Monday, March 30, 2020

सत्संग के मिश्रित प्रसंग बचन




*जिस मनुष्य के हृदय में"सच्ची मानवता"हो उसकी*
 *सोच हमेशा यही होगी कि* ,
*मुझे मिला हुआ दुःख*
 *किसी को नही मिले और*
 *मुझे मिला हुआ सुख सबको मिले*🌹🌹🙏🏻🙏🏻RadhA Soami ji 🙏🏻🙏🏻 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[30/03, 14:14] गौरवी सत्संगी: राधास्वामी!!  30-03 -2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे -(94) दुनिया में वासनाओं की नदी बह रही है और हर शख्स, बिना ख्याल इस बात कि उसके अंदर क्या जा रहा है, दोनों हाथों से उसका पानी पी रहा है। जिस शख्स को किसी ऐसे पुरुष किस शरण प्राप्त है जो गंदगी को गंदगी देखता व समझता है और सतह पर तैरती हुई गंदगी को दोनों हाथों से हटाता है ताकि उसके साथी गंदगी निगलने से बच जावें,वहीं इस गंदगी के जहर से  बच सकता है । इसी कुदरती कानून के इस्तेमाल से सत्संग मंडली आमतौर पर संसारी वासनाओं की गंदगी से बची हुई है ।                                                🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                          सत्संग के उपदेश- भाग तीसरा।
[30/03, 18:08] गौरवी सत्संगी: **राधास्वामी!! 30-03-2020- आज शाम को हुए दोबारा सतसंग में पढे गये पाठ-                      (1) मगन मन केल करत। घट धुन सँग लागा री।। (प्रेमबानी-3,शब्द-11,पृ.सं.207)                                                                                (2) सुरतिया हँस हँस गावत नित्त। गुरु की आरत प्रेम भरी ।।टेक।। (प्रेमबिलास-शब्द-90,पृ.सं.127)                                                                                  (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा-पहले से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!! 30-03- 2020-                        आज शाम(दोबारा) के सत्संग में पढ़ा गया बचन- पहले से आगे- (95) संसार में न दौलत की कमी है, न खाने पीने की चीजों की, कमी है तो इस बात की दुनिया की दौलत चंद लोगों के हाथ में है और उसका बहाव ऐसा नहीं है कि वह हिस्सा रसदी सब तक पहुंच जाए, चुनांचे हर कौम व मुल्क के समझदार लोग ऐसी तदबीरें निकालने में मसरूफ हैं कि यह कमी दूर हो जाए ।सत्संग की तरफ से यह साला पेश की जाती है कि ए लोगो!  दौलत की मोहब्बत कम करो । उसको सिर्फ काम चलाने का जरिया या औजार समझो। दौलत इकट्ठा होने से कोई सुख पैदा नहीं होता। दौलत के इस्तेमाल से अलबत्ता सुख के सामान हासिल हो जाते हैं लेकिन जो सुख उनकी मार्फत हासिल होता है न वह सच्चा है, न हमेशा कायम रहने वाला। सच्चा व सदा रहने वाला । सच्चा सुख खुद तुम्हारे आत्मा में है। तुम आत्मा- दर्शन को अपनी जिंदगी का उद्देश्य बनाओ । दौलत पैदा करो और जब जरूरत से ज्यादा दौलत हाध आवे  तो उसे मालिक के नाम पर निछावर करो। हर शख्स को असली जरूरत सिर्फ इस कदर दौलत की है कि उसे अपनी जिंदगी का उद्देश्य यानी आत्मदर्शन की प्राप्ति में काफी सहूलियत मिले। जो दौलत मालिक के नाम पर निछावर की जावे वह सब की सब देश या जाति की बेहतरी के कामों पर खर्च करो। इन बातों पर कुछ अर्से तक अमल करके देखो कि क्या नतीजा निकलता है। नतीजा यही होगा कि तुम खुद सुखु रहोगे और तुम्हारे संगी साथी व देशवासी भी सुखी रहेंगे।।                  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻                        सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा**

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