राधास्वामी!! 04-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु की दया ले शब्द सम्हार। गुरु के सँग कर शब्द अधार।। शब्द लगो मत बैठो हार। शब्द नाव चढ पहुँचो पार।।-( शब्द भेद तू जान गवाँर। क्यों भरमै तू मन की लार।।) (सारबचन-शब्द-चौथा-पृ.सं.216)
([12/4, 04:18] H हर्ष गर्ग: **राधास्वामी!! 04-12-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) गुरु की दया ले शब्द सम्हार। गुरु के सँग कर शब्द अधार।। शब्द लगो मत बैठो हार। शब्द नाव चढ पहुँचो पार।।-( शब्द भेद तू जान गवाँर। क्यों भरमै तू मन की लार।।) (सारबचन-शब्द-चौथा-पृ.सं.216)
(2) सुरत प्यारी मन से यारी तोड।।टेक।। इसकी प्रीति बहुत दुख देवे। जैसे बने इसका सँग छोड।।-( राधास्वामी मेहर दृष्टि करें जबही। छूटे छिध में मोर और तोर।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-17-पृ.सं. 359)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**!
आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) हेरी तुम कौन हो री। मोहि अटकावनहारी।।टेक।। मैं दर्शन को गुरु प्यारे के। जाऊँगी माँनू न कहन तुम्हारी।।-(राधास्वामी प्यारे सतगुरु मेरे। सब जीवन का काज सुधारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1 (4)- पृ.सं.44,45)
(2) कैसी कुबुद्धि नारि मन के जो कहने में आ गई (मैं)।।टेक।। निज प्रीतम की सुद्धी भुलानी। कौन कुमति हिये छा गई।।-(राधास्वामी दयाल के गुन नित गाऊँ। जिनकी मेहर सुधि आ गई।।) (प्रेमबिलास-शब्द-101-पृ.सं.147,148)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे -(75)
यदि आप जरा ध्यानपूर्वक विचार करेंगे तो ज्ञात होगा कि संसार में दो प्रकार के मनुष्य हैं- एक ,सच्चे कुलमालिक में आस्तिकभाव रखने वाले दूसरे, उसमें नास्तिकभाव रखने वाले ।
और यह निर्विवाद है कि आस्तिक लोग नास्तिक लोगों से साधारणतया अच्छे हैं, क्योंकि जिनको मालिक के असतित्व में सचमुच विश्वास है उनके हृदय में मालिक के लिए किसी अंश में भीति, प्रीति तथा विनीतभाव अवश्य रहता है, और किसी कुत्सित या अनुचित कर्म में लगते समय भय और विनय, विशाद और विपत्ति की दशा में श्रद्धा और प्यार , सोच और विचार के अवसर पर दया और उपकार की आशा के भाव उत्पन्न होकर उनकी पर्बल रक्षा और सहायता होती रहती है ।
यों तो कुत्सित और अनुचित कर्मों से लोगों को वर्जित रखना शासन का धर्म है , परंतु शासन एक एक मनुष्य के देखने भालने, समझाने बुझाने और डाटने डपटने का प्रबंध किस प्रकार कर सकता है? परंतु मालिक के अस्तित्व में विश्वास होने से निर्जन वनो और बस्ती से दूर स्थानों में निवास करने वाले अज्ञान जनों में भी, बिना किसी प्रकार की बाहरी देखरेख के, पर्याप्त अंश में उच्च कोटि का सदाचार बना रहता है ।
इसी प्रकार विचारिये- कोई व्यक्ति किसी निर्जन जंगल में यात्रा करते हुए रोग ग्रस्त हो जाता है , वह किसको पुकारे किस से सहायता ले ? यदि उसका मालिक के अस्तित्व में सच्चा विश्वास है तो चादर तान कर चुपचाप लेट जाता है और मन ही मन यह कहकर " भगवन ! यदि तेरी यही इच्छा है तो ऐसा ही सही" अपने आप को ढारस दे लेता है ।
