प्रस्तुति - उषा रानी/
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाक्यात- 10 अगस्त 1932
-बुधवार
:- गोदावरी कुंभ का मेला होने वाला है ।कल मुलतान, जालंधर और लुधियाना की पार्टियां दयालबाग देखने आई। आज भी बहुत से लोग आए। सीधे-साधे भाइयों की हालत देखकर तरस आता है कितनी तकलीफें बर्दाश्त करते हैं, कितना रुपया खर्च करते हैं मगर किस लिये? आज एक पार्टी सरहिंद की आई। उसमें से दो स्त्रियों ने उपदेश के लिए दरखास्त की और कहा कि कल सुबह चले जाना है इसलिए फोरन उपदेश मिलना चाहिए। मथुरा वृंदावन में इतने दिन रहे और दयालबाग के लिए सिर्फ चंद घंटे नियत किये। करीब आधा घंटा के उन्हें समझाया मगर पुराने संस्कार कब पीछा छोडते है।।
डेरी के मवेशियों में एकाएक बिमारी फैल जाने की खबर मिली। एक बछडा मर गया। एक गाय और एक बछडी सख्त बीमार है। शहर में मवेशियों के डाक्टर साहब को बुलवाया। मालूम हुआ कि यह बिमारी और जगह भी फैली हुई है। इलाज सिर्फ टीका है। सीरम पर प्रति जानवर 4 आना खर्च पडता है। सीरम मंगवाया गया है। आने पर फौरन सब जानवरों को टीका लगवाया जायेगा।
फिलहाल शेष गल्ला की हिफाजत के लिये बंदोबस्त कर दिया गया। खैर डेरी के जानवरों की तो हिफाजत हो जाएगी मगर देहात के जानवरों का क्या हाल होगा ? उनका कौन हाल पूछने वाला है? सच है इस दुनिया में अनाथ से बढ़कर किसी की हालत दयनीय नहीं है ।चाहे वह इंसान हो या हैवान, एक अकेला हो या समूह, एक एक कस्बा हो या एक मुल्क , बिना मां बाप के बच्चे का , बिना कमांडर के फौज का, बिना लीडर के जमाअत और बिना हमदर्द जमींदार के पशुओं का बुरा ही हाल होता है:- जग में दुखिया बहुत हैं रोग सोग से दीन पर दुखिया नहीं बालसम मात-पिता से हीन। दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ कि इस मौसम में हर साल हिंदुस्तान में लाखों मवेशी मर जाते हैं। जिसके मानी है कि गरीब किसानों का हर साल करोड़ों रुपए का नुकसान होता है और लाखों बेजुबान जानवरों मक्खियों की मौत मरते हैं।
इस मामले में अगर गवर्नमेंट खास तवज्जो दें और भी मवेशियों पर बड़ा एहसान हो। अब जरूरत इस बात की है कि कमजोर छोटे कद के कारण पैदा करने वाले जानवरों को औलाद पैदा करने से वंचित किया जावे और जानवरों को तंदुरुस्त रखने के लिए खास तौर पर बंदोबस्त किया जावे ।कमजोर नाकारा जानवर खुद भी दुख उठाते हैं और बदकिस्मत जमीदारों की मुसीबत में भी बहुत इजाफा करते हैं।क्या यह मुमकिन नही कि चमडे की चीजों पर खास टैक्स लगाकर बेजुबान जानवरों को जिंदगी बसर करने का मौका दिया जा सके?
