प्रस्तुति - संत शरण /
रीना शरण /अमी शरण
परम गुरु महाराज साहब के बचन
बचन भाग- 1
बचन-36
जब तक धुर से हुक्म नही होता, तब तक कोई जीव राधास्वामी मत में शामिल नहीं होता। और जो शामिल हो गया तो जानो कि उस पर मुहर लग गई। उसका उद्धार अबेर सबेर का ख़्याल छोड़कर ज़रूर होगा। और चाहे कैसा ही है, उसका बिगाड़ नहीं हो सकता। पहले मेहर से जीव खींचा जाता है और फिर प्रेरणा करके करनी करवाई जाती है। जब यह करनी करता है तो ज़्यादा मेहर आती है।
मेहर दया करनी करवाई, करनी कर बहु मेहर बढ़ाई।
करनी मेहर संग दोऊ चलते, तब फल पूरा चढ़ चढ़ लेते।
देखो, जगत में बह रहे थे। अपनी दया से मालिक ने सँभाला। जिसने उस हालत से बचाया, कब छोड़ेगा। असल में घाटा प्रीति का है। जब घाट बदलेगा, तब प्रीति आवेगी और फिर उसे राधास्वामी दयाल की क़दर आवेगी और अपने भागों को सराहेगा। बल्कि उसे लाज आवेगी कि मैं किस मुहँ से शुकराना अदा करूँ और किसे सुनाऊँ। चाहिए कि हर तरह से परतीत को क़ायम किया जावे। जब परतीत दृढ़ हुई, प्रेम जागा और जब प्रेम जागा,तो काम बनना शुरू हुआ। इसलिए परतीत मुक़द्दम (ज़्यादा ज़रूरी) है। अगर परतीत नहीं है तो यह हाल होगा कि जब कभी अभ्यास में रस मिला तब समझा कि हम पर दया है और जब न मिला तो ख़्याल होने लगा कि दया खिंच गई।
राधास्वामी।।
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