दोहे
न "धैर्य"
दस लक्षण हैं धर्म के, प्रथम धैर्य का नाम।
धैर्य सदा धारण करें, ज्यों पुरुषोत्तम राम।।-१
सदा धैर्य को धारिए, कभी न बनें अधीर,
सुख-दुख में समदर्शिता, रखते केवल वीर।।-२
धीर- वीर-गंभीर जो,कर जाते हैं काम।
उनका ही होता सदा,यहाँ जगत में नाम।।-३
जीवन का पहिया चले, धूरी धैर्य सशक्त।
धैर्य बिना जीवन कहाँ, मानव रहे अशक्त।।-४
राम कृष्ण या बुद्ध हों, महावीर सम वीर।
विपदा का जब काल था, बने न कभी अधीर।।-५
जीवन में रखिए सदा,धैर्य धीरता आप।
संजीवन बूटी यही, मिटे सभी संताप।।-६
विपदा है आई बड़ी, निकल रही है आह।
धैर्य अगर टूटा यहाँ,होगा विश्व तबाह।।-७
विपदा के इस काल में, मानव है जब तंग।
धीर पुरुष बन जीतिए, 'कोरोना' से जंग।।-८
धैर्यशीलता मनुज का, सद्गुण एक महान।
होती विपदा काल में, इस गुण की पहचान।।-९
धारित करती धारिणी, धरा जगत का भार।
धरती की यह धीरता, उपकृत है संसार।।-१०
दिनेश श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment