के लिए सर्वोच्च कोटि का अनुराग उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण उसे संसार के भोगो के रस विस्मृत हो जाते हैं, और संसार के संग- साथ के बदले उसका मन सत्संग के वातावरण ही में रहना चाहता है।

और जब किसी विशेष अवसर पर संत सतगुरु उसकी ओर विशेष रूप से अपनी दृष्टि डालने की दया करते हैं तो उसके अंतर में गहरा सिमटाव हो कर ऐसी दशा छा जाती है कि संसार के भोगों की आशा की जड़ एकदम कट जाती है, और आशा की जड़ कटनी परमार्थी की कायापलट हो जानी है ।

उसे भविष्य में संसार की कोई वस्तु या दशा अपनी ओर आकृष्ट नहीं कर सकती। उसके अंतर में गुरु महाराज का दिव्य स्वरूप जब तब प्रकट होने लगता है, जिसके दर्शन के आनंद का मधुर-मद उसे दिन रात प्रमत्त किए रहता है।  वह जिधर दृष्टिपात करता है उसे उन्हीं का स्वरूप दृष्टिगोचर होता है । उसके हृदय में उनके लिए सच्चा प्रेम जाग जाता है और उनके पवित्र चरणों के अतिरिक्त उसे कुछ नहीं सोहाता ।और समय-समय पर उसकी रसना निम्नांकित पद्दरचना की रटना करती है।                              


🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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