प्रस्तुति - Dei साहबदास:
*परम गुरू हुजूर साहबजी महाराज- रोजानावाकियात-11 अगस्त 1932:-आज खबर मिली है कि गाय की हालत अच्छी है लेकिन बछडी मृत्यु के निकट है।गीता में लिखा है प्रजापति ने सृष्टि के शुरू में हुकुम दिया कि इंसान देवताओं को यज्ञ कर्म करके खुश करें और देवता मनुष्य वर्ग को अपना सौभाग्य प्रदान करके सुखी करें ।देवताओं में तो अब लोगों की आस्था कम हो रही है लेकिन अगर इस सिद्धांत पर गाय बैल और दूसरे घरेलू जानवरों के साथ बर्ताव किया जाए तो थोड़ी ही अरसे में हिंदुस्तान का नक्शा बदल जावे ।आजकल 10 12 बरस की उम्र में हमारे बच्चों को ऐनक की जरूरत हो जाती है । जिस लड़के को देखो रंग पीला है स्मरण शक्ति कमजोर है। जिस नौजवान को देखो किसी न किसी बीमारी में ग्रसित है । वजह है कि हमारे जिस्म की बुनियाद ही कमजोर होती है । अगर माताओं को व नीज बचपन में बच्चों को अच्छा दूध मिले तो शिकायते आप से आप है आपसे आप दूर हो जायें। जिस्म में ताकत होने से क्या पढ़ने लिखने वालों या खेतों में काम करने वाले अब से दोगुना तीनगुना काम करने लगें। इससे नीज डॉक्टरों के बिलों में कमी होकर हर खानदान की आर्थिक हालत तरक्की कर जाये। अफसोस है कि इस तरफ बहुत ही कम लोगों की तवज्जुह है।। रात के सत्संग में राधास्वामी दयाल की जाने से जो जो बख्शिशे हमें प्रदान हुई है उनका जिक्र करके बयान हुआ कि सबसे बड़ा एहसान उनका हमारे ऊपर यह है कि उन्होंने खुद दया करके हमें अपनी परख पहचान इनायत फरमाई । वरना दूसरों की तरह हम भी अपने स्वयं को सर्वज्ञ समझते हुए परेशान हाल रहते और अपने कर्तव्यों व सत्य का मार्ग से बेखबर रहकर सिद्धांतहीन की जिंदगी बसर करते । इंसान माने या ना माने उसको बाहरी रोशनी की हर हालत में जरूरत है। पैगंबरों औलियाओं, ऋषियों और संतो से मनुष्य वर्ग को उच्च स्तर की रोशनी खोज कर अवर्णनीय एहसान किया लेकिन तंगदिल इंसान बजाय शुकराना बजा लाने के उनकी जात में दोष निकालता है और अपने को पातकी करता है। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 **
[24/03, 11:07] Dei साहबदास: *परम गुरु हुजूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-1- (कल से आगे):- सब मतों में नाम की महीमा कही है और हिंदुओं के मत में खास कर लिखा है कि बगैर नाम के उद्धार नही होगा। मगर लोग नही जानते कि यह महिमा किस नाम की है और कौन जुगत से उसका अभ्यास करना चाहिये, जिससे सच्ची मुक्ति हासिल हो। अब यह भेद खोल कर कहा जाता है कि जिस नाम की ऐसी महिमा हिंदू और मुसलमान और और मतों में कहीं है, वह धुन्यात्मक नाम संतो के दूसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड के धनी का नाम है ।और जिस नाम की संतों ने महिमा कही है वह धुन्यात्मक नाम संतो के अव्वल दर्जे यानी निर्मल चेतन देश का है। इन नामों की आवाज को अंतर में चित्त देकर सुनना और उनकी धार को पकड़कर दर्जे बदर्जे चढना यह सुरत शब्द का सच्चा अभ्यास है । और जो कोई इस तौर से अभ्यास करें वह थोड़े दिन में अपने आहिस्ता आहिस्ता उद्धार होने का सबूत अपने अंतर में देख सकता है ।