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-सतसंग के उपदेश-भाग-2-
कल से आगे:- (४)
रोग सोग चिंता मिटी सुमति दात गुरु दीन। परख मौज कुछ पाय कर संनय सभी टलीन।।।
(५) उमंग उमंग सेवा करें उमंग उमंग सत्संग ।उमंग सहित समिरन करें उमंग सहित धुनसंग।।।
सच्चा शिष्य नफा व नुकसान की हालतों की परवाह न करता हुआ राजी बराजा रहकर हर रोज नई उमंग के साथ गुरु महाराज की सेवा करता है और उनके सतसंग में हाजिरी देता है, उनके बतलाए हुए नाम के सुमिरन की युक्ति की कमाई करता है और अंतर में चेतन शब्द या अनहद शब्द की धुन से मेल करता है ।।
(६) बलिहारी वा शिष्य के हौं वारी सौ बार। जड़ चेतन का भेद जिन चीन्ह लिया मनमार।।
(७) कारज जग के सब करें सुरत रहे अलगान। कमल फूल नित बास जल सौ भी अलग रहान।।।
मैं ऐसे शिष्य के ऊपर बार-बार कुर्बान हूं जिसने गुरु महाराज का बतलाया हुआ योगासाधन करके अपने मन को बस कर लिया है और जड व चेतन यानी अर्ज व जौहर का फर्क जान लिया यानी प्रत्यक्ष कर लिया और जो इस ज्ञान प्राप्त होने पर भी अपने सभी दुनियावी फरायज बदस्तूर अदा करता रहता है यह नहीं कि लाचार बनकर या जगत से विरक्त होकर अपने दीनी व दुनियावी फरायज की जानिब से लापरवाह हो जाए बल्कि सभी फरायज बदस्तूर सरअंजाम देता रहे।
अलबत्ता अपनी सुरत यानी तवज्जुह को अंतर्मुख रक्खे जैसे कमल का फूल हरचंद हमेशा जल में निवास करता है लेकिन फिर भी पानी से अलग रहता है।।
(८) गुरु पूरे दुर्लभ अती तीन लोक के माहिं। पूरा शिष भी सहज से ढूंढ मिलेगा नाहिं।।। यह दुरुस्त है कि पूरे गुरु तीन लोक में अति दुर्लभ है यानी तलाश करने पर निहायत मुश्किल से नसीब होते हैं लेकिन बाजह हो कि पूरा और सच्चा शिष्य भी ढूंढने पर आसानी से ना मिलेगा यानी पूरा शिष्य बनना भी दुश्वार है।
क्रमश:🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
परम गुरु हुजू महाराज
- प्रेम पत्र -भाग 1 -कल से आगे:-
जो वर्णात्मक नाम की आजकल मशहूर है वह दूसरे या तीसरे दर्जे के नाम है और जो अभ्यास कि लोग कर रहे हैं वह या तो जबानी सुमिरन है या बगैर पते नाम वाला और उसके धाम और उसके रास्ते के, या स्वाँसा से जाप करते हैं, और या हृदय और नाभि के मुकाम पर उसका उच्चारण शुरू करते हैं। मगर इन सब चीजों में ठीक-ठीक पता नामी और उसके धाम और उसके रास्ते का किसी को मालूम नहीं।
इस सबब से इस किस्म के अभ्यासियों की मेहनत और वक्त मुफ्त बर्बाद जाते हैं और कुछ असर नाम के अभ्यास का उनके दिल पर नहीं होता, यानी नामी की मोहब्बत और उसके मिलने का शौक पैदा नहीं होता। इस तरह पर चाहे कोई लाखों नाम लेने पर उससे कुछ फायदा परमार्थी नहीं उठा सकता है। जो वर्णनात्मक नाम का अभ्यास जुगत के साथ और नामी का पता मालूम करके किया जावे, तो जल्द अंतर में सफाई हासिल होती हुई मालूम पड़े और मन में शौक भी पैदा हो ।
यह जुगत राधास्वामी मत में बहुत खोल कर समझाई जाती है उसका फायदा भी अभ्यासियों को जल्द मालूम होता है। अब जो कोई अपना उद्धार चाहे उसको मुनासिब है कि वर्णनात्मक और धुन्यात्मक नाम का अभ्यास राधास्वामी मत की जुगत के मुआफिक शुरू करें, तो कोई दिन में उसको अपने अंतर में इस अभ्यास से मुक्ति प्राप्त होने का यकीन अपने आप हो जाएगा और सच्चे मालिक के चरणो में प्रेम दिन ब दिन बढता जाएगा।
क्रमश–
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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