"मालिक से सम्हाल करने की फ़रियाद करने का तरीका"
जितना हो सके हम सब लोग सुमिरन ध्यान का सिलसिला जारी रखें, अगर यह नही करा तो तकलीफ अपने को ही होगी।
मेरा विश्वा है अगर हम सब मिल कर ये काम करेंगे और मालिक के चरणों मे लिप्त हो जाते है तो केवल कुछ ही दिनों मे सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा।
आप सब से अनुरोध है समय ना गवाते हुए इस आपदा भरे समय मे सुमिरन ध्यान पे अत्यधिक समय दे।
🙏🏻🙏🙏🏻 *राधास्वामी* 🙏🏻🙏🙏🏻
आप की कृपा से मालिक
जब भी हम दयालबाग़ आते थे ।
सुनते थे सत्संग आपका,
और दर्शन भी कर पाते थे ।
मिट जाते थे भ्रम कई,
कर्म भी कई कट जाते थे ।
कभी आपके सत्संग घरों में,
जब हम सेवा पर आते थे ।
संगत रूप में भी आपके,
दर्शन हम कर जाते थे ।
भटकते मन को चैन और,
रूह को करार पाते थे ।
यह कैसी आँधी "करोना "की,
चला दी ........
दर्शनों से भी दूर किया,
सेवा भी छुड़वा दी ।
माना कर्म दुष्कर्म हमारे हैं,
बड़ी सख्त सजा दी ।
दया करो,अब तो बख्श दो ,
बख्शन हार दाता जी ।
पापी घने हैं चाहे हम ,
आपका ही हैं परिवार दाता जी।
हम नादान निमानों को लौटा दो
पहले सा ही प्यार दाता जी ।🙏
[कुछ जरूरी नियम*)
*1.जिस जिह्वां से मलिक का नाम लेते हो उसे गंदा मत करो शुक्र दिन रात करो.*
*2. जिस नजर से मालिक का दीदार करते हो उसे नेक और पवित्र रखो.*
*3. जिन कानो से सतगुरू की मीठी वाणी सुनते हो उनमे अपवित्रता मत डालो.*
*4. जिस मन को सुमिरन मे लगाते हो उसको दुनियावी ख्यालो मे मत लगाओ.*
*फ़िर देखो उसकी रहमत कीे कैसे बारिश होती है*🙏🏽🙇🏻♂
*मत कोई भरम भूले संसारा
*गुरू बिन कोई न उतरै पारा*
: राधास्वामी दयाल की दया ,
राधास्वामी सहाय,
बयां मै तेरी मोहब्बत का कैसे करूँ ,
समुन्दर को कुजे में क्योंकर भरूँ
राधास्वामी🙏🙏🙏🙏
*मिश्रित बचन*
*(सतसंग के उपदेश, भाग-1)*
*3 - जब कभी कोई तकलीफ़ सिर पर आवे तो मत घबराओ*
*क्योंकि तुम अकेले नहीं हो ;*
*हुज़ूर राधास्वामी दयाल तुम्हारे अंग-संग रक्षक व सहायी मौजूद हैं।*
*यह सच है कि दुनिया के सब काम हमेशा तुम्हारी मर्ज़ी के मुवाफ़िक़ नहीं हो सकते,*
*लेकिन याद रक्खो कि उन दयाल की रक्षा का पंजा सिर पर रहते हुए तुम्हारा कभी असली परमार्थी बिगाड़ भी नहीं हो सकता।*
*अगर मौज कभी तुम्हारे मन की गढ़त करने की होगी तो भी दया का हाथ तुम्हारे अंगसंग रहेगा :--->*
*''गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,*
*गढ़ गढ़ काढ़ें खोट।*
*अन्तर हाथ सहार दे,*
*बाहर बाहें चोट॥''*
*5 -* सच्चे प्रेमीजन को चाहिये कि अपने सभी धर्मों का ख़ुशी से पालन करे और धर्मपालन के सिलसिले में अगर उसे कभी दुख तकलीफ़ सहनी पड़े तो ख़ुशी से मंज़ूर करे।
*ऐसा न होना चाहिये कि तकलीफ़ की सूरत नमूदार होते ही वह धर्म से पतित हो जावे।*
ऐसे मौक़ों पर दिल को मज़बूत रखने से भारी परमार्थी तरक़्क़ी होती है और *जल्द ही प्रेमीजन मालिक का गहरा दयापात्र बन जाता है।*
*6 -* पिछले बुज़ुर्गों की जो तालीम है वह अव्वल तो ऐसी भाषा में है कि जिसका समझ लेना हर किसी के लिये आसान नहीं है, और दूसरे ख़ुदमतलबी लोगों ने उसके अन्दर ऐसी मिलावट कर दी है कि असल और मिलावट का छाँट लेना निहायत कठिन हो गया है।
*सतसंगियों के बड़े भाग हैं कि उनके लिये हुज़ूर राधास्वामी दयाल की शिक्षा सरल और निर्मल रूप में मौजूद है और हमेशा मौजूद रहेगी।*
*🙏🙏🙏राधास्वामी🙏🙏🙏*
.........राधा स्वामी जी........