अभिप्राय यह है कि एक निकृष्ट कोटि का निरक्षर और निर्धन जन भी मालिक के चरणो में विश्वास के प्रताप से अपने और समाज के जीवन को प्रफुल्लित बना देता है। इसी कारण कहा गया है कि सच्चे कुलमालिक के अस्तित्व में विश्वास रखने वाले विश्वास न रखने वालों से साधारणतया श्रेष्ठ है । 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**2) सुरत प्यारी मन से यारी तोड।।टेक।। इसकी प्रीति बहुत दुख देवे। जैसे बने इसका सँग छोड।।-( राधास्वामी मेहर दृष्टि करें जबही। छूटे छिध में मोर और तोर।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-17-पृ.सं. 359)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
[12/4, 16:20] H हर्*राधास्वामी!! 04-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) हेरी तुम कौन हो री। मोहि अटकावनहारी।।टेक।। मैं दर्शन को गुरु प्यारे के। जाऊँगी माँनू न कहन तुम्हारी।।-(राधास्वामी प्यारे सतगुरु मेरे। सब जीवन का काज सुधारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1 (4)- पृ.सं.44,45) (2) कैसी कुबुद्धि नारि मन के जो कहने में आ गई (मैं)।।टेक।। निज प्रीतम की सुद्धी भुलानी। कौन कुमति हिये छा गई।।-(राधास्वामी दयाल के गुन नित गाऊँ। जिनकी मेहर सुधि आ गई।।) (प्रेमबिलास-शब्द-101-पृ.सं.147,148) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 04- 12- 2020 -आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे -(75) यदि आप जरा ध्यानपूर्वक विचार करेंगे तो ज्ञात होगा कि संसार में दो प्रकार के मनुष्य हैं- एक ,सच्चे कुलमालिक में आस्तिकभाव रखने वाले दूसरे, उसमें नास्तिकभाव रखने वाले । और यह निर्विवाद है कि आस्तिक लोग नास्तिक लोगों से साधारणतया अच्छे हैं, क्योंकि जिनको मालिक के असतित्व में सचमुच विश्वास है उनके हृदय में मालिक के लिए किसी अंश में भीति, प्रीति तथा विनीतभाव अवश्य रहता है, और किसी कुत्सित या अनुचित कर्म में लगते समय भय और विनय, विशाद और विपत्ति की दशा में श्रद्धा और प्यार , सोच और विचार के अवसर पर दया और उपकार की आशा के भाव उत्पन्न होकर उनकी पर्बल रक्षा और सहायता होती रहती है । यों तो कुत्सित और अनुचित कर्मों से लोगों को वर्जित रखना शासन का धर्म है , परंतु शासन एक एक मनुष्य के देखने भालने, समझाने बुझाने और डाटने डपटने का प्रबंध किस प्रकार कर सकता है? परंतु मालिक के अस्तित्व में विश्वास होने से निर्जन वनो और बस्ती से दूर स्थानों में निवास करने वाले अज्ञान जनों में भी, बिना किसी प्रकार की बाहरी देखरेख के, पर्याप्त अंश में उच्च कोटि का सदाचार बना रहता है । इसी प्रकार विचारिये- कोई व्यक्ति किसी निर्जन जंगल में यात्रा करते हुए रोग ग्रस्त हो जाता है , वह किसको पुकारे किस से सहायता ले ? यदि उसका मालिक के अस्तित्व में सच्चा विश्वास है तो चादर तान कर चुपचाप लेट जाता है और मन ही मन यह कहकर " भगवन ! यदि तेरी यही इच्छा है तो ऐसा ही सही" अपने आप को ढारस दे लेता है ।अभिप्राय यह है कि एक निकृष्ट कोटि का निरक्षर और निर्धन जन भी मालिक के चरणो में विश्वास के प्रताप से अपने और समाज के जीवन को प्रफुल्लित बना देता है। इसी कारण कहा गया है कि सच्चे कुलमालिक के अस्तित्व में विश्वास रखने वाले विश्वास न रखने वालों से साधारणतया श्रेष्ठ है ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा -
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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