**परम गुरु हुज़ूर डा० लाल साहब के बचन-/
*[हमारा परम कर्त्तव्य]*]
**बसंत के दिन 30 जनवरी, 1982 को शाम के सतसंग में परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज की पुत्र-वधू, पुत्रियों और पौत्री ने प्रेमबिलास से शब्द नं. 20 ‘लाग री मेरी सुरत सहेली’ पढ़ा।*
**शब्द पढ़े जाने के बाद ग्रेशस हुज़ूर ने निम्नलिखित चार कड़ियों का उल्लेख करते हुए फ़रमाया-*
**सतगुरु भेंटे सतसंग मिलिया, जाग उठा तेरा भाग री।।2।।*
*सेवा करो बचन चित धारो, गाओ मंगल राग री।।3।।*
*मान बड़ाई टेक और पक्षा, इन सब चित से त्याग री।।4।।*
*दीन हीन मान अपने को, गुरु की सरन में पाग री।।5।।*
**आज बसंत का दिन हम सब सतसंगियों के लिये ख़ुश होने और ख़ुशी मनाने और साथ ही साथ हुज़ूर राधास्वामी दयाल के गुणानुवाद करने का है और वस्तुतः आप लोगों ने आज किया भी उसी तरह, पुरानी टेक और पक्ष भी छोड़ दी। यह अच्छा है।* **पर मेरा ऐसा ख़याल है कि बसंत के दिन हम सब लोगों के अन्दर एक भारी ज़िम्मेवारी भी महसूस होती है। परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज ने बसंत के दिन आम सतसंग जारी फ़रमाया। तब से सतसंग बढ़ा और यह लगातार बढ़ रहा है।* *अब हमारा कोई काम या हमारी कोई ऐसी ग़लती न हो जिससे सतसंग विकास में रुकावट पड़े बल्कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि सतसंग की तरक़्क़ी में हमारे क़दम, हमारे प्रयत्न और तेज़ हों। हमारा सतसंग ऐसा हो कि ग्रेशस हुज़ूर के आदेशों को हम पूरा कर सकें। अनुशासन, निजी मितव्ययिता और क़ुरबानी ये सब हमारे कर्त्तव्य हों।* **मालिक हम सब लोगों को ऐसी सुमति दे कि हम अपनी ज़िम्मेवारी को ठीक से निभाएँ। (प्रेम प्रचारक, 22 मार्च 1982)*
*(पुनः प्रकाशित प्रे.प्र. 9.8.2004)*
*सन्देश:-*
*(वर्ष 1979 में बसन्त के शुभ अवसर पर दयालबाग़ हेरल्ड के विशेषांक के साथ बच्चों का चार पृष्ठीय परिशिष्ट प्रकाशित हुआ। उस परिशिष्ट के लिए परम पूज्य डॉक्टर लाल साहब ने अत्यंत दया करके जो सन्देश अंग्रेज़ी में दिया है उसका हिन्दी अनुवाद अपने प्रेमी पाठकों की जानकारी के लिए हम नीचे प्रकाशित करते हैं।* *(सम्पादक)*
*"हे प्यारे बच्चों! बसन्त के इस शुभ दिन मैं तुम्हें स्नेहपूर्ण अभिनन्दन और सर्वश्रेष्ठ शुभकामनाएँ भेजता हूँ। मालिक करे तुम्हारा उन्नति-पथ सरल हो, समझबूझ सही हो और चरित्र आदर्श हो।*
*सन् 1861 ई. में यह बसन्त का ही दिन था जब कि परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने दया करके मनुष्य जाति के उद्धार के सन्देश देने और राधास्वामी सतसंग अवाम के लिए खोल देने का ऐलान करने की मौज फ़रमाई थी और फिर बसन्त के दिन ही सन् 1915 ई. को परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने दयालबाग़ की नींव रक्खी थी। तब से यह कॉलोनी उन्नतिशील नागरिक और ग्रामीण मिश्रित संस्थाओं के रूप में दृढ़ता से निरन्तर विकास पाती रही।* *हम भाग्यशाली हैं कि हमारा सम्बन्ध दयालबाग़ और सतसंग से होने के कारण हम उन दयाल की दया से लाभान्वित हो रहे हैं। चूँकि हमारा सतसंग संगठन बाहर से आर्थिक सहायता स्वीकार नहीं करता और अपनी उन्नति व विकास के लिए अपने निजी साधनों पर निर्भर रहता है इस कारण यह आशा की जाती है कि यहाँ के लोग कॉलोनी की उन्नति के लिए सहकारी भावना से कठोर परिश्रम करेंगे।* *उनसे यह भी आशा की जाती है कि वह अपनी हको हलाल की आय में निर्वाह करें और* **सादा, आडम्बर-रहित और शान्त जीवन व्यतीत करें। हमारे लिए यह भी आज्ञा है कि सतसंगी की हैसियत से चारित्रिक नियमों का पालन करें और हमारा यह दृढ़ विश्वास हो कि राधास्वामी कुल रचना के कर्त्ता का नाम है और हम मद्य व समस्त मादक वस्तुओं और मांस मछली अंडे आदि खाने से परहेज करें।* *बच्चों के लिए दयालबाग़ सदा ही एक ऐसा मधुर स्थान रहा है जहाँ समान प्रकृति का वातावरण जिसमें सतसंग की भावना उत्पन्न करने और चरित्र निर्माण करने की क्षमता विद्यमान है।*
**इस आयु में जबकि आपका चरित्र बन रहा है, वह बात आपके लिए अत्यन्त आवश्यक है कि आप लोग बर्ताव के सही ढंग सीखें यानी अपने से छोटों-घर पर भाई बहिनों के लिए और बाहर के बच्चों के लिये प्यार व प्रेम, घर पर अपने माता-पिता और संरक्षकों और बाहर के बुज़ुर्गों के प्रति सम्मान और प्रतिष्ठा का भाव अपने अन्दर विकसित करें। अनुकरणीय सामाजिक जीवन के लिए दयालबाग़ एक बहुत अच्छा आदर्श है।*
*बच्चों का परिशिष्ट, जो कि अब दयालबाग़ हेरल्ड के परिशिष्ट के रूप में प्रकाशित हो रहा है दयालबाग़ और बच्चों से सम्बन्धित दृष्टिकोणों के प्रदर्शन और विचारों के अदल बदल का साधन होगा। मैं आशा करता हूँ कि बच्चे इस अवसर का पूर्ण लाभ उठायेंगे और मुझे विश्वास है कि परम पिता अपनी असीम कृपा से उनके ऊपर विशेष दया व मेहर की वर्षा करेंगे जिनसे कि वे अपने उद्देश्य के प्राप्त करने में सक्षम हों।"*
*राधास्वामी
(प्रेम प्रचारक, 22, 29 जनवरी 1979)*
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