प्रस्तुति - कृति शरण
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राधास्वामी दयाल की दया।
राधास्वामी सहाय।
सभी सत्संगी
भाई बहनों को हार्दिक सप्रेम राधास्वामी
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"अब यह देह मिली किरपा से,
करो भक्ति जो कर्म दहा।"
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हुजूर स्वामी जी महाराज-
आप फरमाते हैं, कि यह संसार चौरासी का एक बहुत बड़ा जेलखाना है। इसमें से निकलने का, परमात्मा ने सिर्फ एक दरवाजा रखा है।
वह दरवाजा कौन सा है? वह इंसान का जामा है। चौरासी लाख योनियां भुगतने के बाद, परमात्मा यह अवसर, केवल इसीलिए देता है, कि हम इस मौके का फायदा उठाकर, परमात्मा की भक्ति करके, देह के बंधनों से हमेशा के लिए छुटकारा प्राप्त कर लें।
इसीलिए स्वामी जी महाराज फरमाते हैं कि, मालिक की यह अति दया मेहर और बक्शीश है, कि हमें इंसान का जामा मिला है, फिर पता नहीं इंसान का जामा मिले मिले, न मिले ना मिले, या किसी ऐसी जगह जाकर जन्म हो जाए, जहां भूले भटके भी हमारा ख्याल, मालिक की भक्ति की ओर न जा सके।
अगर इस देह में आने का कोई लाभ है, तो वह केवल परमात्मा की भक्ति, और उसका प्यार है। बाल बच्चे तो हमें हर जन्म में मिलते आए हैं, खाना-पीना, एशो इशरत हमेशा करते आए हैं, अगर कोई अनोखी चीज है, जो पहले हासिल नहीं की, तो वह केवल परमात्मा की भक्ति है, परमात्मा का प्यार है, परमात्मा की प्राप्ति है।
इसलिए स्वामी जी महाराज हमें याद दिलाते हैं, कि यह मालिक की अति दया मेहर और बख्शी समझो, कि उसने हमें इंसान का जामा बख्शा है। हमें इस देह मे बैठकर, मालिक की बख्शीश से, फायदा किस तरह उठाना है?
फरमाते हैं, "करो भक्ति जो कर्म दहा"- कि हमें वह भक्ति करनी है, जिसके द्वारा हमारे कर्मों का सिलसिला ही खत्म हो जाए।
और वह भक्ति, केवल और केवल 'नाम-भक्ति' ही है।
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।।।।।।।।।
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