और वर्णनात्मक नाम बेठिकाने चाहे उम्र भर जाता करें , कुछ हासिल नहीं होगा।। जो कोई दूसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड के धुन्यात्मक नाम का अभ्यास राधास्वामी मत की जुगत के मुआफिक करेगा उसके आगे चढ़ने का, यानी सत्तपुरुष पहुंचने का इरादा नहीं रखता है तो उसका भी पूरा उद्धार नहीं होगा यानी जन्म मरण उसका, चाहे बहुत देर बाद होवे, जारी रहेगा। इस वास्ते सब को चाहिए कि पहले और दूसरे दर्जे के धुन्यात्मक और गुणात्मक नाम का भेद और जुगती लेकर अभ्यास में लगें तो कारज पूरा होगा । मालूम होवे कि ब्रह्मांड के धुन्यात्मक नाम को लक्ष्य और वर्णनात्मक को वाच्य स्वरुप ब्रह्म का कहते हैं। क्रमश: 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[24/03, 11:07] Dei साहबदास: *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश -भाग 2- कल का शेष :-(९) परम कृपा जब गुरु करें परम दया कर्तार। पूरे गुरु के खोज की तब पावे जिव सार।।। जब किसी पर गुरु महाराज की परम कृपा हो और सच्चे मालिक कुल कर्तार की परम दया हो तभी उस शख्स के हृदय में पूरे गुरु की तलाश का शौक पैदा होगा यानी सच्चे मालिक की किसी शख्स के लिए मौज हो कि जगत् से न्यारा करके उसको मुक्ति की अवस्था प्राप्त कराई जावे और नीज पूरे गुरु की, जो संसार में मौजूद हों, मौज हो कि उनकी मारफत उस शख्स के जीव का कल्याण हो तो उसके दिल में सच्चे और पूरे गुरु की तलाश का शौक पैदा हो सकता है । इसलिये धन्य है वो लोग जो चाहे किसी भी मजहब या सोसाइटी या संसारी अवस्था में हो लेकिन उनके अंदर सच्चे गुरु की तलाश का शौक कायम है। यह शौक वृथा ना जाएगा बल्कि जरूर एक दिन उनको पूरे गुरु से मिलाकर रहेगा और पूरे गुरु से मिलने पर उनके जीव के कल्याण की कार्यवाही सहज में शुरू हो जावेगी। लेकिन अफसोस है उन लोगों के हाल पर जो देह के बंधनों में फंसे हैं और जिनके घट में कुमति यानी कुबुद्धि ने निवास कर रखा है और जो संसार के ही सुख चाहते हैं। चूँकि संसार में ज्यादतर इसी किस्म के लोग हैं इसलिए आमतौर पर पूरे गुरु और शिष्य की तलाश का सच्चा शौक देखने में आता है।। (१०) देह फंद जिव फाँसिया कुमति किया घट बास। पूरे गुरु और शिष्य की कौन धरे मन आस।। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
*परम गुरू हुजूर साहबजी महाराज- रोजानावाकियात-11 अगस्त 1932:-आज खबर मिली है कि गाय की हालत अच्छी है लेकिन बछडी मृत्यु के निकट है।गीता में लिखा है प्रजापति ने सृष्टि के शुरू में हुकुम दिया कि इंसान देवताओं को यज्ञ कर्म करके खुश करें और देवता मनुष्य वर्ग को अपना सौभाग्य प्रदान करके सुखी करें ।देवताओं में तो अब लोगों की आस्था कम हो रही है लेकिन अगर इस सिद्धांत पर गाय बैल और दूसरे घरेलू जानवरों के साथ बर्ताव किया जाए तो थोड़ी ही अरसे में हिंदुस्तान का नक्शा बदल जावे ।आजकल 10 12 बरस की उम्र में हमारे बच्चों को ऐनक की जरूरत हो जाती है । जिस लड़के को देखो रंग पीला है स्मरण शक्ति कमजोर है। जिस नौजवान को देखो किसी न किसी बीमारी में ग्रसित है । वजह है कि हमारे जिस्म की बुनियाद ही कमजोर होती है । अगर माताओं को व नीज बचपन में बच्चों को अच्छा दूध मिले तो शिकायते आप से आप है आपसे आप दूर हो जायें। जिस्म में ताकत होने से क्या पढ़ने लिखने वालों या खेतों में काम करने वाले अब से दोगुना तीनगुना काम करने लगें। इससे नीज डॉक्टरों के बिलों में कमी होकर हर खानदान की आर्थिक हालत तरक्की कर जाये। अफसोस है कि इस तरफ बहुत ही कम लोगों की तवज्जुह है।। रात के सत्संग में राधास्वामी दयाल की जाने से जो जो बख्शिशे हमें प्रदान हुई है उनका जिक्र करके बयान हुआ कि सबसे बड़ा एहसान उनका हमारे ऊपर यह है कि उन्होंने खुद दया करके हमें अपनी परख पहचान इनायत फरमाई । वरना दूसरों की तरह हम भी अपने स्वयं को सर्वज्ञ समझते हुए परेशान हाल रहते और अपने कर्तव्यों व सत्य का मार्ग से बेखबर रहकर सिद्धांतहीन की जिंदगी बसर करते । इंसान माने या ना माने उसको बाहरी रोशनी की हर हालत में जरूरत है। पैगंबरों औलियाओं, ऋषियों और संतो से मनुष्य वर्ग को उच्च स्तर की रोशनी खोज कर अवर्णनीय एहसान किया लेकिन तंगदिल इंसान बजाय शुकराना बजा लाने के उनकी जात में दोष निकालता है और अपने को पातकी करता है। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 **
