Tuesday, March 31, 2020

संकटमोचक हनुमान



प्रस्तुति - राकेश सिन्हा

[31/03, 08:45] +91 98682 75147: हनुमान् के कई अर्थ हैं-(१) पराशर संहिता के अनुसार उनके मनुष्य रूप में ९ अवतार हुये थे।
(२) आध्यात्मिक अर्थ तैत्तिरीय उपनिषद् में दिया है-दोनों हनु के बीच का भाग ज्ञान और कर्म की ५-५ इन्द्रियों का मिलन विन्दु है। जो इन १० इन्द्रियों का उभयात्मक मन द्वारा समन्वय करता है, वह हनुमान् है।
(३) ब्रह्म रूप में गायत्री मन्त्र के ३ पादों के अनुसार ३ रूप हैं-स्रष्टा रूप में यथापूर्वं अकल्पयत् = पहले जैसी सृष्टि करने वाला वृषाकपि है। मूल तत्त्व के समुद्र से से विन्दु रूपों (द्रप्सः -ब्रह्माण्ड, तारा, ग्रह, -सभी विन्दु हैं) में वर्षा करता है वह वृषा है। पहले जैसा करता है अतः कपि है। अतः मनुष्य का अनुकरण कार्ने वाले पशु को भी कपि कहते हैं। तेज का स्रोत विष्णु है, उसका अनुभव शिव है और तेज के स्तर में अन्तर के कारण गति मारुति = हनुमान् है। वर्गीकृत ज्ञान ब्रह्मा है या वेद आधारित है। चेतना विष्णु है, गुरु शिव है। उसकी शिक्षा के कारण जो उन्नति होती है वह मनोजव हनुमान् है।
(४) हनु = ज्ञान-कर्म की सीमा। ब्रह्माण्ड की सीमा पर ४९वां मरुत् है। ब्रह्माण्ड केन्द्र से सीमा तक गति क्षेत्रों का वर्गीकरण मरुतों के रूप में है। अन्तिम मरुत् की सीमा हनुमान् है। इसी प्रकार सूर्य (विष्णु) के रथ या चक्र की सीमा हनुमान् है। ब्रह्माण्ड विष्णु के परम-पद के रूप में महाविष्णु है। दोनों हनुमान् द्वारा सीमा बद्ध हैं, अतः मनुष्य (कपि) रूप में भी हनुमान् के हृदय में प्रभु राम का वास है।
(५) २ प्रकार की सीमाओं को हरि कहते हैं-पिण्ड या मूर्त्ति की सीमा ऋक् है,उसकी महिमा साम है-ऋक्-सामे वै हरी (शतपथ ब्राह्मण ४/४/३/६)। पृथ्वी सतह पर हमारी सीमा क्षितिज है। उसमें २ प्रकार के हरि हैं-वास्तविक भूखण्ड जहां तक दृष्टि जाती है, ऋक् है। वह रेखा जहां राशिचक्र से मिलती है वह साम हरि है। इन दोनों का योजन शतपथ ब्राह्मण के काण्ड ४ अध्याय ४ के तीसरे ब्राह्मण में बता या है अतः इसको हारियोजन ग्रह कहते हैं। हारियोजन से होराइजन हुआ है।
(६) हारियोजन या पूर्व क्षितिज रेखा पर जब सूर्य आता है, उसे बाल सूर्य कहते हैं। मध्याह्न का युवक और सायं का वृद्ध है। इसी प्रकार गायत्री के रूप हैं। जब सूर्य का उदय दीखता है, उस समय वास्तव में उसका कुछ भाग क्षितिज रेखा के नीचे रहता है और वायुमण्डल में प्रकाश के वलन के कारण दीखने लगता है। सूर्य सिद्धान्त में सूर्य का व्यास ६५०० योजन कहा है, यह भ-योजन = २७ भू-योजन = प्रायः २१४ किमी. है। इसे सूर्य व्यास १३,९२,००० किमी. से तुलना कर देख सकते हैं। वलन के कारण जब पूरा सूर्य बिम्ब उदित दीखता है तो इसका २००० योजन भाग (प्रायः ४,२८,००० किमी.) हारियोजन द्वारा ग्रस्त रहता है। इसी को कहा है-बाल समय रवि भक्षि लियो ...)। इसके कारण ३ लोकों पृथ्वी का क्षितिज, सौरमण्डल की सीमा तथा ब्रह्माण्ड की सीमा पर अन्धकार रहता है। यहां युग सहस्र का अर्थ युग्म-सहस्र = २००० योजन है जिसकी इकाई २१४ कि.मी. है।
तैत्तिरीय उपनिषद् शीक्षा वल्ली, अनुवाक् ३-अथाध्यात्मम्। अधरा हनुः पूर्वरूपं, उत्तरा हनुरुत्तर रूपम्। वाक् सन्धिः, जिह्वा सन्धानम्। इत्यध्यात्मम्।
अथ हारियोजनं गृह्णाति । छन्दांसि वै हारियोजनश्चन्दांस्येवैतत्संतर्पयति तस्माद्धारियोजनं गृह्णाति (शतपथ ब्राह्मण, ४/४/३/२) एवा ते हारियोजना सुवृक्ति ऋक् १/६१/१६, अथर्व २०/३५/१६)
तद् यत् कम्पायमानो रेतो वर्षति तस्माद् वृषाकपिः, तद् वृषाकपेः वृषाकपित्वम्। (गोपथ ब्राह्मण उत्तर ६/१२)आदित्यो वै वृषाकपिः। ( गोपथ ब्राह्मण उत्तर ६/१०)स्तोको वै द्रप्सः। (गोपथ ब्राह्मण उत्तर २/१२)

