प्रस्तुति - अरूण अगम यादव
: *परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -
भाग 1- कल से आगे:-( 6)
जब ऐसा सत्संग जीवो को मिले और वह चित्त देकर सच्चे शौक के साथ बचनों को सुनें तब जरूर उनकी परमार्थी समझ दिन दिन बढ़ती जावेगी और दुनिया और उसके भोगों का भाव और प्यार आहिस्ता आहिस्ता घटता जावेगा। और जो जो भूल और भरम और उल्टी पुल्टी समझ संसारियों और अनेक तरह के लोगों का संग करके उनके दिल में समाई हुई है आहिस्ता आहिस्ता दूर होती जावेगी और नाशवान और दुखदाई पदार्थों में उनकी पकड़ ढीली और कम होती जाएगी और प्रेमी और भक्तिवान लोगों के साथ, जो सच्चे मालिक के सच्चे चाहने वाले हैं, और खुद सच्चे मालिक के चरणो में, जो कि सर्व ज्ञान और सर्व आनंद और सुखों का भंडार है, दिन दिन प्रीति और प्रतीति बढती जावेगी और पाप कर्मों से सच्चे मालिक का खौफ करके तबीयत हटती जावेगी और जब ऐसे सतसंगियों को भेद रास्ते का घट में और जुगत मालिक के चरणो में पहुंचने की सुनाई जाएगी, तो वे शौक और उमंग के साथ उसके अभ्यास में लगेंगे और अंतर में रस और स्वाद अभ्यास का उनको आता जाएगा और सच्चे मालिक की दया की, जैसी कि वह सच्चे प्रेमियों के ऊपर अपनी कृपा से करता है, अपने अंतर में परख आती जावेगी और तब सच्चा यकीन आहिस्ता आहिस्ता मालिक की हर वक्त अपने अंतर में मौजूदगी का और हाजिर नाजिर होने का दिल में पैदा होता जावेगा। और तब ही वह सच्चा खौफ और सच्चा प्यार मालिक का अपने दिल में ला कर सचौटी के साथ बुरे कामों से परहेज और नेक कामों में कोशिश और प्रयत्न करेंगे।।
(7) जो कोई थोड़े दिन भी ऐसा सत्संग करेगा तो उसके भरम जरूर दूर हो जाएंगे और अनेक तरह की फजूल पूजा और रस्मों में अपना तन मन धन बेकार खर्च नहीं करेगा और धोखा देने वालों के फंदे में नहीं फँसेगा। और तकलीफ और आराम के वक्त अपने मालिक को भूल कर इधर और उधर चित्त नहीं चलावेगा , यानी उसका मन डावाँडोल नहीं होगा, क्योंकि जिस वक्त कोई शख्स अपने मालिक को छोड़कर दूसरों से मदद मांगता है तो साबित होता है कि या तो उसने अपने मालिक की सर्वशक्तिमान न जाना या उसकी मौजूदगी का यकीन उसके दिल में नहीं आया। तो इन दोनों सूरतों वह शख्स नास्तिक हो गया। और जो जरा सी दुनियाँ की तकलीफ में ऐसी डावालडोल हालत हो गई तो आखिर यानी मौत के वक्त की हालत का क्या भरोसा हो सकता है? इस तरह का प्रमार्थ कुछ लाभदायक नहीं हो सकता है, न जीते जी और न मौत के बाद।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
: *।।महत्वपूर्ण भविष्यवाणी।।
(दयालबाग में परम गुरु हुजूर साहबजी
महाराज द्वारा फरमाया गया बचन-
8 जनवरी -1931) :-