[24/03, 11:07] Dei साहबदास: *परम गुरु हुजूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-1- (कल से आगे):- सब मतों में नाम की महीमा कही है और हिंदुओं के मत में खास कर लिखा है कि बगैर नाम के उद्धार नही होगा। मगर लोग नही जानते कि यह महिमा किस नाम की है और कौन जुगत से उसका अभ्यास करना चाहिये, जिससे सच्ची मुक्ति हासिल हो। अब यह भेद खोल कर कहा जाता है कि जिस नाम की ऐसी महिमा हिंदू और मुसलमान और और मतों में कहीं है, वह धुन्यात्मक नाम संतो के दूसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड के धनी का नाम है ।और जिस नाम की संतों ने महिमा कही है वह धुन्यात्मक नाम संतो के अव्वल दर्जे यानी निर्मल चेतन देश का है। इन नामों की आवाज को अंतर में चित्त देकर सुनना और उनकी धार को पकड़कर दर्जे बदर्जे चढना यह सुरत शब्द का सच्चा अभ्यास है । और जो कोई इस तौर से अभ्यास करें वह थोड़े दिन में अपने आहिस्ता आहिस्ता उद्धार होने का सबूत अपने अंतर में देख सकता है ।और वर्णनात्मक नाम बेठिकाने चाहे उम्र भर जाता करें , कुछ हासिल नहीं होगा।। जो कोई दूसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड के धुन्यात्मक नाम का अभ्यास राधास्वामी मत की जुगत के मुआफिक करेगा उसके आगे चढ़ने का, यानी सत्तपुरुष पहुंचने का इरादा नहीं रखता है तो उसका भी पूरा उद्धार नहीं होगा यानी जन्म मरण उसका, चाहे बहुत देर बाद होवे, जारी रहेगा। इस वास्ते सब को चाहिए कि पहले और दूसरे दर्जे के धुन्यात्मक और गुणात्मक नाम का भेद और जुगती लेकर अभ्यास में लगें तो कारज पूरा होगा । मालूम होवे कि ब्रह्मांड के धुन्यात्मक नाम को लक्ष्य और वर्णनात्मक को वाच्य स्वरुप ब्रह्म का कहते हैं। क्रमश: 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[24/03, 11:07] Dei साहबदास: *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश -भाग 2- कल का शेष :-(९) परम कृपा जब गुरु करें परम दया कर्तार। पूरे गुरु के खोज की तब पावे जिव सार।।। जब किसी पर गुरु महाराज की परम कृपा हो और सच्चे मालिक कुल कर्तार की परम दया हो तभी उस शख्स के हृदय में पूरे गुरु की तलाश का शौक पैदा होगा यानी सच्चे मालिक की किसी शख्स के लिए मौज हो कि जगत् से न्यारा करके उसको मुक्ति की अवस्था प्राप्त कराई जावे और नीज पूरे गुरु की, जो संसार में मौजूद हों, मौज हो कि उनकी मारफत उस शख्स के जीव का कल्याण हो तो उसके दिल में सच्चे और पूरे गुरु की तलाश का शौक पैदा हो सकता है । इसलिये धन्य है वो लोग जो चाहे किसी भी मजहब या सोसाइटी या संसारी अवस्था में हो लेकिन उनके अंदर सच्चे गुरु की तलाश का शौक कायम है। यह शौक वृथा ना जाएगा बल्कि जरूर एक दिन उनको पूरे गुरु से मिलाकर रहेगा और पूरे गुरु से मिलने पर उनके जीव के कल्याण की कार्यवाही सहज में शुरू हो जावेगी। लेकिन अफसोस है उन लोगों के हाल पर जो देह के बंधनों में फंसे हैं और जिनके घट में कुमति यानी कुबुद्धि ने निवास कर रखा है और जो संसार के ही सुख चाहते हैं। चूँकि संसार में ज्यादतर इसी किस्म के लोग हैं इसलिए आमतौर पर पूरे गुरु और शिष्य की तलाश का सच्चा शौक देखने में आता है।। (१०) देह फंद जिव फाँसिया कुमति किया घट बास। पूरे गुरु और शिष्य की कौन धरे मन आस।। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
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