हनुमान की जन्म तिथि-
पंचांग में हनुमान जयन्ती की कई तिथियों दी गई हैं पर उनका स्रोत मैंने कहीं नहीं देखा है। पंचांग निर्माताओं के अपने अपने आधार होंगे।  पराशर संहिता, पटल 6 में यह तिथि दी गई है-
तस्मिन् केसरिणो भार्या कपिसाध्वी वरांगना।
अंजना पुत्रमिच्छन्ति महाबलपराक्रमम्।।29।।
वैशाखे मासि कृष्णायां दशमी मन्द संयुता।
पूर्व प्रोष्ठपदा युक्ता कथा वैधृति संयुता।।36।।
तस्यां मध्याह्न वेलायां जनयामास वै सुतम्।
महाबलं महासत्त्वं विष्णुभक्ति परायणम्।।37।।
इसके अनुसार हनुमान जी का जन्म वैशाख मास कृष्ण दशमी तिथि शनिवार (मन्द = शनि) युक्त पूर्व प्रोष्ठपदा (पूर्व भाद्रपद) वैधृति योग में मध्याह्न काल में हुआ।
बाल समय रवि भक्षि लियो तब तीनहु लोक भयो अन्धियारो।
= यदि इसका अर्थ है कि हनुमान जी के जन्म दिन सूर्य ग्रहण हुआ था तो उनका जन्म अमावस्या को ही हो सकता है। दिन के समय ही सूर्य ग्रहण उस स्थान पर दृश्य होगा।
युग सहस्त्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
= सूर्य युग सहस्त्र या 2000 योजन पर नहीं है। तुलसीदास जी ने सूर्य सिद्धांत पढ़ा था जिसमें सूर्य का व्यास 6500 योजन (13,92,000 किमी) दिया है।
इन दोनों को मिला कर अर्थ-
सूर्य की दैनिक गति हमको पूर्व क्षितिज से पश्चिमी क्षितिज तक दीखती है। इसमें सूर्योदय को बाल्यकाल, मध्याह्न में युवा तथा सायंकाल को वृद्धावस्था कहते हैं। सूर्य के अंश रूप गायत्री की इसी प्रकार प्रार्थना होती है।
पूर्व तथा पश्चिमी क्षितिज पृथ्वी सतह पर दृश्य आकाश के दो हनु हैं। इन दो हनु के बीच सूर्य की दैनिक गति का पूरा जीवन समाहित है।
जब हमको सूर्य उदय होते दीखता है तब वह वास्तव में क्षितिज से नीचे होता है, पर वायुमंडल में किरण के आवर्तन से मुड़ने के कारण पहले ही दीखने लगता है। इसको सूर्य सिद्धांत में वलन कहा गया है। सूर्य का व्यास सूर्य सिद्धांत में 6500 योजन है जहाँ योजन का मान प्रायः 214 किमी है। जब व्यास का 2000 योजन क्षितिज के नीचे रहता है तभी पूरा सूर्य बिम्ब दीखने लगता है। यही युग (युग्म) सहस्त्र योजन पर भानु है जिसको क्षितिज रूपी हनु निगल जाता है।

