सुमिरन सिमरन
जब मालिक के भजन सिमरन में बैठते है*
तो हमे अपनी पूरी सुरति उनके दिव्य दर्शन पर केंद्रित करनी चाहिए।हम भजन में बैठे कर,करबद्ध हो कर मालिक का नैन मूँद कर आवाहन करते हैऔर वह आ कर हमारें मस्तक पर विराजमान होते है।ऐसे मेंहमरि सुरति कहीं भटकती है तो उसको एकाग्र करने का प्रयत्न करना होगा क्योंकि हीरा छोड़ कर कंकर की तरफ धयान नहीं होना चाहिये।धीरे धीरेसुरती की और मालिक की दोस्ती हो जाती है और आपका सिमरन इतनागहरा हो जाता है किआप इस नश्वर संसार मेंअपना अस्तित्व भूल जाते हो।गुरुमुखो!भजन सिमरन में बहुत गहराइ है जरुरत है सिर्फ नियम मेंबंधने की,फिर दिन रात का प्रत्येक क्षण मालिककी बंदगी के लिए कम और अधूरा है तेरी इस असार दुनिया का क्या करूँ मालिक जिसमे तेरे दर्शन दीदार नाम का सार नहीं मुझे दे दे बंदगी की वह खिदमत जिसमे सिर्फ तू ही तू हो ,इस झूठी दुनिया का हिसाब नहीं।.
[9/6, 14:37] +91 94162 65214: सिमरन सिमरन सब करे,
सिमरन करे ना कोए।
जो तन मन से सिमरन करे,
वो ही सतगुरु का होए।
एक रूह जिसे पूर्ण सतगुरु द्वारा नामदान मिला होता है। जब वह शरीर को छोड़ती है तो काल के दरबार में उसे पेश किया जाता है। उस बक्त सतगुरु अपनी रूह को लेने आ जाते हैं। सतगुरु और काल में वकालत होती है। काल सतगुरु से कहता है कि आपकी रूह ने भजन सिमरन तो किया है लेकिन मन से नहीं किया है। सतगुरु कहते हैं कि मन से मेरा कोई मतलब नहीं है । मन तो तेरा है। मुझे मेरी रूह से मतलब है। रूह ने मेरा हुक्म माना है व भजन सिमरन पर बैठी है। सतगुरु के हुक्म के पीछे राज होता है। इसीलिए सतगुरु हमें अपने सत्संगों में बार-बार समझाते हैं कि मन लगे या ना लगे आपको हर हालत में भजन सिमरन पर घड़ी दो घड़ी बैठना ही है। हमें भी अपने सतगुरु पर पूर्ण विश्वास करना है। सांसारिक वस्तुओं की अभिलाषा को समाप्त करते हुए गुरु के हुक्म के अनुसार अधिक से अधिक समय भजन सिमरन को देना है।
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