प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
सतसंग के उपदेश
भाग-1
(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
बचन (15)
सच्ची भक्ति की महिमा।
संतमत का मूल सिद्धान्त सतगुरुभक्ति है। सतगुरु से मुराद किसी ज़ाहिरा अच्छी रहनी गहनी वाले या विद्वान या अमीर शख़्स से नहीं है और न ही भक्ति का मतलब चन्द ज़ाहिरी रस्मियात का बजा लाना है बल्कि बक़ौल गुरु नानक साहब-
''सत्तपुरुष जिन जानिया सतगुरु तिनका नावँ।''
सतगुरु वह महापुरुष है जिसने सच्चे कुल मालिक से संयोग हासिल कर लिया है और भक्ति से मतलब अपना तन, मन, धन और सुरत ऐसे महापुरुष के चरणकमलों में न्योछावर करने से है।
गीता में कृष्ण महाराज ने फ़रमाया है कि हज़ारों मनुष्यों में कोई एक सिद्धि के लिये यत्न करता है और हज़ारों सिद्धों में कोई एक वास्तव में मुझको जानता है।
मालूम होवे कि जैसे सच्चे कुल मालिक के तत्त्व को साक्षात्कार कर लेना कठिन है वैसे ही सतगुरु की गति को समझ कर उनके चरणों में पूर्ण भक्ति करना भी निहायत कठिन है। आम तौर पर जीव संसार के दुखों व तकलीफ़ों से बचाव हासिल करने या तकलीफ़ के वक़्त इम्दाद पाकर शुकराना अदा करने के लिये भक्ति के अंग में बरतते हैं मगर यह असल भक्ति नहीं है क्योंकि इस क़िस्म की भक्ति से असली परमार्थी नफ़ा हासिल नहीं हो सकता।
संतमत में जिस भक्ति की महिमा है वह प्रेम के बस की जाती है न कि किसी क़िस्म के डर या लोभ की वजह से। ऐसी भक्ति सिर्फ़ ऐसे सज्जन पुरुषों से बन सकती है जिनके दिल से दुनियवी नफ़े नुक़सान की महिमा जाती रही है, जो राज़ी व रज़ा रह कर गुज़रान करते हैं,जिनको अन्तरी व बाहरी पर्चे से सतगुरु की उच्च गति की निस्बत सच्चा विश्वास हो गया है और जिन पर सतगुरु की निज दयादृष्टि पड़ी है।
वैसे तो हर सतसंगी अपने तईं सतगुरु भक्त ख़्याल करता है और इसमें शक नहीं कि बग़ैर भक्ति का लेश दिल में मौज़ूद रहे कोई सतसंग में ठहर नहीं सकता लेकिन वह भक्ति, जो असली काम बनाने वाली है, ज़रा मुश्किल से हासिल होती है।
जिसको सच्ची और पूरी भक्ति प्राप्त है उसकी यह हालत होती है कि सच्चे मालिक या सतगुरु का नाम सुनते ही या ज़बान पर आते ही उसके रोम रोम में हरकत आ जाती है और हुज़ूरी दया का ज़रा सा ज़िक्र होने पर उसकी आँखों में नमी नमूदार हो जाती है,उसके दिल में वक़्तन् फ़वक़्तन् यह जोश उठता रहता है कि अपना तन, मन, धन सब का सब हुज़ूरी चरणों में भेंट कर दे, उसको तमाम प्रेमीजन निहायत प्यारे लगते हैं, वह बड़े से बड़े गुनहगार शख़्स पर दया करने के लिये तैयार रहता है और उसके दिल में किसी के लिये दुश्मनी या नफ़रत नहीं होती।
हुज़ूर राधास्वामी दयाल ऐसी दया फ़रमावें कि हम सबको ऐसी ही सच्ची व गहरी भक्ति प्राप्त हो। आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि इस दौलत के हासिल होने पर हमारे लिये परमार्थी या स्वार्थी तरक़्क़ी के मैदान में क़दम बढ़ाना कैसा सहल हो जाता है और कैसे सतसंगियों की जमाअत आप सुख के साथ ज़िन्दगी बसर करती हुई प्राणीमात्र को सुखी बना सकती है और हमारे लिए अपनी जमाअत का इन्तिज़ाम करना किस क़दर आसान हो जाता है।
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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