महत्वपूर्ण आश्वासन
परम पूज्य हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा
दिनांक 5 जून, 2010 को शाम के सतसंग के पश्चात् फ़रमाया एक लघु बचन
राधास्वामी। राधास्वामी सतसंग, दयालबाग़ के गद्दीनशीन गुरु में ही बराबर निजधार बनी रहती है। ऐसा ही होता रहा है और होता रहेगा। इस प्रकार राधास्वामी दयाल की रक्षा और सम्हाल का पूरा हाथ संगत पर निरन्तर बना हुआ है।
राधास्वामी रक्षक जीव के जीव न जाने भेद।
गुरु चरित्र जाने नहीं रहे कर्म के खेद॥
खेद मिटे गुरु दरश से और न कोई उपाय।
ढूंढने
सो दर्शन जल्दी मिलें बहुत कहा मैं गाय॥
किस गुरु की चर्चा है? शब्द-गुरु की चर्चा है। राधास्वामी गुरु समरत्थ की चर्चा है।
राधास्वामी गुरु समरत्थ, तुम बिन और न दूसरा।
अब करो दया परतक्ष, तुम दर एती बिलँब क्यों॥
पर विलंब कहाँ है। दया तो निरंतर हो रही है। और होती रहेगी। राधास्वामी।
(प्रेम प्रचारक 19 जुलाई, 2010) 🙏🏻🙏🏻
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