प्रस्तुति - आनंद कुमार
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22 03 2020
आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया
-बचन- कल से आगे-
( 88 )-
बाज लोग ताज्जुब के साथ सवाल करते हैं कि पिछले जमाने में तो योग साधन में सफलता हासिल करने के लिए मुद्दत तक उम्र तक करना पड़ता था और साधन करने वाले को गृहस्थाश्रम का त्याग करना होता था लेकिन इस जमाने में सत्संगी हालांकि न कोई उम्र तक करते हैं और न गृहस्थाश्रम का त्याग करते हैं लेकिन निहायत संतुष्ट और प्रसन्न नजर आते हैं और योग साधन में सफलता के मुतअल्लिक़ बरमला गुफ्तगूं करते हैं, इसकी क्या वजह है? वजह यह है कि इस जमाने में राधास्वामी दयाल बजाय उम्र तप के सच्ची भक्ति द्वारा मनुष्य के हृदय को शुद्ध कराते हैं। जैसे पिछले जमाने में लोग मिट्टी का चिराग जलाकर रोशनी करते थे जिसकी रोशनी कमजोर रहती थी और जिसकी बत्ती बार-बार बढानी पढ़ती थी और जिसके धुँए से कमरा भर जाता था और आजकल जरा से बटन दबाने से बआसानी निहायत तेज रोशनी हो जाती है जिसमें धुएँ का नामोनिशान भी नही होता। हरचंद दोनो ही रोशनी करने के लिए माकूल इंतजाम है और दोनों ही में सृष्टिनियमों से काम लिया जाता है लेकिन एक में अदना सृष्टिनियम इस्तेमाल होते हैं और दूसरों में आला और आला सृष्टिनियमों के इस्तेमाल से हमेशा सुख ज्यादा और कष्ट कम होता है। पिछले जमाने में जो योगसाधन जारी था वह अहंकार का मार्ग था और अब जो साधन जारी है और वह भक्ति का मार्ग है जो अहंकार के मार्ग से आला है इसलिए इसमें सुख ज्यादा है और कष्ट कम। मनुष्य का स्वभाव है कि संसार के जीवों में पदार्थों से सहज में मोहब्बत पैदा कर लेता है और मोहब्बत गायब होने पर उन्हीं का हो रहता है अगर मनुष्य बजाए संसार के जीवो को पदार्थों के सच्चे मालिक के सच्चे सद्गुरु से मोहब्बत काम करें तो कुदरती तौर पर यह उनका हो जाएगा और शहद में इसकी संसार संसार के सामानों से मोहब्बत टूट जावेगी भक्ति मार्ग है और राधा स्वामी दयाल का मार्ग अपने चरणों में काम कराएं आते हैं इसलिए आमतौर पर आते हैं संसार के बंधनों से हासिल हो जाती है मनुष्य को संसार में बांध रखा है सद्गुरु भक्ति द्वारा उसके अंतर अंतर मालिक के चरणो में निवास हासिल करने की वासना देर हो जाती है और यह वासना उसे सृष्टि नेम अनुसार सहज में भवसागर से पार करके मालिक के चरणो में पहुंचा देती है।
राधास्वामी
सत्संग के उपदेश भाग तीसरा
[22/03, 14:20] RS Bhadeji Aanand Kumar: 22-03-2020
आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ-
(1) कैसे उतरू पार। भौसागर का चौडा फाट।। (प्रेमबानी-3,शब्द-2,पृ.सं.201)
(2) सतगुरु प्यारे ने जगाई। मन में प्रीति नवीनी हो (टेक) सुन धुन स्रुत मन चढे अधर में। छूट गया मन त्रिकुटीनगर में। स्रुत राह घर की लीनी हो।।।(प्रेमबिलास-शब्द-85,पृ.सं.120)
(3) सतसंग के उपदेश-
भाग तीसरा-
कल से आगे।
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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