*अगर हम परमात्मा से मिलने वाली हर चीज को उसकी बख्शीश उसकी अमानत समझकर अपनाएँ तो वह- वह चीज पवित्र हो जाती है अपमान सम्मान बन जाता है कड़वाहट मिठास बन जाती है और अंधेरा प्रकाश बन जाता है हर एक चीज में परमात्मा की महक आने लगती है.....*
सतसंग के उपदेश
भाग-1
(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
मिश्रित बचन
38- दुनिया के लोग बड़े शौक़ के साथ देवताओं की पूजा करते हैं और आशा रखते हैं कि इस पूजा से देवता उन्हें मुक्ति प्रदान करेंगे। मगर तअज्जुब यह है कि कोई भी यह तहक़ीक़ करने की कोशिश नहीं करता आया उन देवताओं को ख़ुद भी मोक्ष प्राप्त है। जब कि ये देवता सृष्टि के काम में लगे हैं और सृष्टि की सँभाल की सेवा उनके सुपुर्द है, तो उनसे मोक्ष हासिल करने की आशा बाँधना लाहासिल है। वे सृष्टि के ही अन्दर नीच ऊँच योनि दिला सकते हैं, इससे ज़्यादा उन्हें अधिकार हासिल नहीं है। उपनिषद् में एक जगह लिखा है कि जब कोई शख़्स देवताओं की उपासना छोड़ कर ब्रह्मविद्या की जानिब मुख़ातिब होता है तो वे उससे ऐसे ही नाराज़ होते हैं जैसे कोई अपने पशु चुराये जाने पर नाराज़ होता है। ऐसी हालत में मोक्ष के तलबगारों को चाहिये कि देवताओं की पूजा को छोड़ कर सच्चे मालिक की भक्ति में लगें और सच्चे मालिक की भक्ति की रीति सच्चे सतगुरु से दरियाफ़्त करें।
राधास्वामी
*【प्रेम प्रचारक】 (
नो घबराहट):-
इस रचना पर काल कर्म धार सदा से गिरती आई है, कर्म प्रधान जगत में सबको कर्म का फल मिलता भाई है। (1) कर्म रेख पर मेख जो मारे ऐसा गुरु हमारा है, सत्संगी गौर हालत में गुरु ही एक सहारा है।(2) दीन दुखी असहाय होय जब सत्संगी घबराता है, " नो घबराहट" का संदेश गुरुमेहर की याद दिलाता है।(3) जब सद्गुरु की यह बानी है फिर घबराना किससे कैसा, सतगुरु ही आप संभालेंगे दुख आये चाहे भी जैसा ।(4) गुरु की दया से काल जाल मन से छटाँक हो जाता है , सूली की सजा भी घट जाती काँटा बन कर चुभ जाता है। (5) मौज समझ हर हालत में जब सत्संगी दृढ रहता है, नो घबराहट का संदेश गुरु मेहर की याद दिलाता है
।(6) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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परम गुरु महाराज साहब जी के पावन जन्मदिवस के अवसर पर उनके चरण कमलों में सादर समर्पित:- 【परम गुरु महाराज साहब जी के मुख्तलिफ वक्तों पर फरमाए हुए बचन】 (34)- सच्चे परमार्थी से जब कोई कसूर बन पड़ेगा, तो वह बहुत पछतावेगा और झुरेगा और दिल से चाहेगा कि आइंदा उससे कोई कसूर ना बन पड़े । वह हमेशा अपने कसूरों को तसलीम करेगा क्योंकि अगर तसलीम ना करें , तो उसमें अहंकार पाया जाता है। कसूर करके साक्षी बनना अब्बल सीढ़ी है और फिर पछताना दूसरी है। मगर जो लोग बजाय साक्षी बनने के तरह तरह से अपने अवगुण को छिपाते हैं, उनकी सीढ़ी तो निहायत ही नीची है।। " उनको नहीं उपदेश हमारा, उनको जगत कामना मारा"।। सच्चे परमार्थी को अगर कोई ऐसे ऐब का इल्जाम लगाए जो उसमें नहीं है , तो भी वह इल्जाम लगाने वाले को झूठा नहीं कहेगा, बल्कि तसलीम करेगा कि हां मुझ में यह ऐब है, क्योंकि उसे ख्याल होगा कि यह ऐब मुझ में गुप्त धरा होगा जो मालिक ने प्रगट कर दिया। यह चाल ,ढंग सत्संगी का होना चाहिए । सच्चा परमार्थी हमेशा दूसरों के कसूरो पर पर्दा डालेगा और अगर उसे किसी का कसूर नजर पड़ेगा, तो