शीघ्र ही दयालबाग उत्तर में अंबाले से लेकर बनारस तक जोकि लगभग 700 मील का फासला है , फैल जाएगा। मैं अपनी अंतरी आँख के सामने दयालबाग के उस जमीनी प्लान को देख रहा हूँ जो कि भविष्य में होगा और जो तमाम दुनिया में लिए केंद्रीय संस्था बन जाएगा जिससे प्रेम और शांति की शुद्ध किरणे निकलकर संसार के विभिन्न कोणों में फैल जाएंगी ।अमेरिका अपनी धन दौलत पर गर्व कर सकता है, इंग्लैंड महान हो सकता है, जर्मनी गर्वपूर्ण हो सकता है और इटली कुछ और हो सकता है। लेकिन दयालबाग बहुत अधिक महान होगा ,संसार के सब राष्ट्रों से महान होगा और विश्व शांति दयालबाग द्वारा ही स्थापित होगी ।राधास्वामी दयाल ने इस केंद्र पर बड़ी तोप लगा दी है जिसमें राधास्वामी नाम के गोले चारों ओर चलाए जाएंगे ताकि काल और माया के तमाम कार्यवाहियों का अंत हो और तमाम सूरतें नाशमान बंधनो से मुक्त होकर राधास्वामी धाम की ओर ले जाई जायेगीं। हमारे मिशन के फलस्वरुप एक नई रचना का निर्माण हो रहा है। पुराने जमाने में जब कृष्ण महाराज अपने अनुयायियों के बीच मथुरा के जंगलों में अपनी बांसुरी बजाते थे तो वह आपस में हाथ पकड़ कर अपार आनंद में नाचते थे ।उसी तरह वह दिन आएगा जब कि जो (सत्संगी) भाई बहने यहां जमा है, मन और जड़ पदार्थों से पूर्ण रूप से अलग होकर राधास्वामी दयाल के चारों ओर नाचेंगे । अतः आप सब जवान और बूढ़े उस मौके के लिए तैयार हो जाओ। चाहे कहीं से भी कितनी भी ठोस रुकावट की जाए , उन दयाल का मिशन , जैसा कि ऊपर बयान किया गया है पूरा होना चाहिए और वह लोग जो इस रौ ( तेज धार) के रास्ते में खड़े होकर रुकावट डालेंगे उन्हें अवश्य ठुकरा दिया जावेगा।। हुजूर ने फरमाया कि वह अपने सामने दयालबाग का पूरा प्लान देख रहे हैं और यह कि हम सब केवल राज या मजदूर केवल समान ढोने वाले हैं - परंतु असली निर्माता स्वयं हुजूर राधास्वामी दयाल है और हम उनका भावी प्लान नहीं जानते ।हममें से केवल वही मनुष्य , जिनको अंतरी दृष्टि प्राप्त है उसका कुछ अंदाजा लगा सकते हैं । यह फरमाकर हुजूर ने अपना हाथ अपने माथे पर रखा इस प्रकार कहना प्रारंभ किया-- यह ध्यान रखिए कि मैं स्वपन नहीं देख रहा हूँ, मैं शर्तिया जागृत हूं और जो कुछ मैंने कहा है वह अवश्य होकर रहेगा । उदाहरण के तौर पर विद्यालय आर. ई.आई. की इमारत के बारे में कहा कि वह ठीक उसी रूप में बनकर तैयार हुई है जैसा उन्होंने पहले उसके बारे में बचन फरमाए थे । उन दयाल ने परम गुरु हुजूर महाराज के लेखों का भी इस सिलसिले में हवाला दिया और फरमाया कि पुराने जमाने में संत महात्माओं ने दुनिया में आगे होने वाले प्रसार के बारे में केवल कुछ इशारे ही दिए थे। वह दयाल आज स्पष्ट शब्दों में यह ऐलान फरमा रहे हैं कि भविष्य में दयालबाग सारे संसार में एक आदर्श संस्था होगी । तब मौज से एक शब्द निकाला गया जिसकी पहली कड़ी थी-------" बढ़त सत्संग अब दिन अहा हा हा ओहो हो हो। (पुनः प्रकाशित- प्रेम प्रचारक 27 सितंबर, 1976)
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
No comments:
Post a Comment