युग सहस्र योजन पल भानु,  लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
युग = युग्म = 2। युग सहस्र योजन = 2000 योजन। सूर्य सिद्धान्त में सूर्य का व्यास 6500 योजन कहा गया है। यहां 1 योजन = 27 × भू योजन। पृथ्वी का व्यास 1600 योजन कहा गया है जो प्रायः 12800 कि.मी. है। अतः भू-योजन = प्रायः 8 कि.मी.।पृथ्वी से चन्द्र तक की दूरी इस माप में है। सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी भ-योजन में है। अन्य ग्रह तारा जैसे दीखते हैं,  अतः उनको तारा-ग्रह कहते हैं। भ = नक्षत्र जो 27 हैं। अतः भ = 27 और भ-योजन = 27 × भू योजन। सूर्य उदय से थोड़ा पहले जब वह क्षितिज के 2000 योजन अर्थात् व्यास का प्रायः 1/3 भाग नीचे होता है तभी दीखने लगता है। इसका कारण प्रकाश किरण का वलन कहा गया है और इसकी माप सूर्य सिद्धान्त में दी गयी है। बल = शक्ति। बल द्वारा ही गति की दिशा बदलती है (न्यूटन का गति का दूसरा नियम),  अतः मुड़ने को वलन या बलन कहते हैं, जैसे पद लचक कमर बल खाये। हनु = ओठ। 2 ओठ के बीच मुंह में सबका ग्रास होता है। पृथ्वी की सतह पर से दीखता पूरा आकाश 2 क्षितिज = हनु के बीच में है, अर्थात् हनुमान द्वारा निगला हुआ है। जब सूर्य क्षितिज से 2000 योजन नीचे अर्थात् हनुमान द्वारा ग्रस्त होता है तभी दीखने लगता है।
 मनुष्य शरीर में ओठों का मध्य 5 ज्ञानेन्द्रिय और 5 कर्मेन्द्रिय का सन्धि स्थान है। ज्ञान और कर्म दोनों का मन द्वारा समन्वय (मनोजव) करने वाला हनुमान है (तैत्तिरीय उपनिषद्, शीक्षा वल्ली)।
पृथ्वी के भीतर 3 क्षेत्र हैं। उसके बाहर के क्षेत्र क्रमशः 2-2 गुणा बड़े हैं (बृहदारण्यक उपनिषद,  अध्याय 3)।33 क्षेत्र तक सौर मण्डल है। प्रत्येक क्षेत्र का प्राण 1-1 देवता है। इन 33 देवताओं के चिह्न क से ह तक के अक्षर हैं। चिह्न रूप में देवों का नगर होने के कारण इस लिपि को देवनागरी कहते हैं। ब्रह्माण्ड की सीमा 49 क्षेत्रों तक है, जिनकी गति या प्राण 49 मरुत् हैं। उनकी सीमा के बाद का क्षेत्र उसकी सन्तान हनुमान है। यहां ब्रह्माण्ड या आकाश गंगा के 2 छोर 2 हनु हैं। उनके भीतर सभी सूर्य जैसे तारा हैं (ऋग्वेद 1/22/20)।
पिता का युग समाप्त होने पर पुत्र का युग आरम्भ होता है। अतः प्रभाव क्षेत्र की सीमा को पुत्र कहते हैं। ठोस ग्रहों में पृथ्वी सबसे बड़ी है। ठोस ग्रहों की सीमा पर मंगल है अतः उसे पृथ्वी का पुत्र (भौम) कहा गया है। जिन ग्रहों के आकर्षण का पृथ्वी पर प्रभाव पड़ता है उनकी सीमा पर शनि है। अतः शनि सूर्य का पुत्र सौरि है। जैसे चन्द्र पृथ्वी की कक्षा में है,  उसी प्रकार सूर्य के सबसे निकट बुध को चन्द का पुत्र कहते हैं। एक आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार बुध पहले पृथ्वी की कक्षा में चन्द्रमा के बाहरी क्षेत्र में था। अतः चन्द्र का पुत्र था। धीरे धीरे दूर खिसकने के कारण यह पृथ्वी के आकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल गया। शुक्र सूर्य के निकट होने के कारण उसकी कक्षा में नहीं आ पाया और सूर्य का ग्रह बन गया।
[31/03, 09:40] +91 99109 39227: राशन तो 8,10  दिनों का सब ने कोशिश की ही है घर मे रखने की , ग्रोसरी स्टोर्स भी खुले हैं , सामान देर सवेर मिल ही जायेगा , क्योंकि भगवान की दया से हम सब इतने सम्पन तो हैं ही ,

पर एक प्रार्थना है के plz अगर आप रोज़ 2 सब्जी बनाते हैं तो अब 1 बनाइये ,
दाल हो सके तो थोड़ी पतली रखिये , कोशिश कीजिये चावल का एक दाना भी व्यर्थ ना हो , जितना ज़रूरत है उतना पकायें और अगर फिर भी बच जाए तो पहले उस बचे हुए खाने को खाये और ईश्वर को धन्यवाद दें के कम से कम मिल तो  रहा है....

सीमित खाइये , संयमित खाइये ......

हिन्दू धर्म तथा देशहित के लिए महाराणा प्रताप को घास की रोटियां तक खानी पडी लेकिन वे चट्टान की भांति दुश्मन के सामने अडे रहे।

घर पर हैं तो हर घण्टे ये मत पूछिए सुनो , कुछ खाने को है क्या 🙈  समय से खाइये , कम खाइये 🙏

क्योंकि माना आपके पास पैसा है आप खरीद सकते हैं , आप 6 महीने तक का राशन स्टोर कर सकते हैं पर देश के पास संसाधन सीमित हैं .....

ऐसा ना हो हम सब कुछ अपने घरों में इकट्ठा कर लें और कुछ  लोगो को और ज्यादा मुश्किल हो जाये

 अपने बारे में सोचिये पर दूसरों के बारे में भी सोचिये  🙏

परीक्षा का समय है उम्मीद है के हम सब अच्छे मार्क्स के साथ इस परीक्षा में उत्तीण होंगे 🙏

No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...