वह यह ख्याल करेगा की दर हक़ीक़त उसमें कोई ऐब नहीं , यह मेरी समझ की गलती है। सच्चे परमार्थी का जहां मान होता होगा, वहां से फौरन अपना ताल्लुक तोड़ देगा। और मान की निज पहचान यह है कि अपनी तारीफ सुनकर खुश हो । सच्चा परमार्थी अपने मन भर गुण को रत्ती भर भी नहीं समझेगा और रत्ति भर ऐब को मन भर से बढ़कर समझेगा । अगर कोई सच्चे परमार्थ को उसका कसूर जतावेगा, तो वह उसको बहुत प्यारा लगेगा और उससे बड़ा खुश होगा।। " मेरी प्यारी सहेली हो, दया कर कसर जता दो री"।। सच्चे परमार्थी को बसबब अपने मन की हर वक्त निरख,परख करने के इस बात का मौका ही नहीं मिलेगा कि वह दूसरे के औगुन देखे। बसबब माया के पर्दे के बीच में आने की जहां से कि ताकत आकर हमें मदद दे रही है उसकी खबर ना होना और यह ख्याल होना कि तमाम ताकत हमारे ही पेट में से निकल रही है , इसका नाम अहंकार है। सो जहां तक माया है, वहां तक आपा है**
*(35)- निज दया उस पर है जिसको चारों तरफ से दुनिया में निराश किया जावे। जिधर जिधर निगाह करें, उसी तरफ मायूसी दिखाई दे । हर वक्त चिंता, गम, फिक्र व बीमारी में फंसा रहे, हर तरह का दुनिया का नुकसान हो जावे। जब यह हालत हो जाएगी तो सिवाय मालिक के और किसी का आसरा ना रहेगा। हम लोग इस लायक नहीं हैं कि हैं हालत बर्दाश्त कर सके और जब कभी यह हालत आती है तो मालिक से प्रार्थना करते हैं कि यह दया खींच ली जावे। तो मालिक भी चुप हो रहता है। मगर उस तकलीफ के बदले लाख दर्जे ज्यादा दया आती है और जो रंग की ऐसी हालत के गुजरने के बाद चढ़ता है, वह पक्का होता है। वरना मिलने की हालत रहती है, यानी कभी-कभी रुखा फीकापन। जैसा कि जीव तकलीफ में सच्चा होकर लगता है, वैसा ही कभी आराम की हालत में नहीं लगता। मगर संसारी लोग इस मेहर को कहर यानी मालिक का क्रोध समझते हैं।। ( 45)- कुल सतसंगियों को जो राधास्वामी दयाल के चरणों में आये हैं और जिन्होंने वक्त के सतगुरु से उपदेश लिया है , यह समझना चाहिए कि वह अपनाये गए हैं और यह जरूर बिलजरूर एक दिन अबेर सबेर अपने पिता के निज धाम में पहुंचेंगे और उन पर आइंदा कर्म हरगिज न चढेंगें। उनके पिछले कर्म भी मौज और हिकमत से सहूलियत के साथ कटवाए जाएंगे ।। सतसंगियों को दुख में घबराना और सुख में फूलना नहीं चाहिए, बल्कि दुख और बीमारी आने पर समझना चाहिए कि सतगुरु की अति दया है और महज उनकी संभाल के लिए यह हालत पैदा की गई है। जीव अति निर्बल और लाचार है । उससे कुछ नहीं बन पडता। इसलिए राधास्वामी दयाल खुद देह धर कर अपने बच्चों को अपने निज धाम में पहुंचाने के लिए इस दुनिया में तशरीफ़ लायें है और वह जीव को थोड़ी सी उनके चरणों में प्रीति करने से और दृढ निश्चय उनके चरनों का धारण करने से और राधास्वामी नाम को सच्चा मानने से और उनके चरणों की सच्ची टेक बाँधने से और वक्त ब वक्त मौका मिलने पर उनका बाहरी सत्संग और दर्शन करने से अपना लेंवेगे और निजधाम में पहुंचा देंवेगे । जीव को इसमें हरगिज शक व शुबह न करना चाहिए। राधास्वामी**
*||दोहा|| बार-बार कर जोर कर, सविनय करूं पुकार।। साध संग मोहि देव नित, परम गुरु दातार।। कृपा सिंधु समरथ पुरुष ,आदि अनादि अपार। राधास्वामी परम पितु, मैं तुम सदा अधार।।। ||सोरठा|| बार-बार बल जाउँ, तन मन वारूँ चरण पर । क्या मुख ले में गाऊँ, मेहर करी जस कृपा कर।। धन्य धन्य गुरु देव ,दयासिंधु पूरन धनी। नित्त करूँ तुम सेव, अचल भक्ति मोहि देव प्रभु ।। दीन अधीन अनाथ, हाथ गहा तुम आनकर। अब राखो नित साथ, दीनदयाल कृपानिधि।। काम क्रोध मद लोभ, सब विधि अवगुणहार मैं।।
