Friday, March 27, 2020

डायरी / दीपाली जैन





मुँह दिखाई की रस्म के तहत हाज़िर है नया गीत
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पुरानी डायरी में कल तुम्हारे ख़त का मिल जाना
बड़ा मुश्किल हुआ है ऐसे में इस दिल को समझाना
तभी से सोचती हूँ फ़ोन करके पूछ लूँ तुमसे
कहो क्या तुमको मेरी ज़िंदगी में फिर से है आना

गुलाबी चिट्ठियां अब भी गुलाबों सी महकती हैं
मेरे दिल के बगीचे में परिंदों सी चहकती हैं
तुम्हारी याद ने अंगड़ाई ली है जबसे जीवन में
पुरानी हसरतें क्यूँ जाने रह रह कर बहकती हैं
तलब आंखों में तुमको देखने की फिर से जागी है
सुनो ऐसा करो इक हॉट सी फ़ोटो तो भिजवाना

 कभी तन्हाइयों में बैठकर मैं यूँ भी करती हूँ
तुम्हारी फेसबुक पर जाके थोड़ा घूम लेती हूँ
बिछड़ते वक़्त तुमने हाथ जब मुझसे मिलाया था
मैं अक्सर याद कर वो पल हथेली चूम लेती हूँ
कहो क्या तुम भी मुझको इंस्टा पर ढूंढा करते हो
तुम्हें मिलती है फ़ुर्सत क्या मेरी ख़ातिर ये बतलाना

मेरे मन में उठी है बात इक तुमको मैं बतलाऊँ
तुम्हारी ज़िन्दगी में दिल कहे फिर से चली आऊं
मेरी बातें , मेरी आंखें , मेरे लब याद हैं तुमको
अगर मुझको इजाज़त हो तो तुम पर प्यार बरसाऊं
वो गुलमोहर के जिसके नीचे हम तुम रोज़ मिलते थे
उसी की छाँव में इक रोज़ फिर गलती से मिल जाना

दीपाली जैन 'ज़िया'

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