प्रभु राखो मेरी लाज, तुम द्वारे अब मैं पड़ा।। राधास्वामी गुरु समरत्थ, तुम बिन और न दूसरा। अब करो दया परतक्ष, तुम दर एती बिलँब क्यों।।। ||दोहा|| दया करो मेरे साइयाँ, देव प्रेम की दात। दुख सुख कछु ब्यापे नहीं, छूटे सब उतपात।।
🙏🏻 राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय🙏🏻*
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||सोरठा||
बार-बार बल जाउँ, तन मन वारूँ चरण पर ।
क्या मुख ले में गाऊँ, मेहर करी जस कृपा कर।। धन्य धन्य गुरु देव ,दयासिंधु पूरन धनी। नित्त करूँ तुम सेव, अचल भक्ति मोहि देव प्रभु ।। दीन अधीन अनाथ, हाथ गहा तुम आनकर। अब राखो नित साथ, दीनदयाल कृपानिधि।। काम क्रोध मद लोभ, सब विधि अवगुणहार मैं।।
प्रभु राखो मेरी लाज, तुम द्वारे अब मैं पड़ा।। राधास्वामी गुरु समरत्थ, तुम बिन और न दूसरा। अब करो दया परतक्ष, तुम दर एती बिलँब क्यों।।।
🙏🏻 राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय🙏🏻
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||दोहा||
बार-बार कर जोर कर, सविनय करूं पुकार
।। साध संग मोहि देव नित, परम गुरु दातार।। कृपा सिंधु समरथ पुरुष ,आदि अनादि अपार। राधास्वामी परम पितु, मैं तुम सदा अधार।।।
🙏🏻 राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय🙏🏻
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[28/03, 14:34] +91 94162 65214: राधास्वामी !! 28-03 -2020 - आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे -(92) का शेष:- लोग डालियों को तराशने की फिक्र तो करते हैं लेकिन जड के काटने का ख्याल नहीं करते मगर हर मनुष्य की प्रकृति के संग भी प्रीति सदा कायम नही रह सकती। अगर ऐसा होता तो सृष्टि की कोई भी शक्ति मनुष्य के मोह अंग को नाश न कर सकती और मनुष्य के लिए मोक्ष प्राप्त करना असंभव रहता और संतो व महात्माओं का संसार में तहसील लाना निष्फल ठहरता। लेकिन असली सूरत यह है कि अक्सर मनुष्यों की प्रकृति के संग प्रीति नाश की जा सकती है और सत्संग में दया से यही इंतजाम है हमारी बाहरी उपदेश व अंतरी तजरुबो द्वारा प्रेमी जनों के इस रोग का नाश करते हैं। संसार के मोह की जड कट जाने पर प्रेमी जन यों तो बदस्तूर हरा भरा दिखलाई देता है लेकिन दरअसल उसकी हालत एक कटे हुए वृक्ष की सी होती है और दिन ब दिन उसकी हरियाली कम होती जाती है और उसके अंदर संसार के मोह का नया जहर दाखिल होनें नही पाता। जिन प्रेमी जनोंं की ऐसी हालत हो गई है वे निहायत बड़भागी है। वे बेखौफ जीवन व्यतीत करें और मालिक का गुणानुवाद गावें। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 सत्संग के उपदेश भाग तीसरा
[28/03, 20:38] +91 94162 65214:
.........राधा स्वामी जी........
*जिस प्रकार खेत में उलटा या सीधा पड़ा बीज उग(अंकुरित) हो जाता है ठिक इसी प्रकार सतगुरु ने कृपा करके जिस-जिस जीव के हृदय में नाम का बीज बो दिया है वह जीव अपने जीवन-काल मे चाहे कैसा भी रहा हो नाम-सिमरन से वह भवसागर से जरुर पार हो जाऐगा.....*
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।। वववववव
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