Thursday, December 3, 2020

रोजाना वाक्यात 05/12


रोजाना वाक्यात


प्रस्तुति  - आनंद  प्रकाश 


 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- कल से आगे:- रात के सत्संग में उपस्थित जन को सवालात करने की इजाजत दी गई। चुनाँचे मुतअद्दिद सवालात  दरयाफ्त किये गये। एक यह था- आया इंसान को पता लग सकता है कि वह कौन सा काम नया कर रहा है और कौन सा पिछले संस्कारों का नतीजा है ।जवाब दिया गया किसी किसी काम की निस्बत तो पता चल सकता है लेकिन बगैर दिव्य दृष्टि की प्राप्ति के हर काम की निस्बत पता नहीं चल सकता । जब कभी आप कोई काम अपनी मर्जी के खिलाफ करने के लिए मजबूर हो यानी जब आपकी बुद्धि कोई काम करने से मना करें और फिर भी आपका मन उसमें सलंग्न हो जाये तो समझ लीजिए पिछले संस्कार अपना जोर दिखला रहे हैं और आपको वह काम करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।  दूसरा सवाल -यह था आया सिख मजहब की धर्म पुस्तक ग्रंथ साहब कुल की कुल संत मुख वाणी है?  मेरा जवाब नकारात्मक में था।  ग्रंथ साहब में भगतो और भटों की बानियाँ भी शामिल है लेकिन यह सब बानियाँ गुरू अर्जुन साहब और उनके उत्तराधिकारियों की मंजूरी से ग्रंथ साहब में शामिल की गई है।  तीसरा सवाल यह था कि सिख मजहब और राधास्वामी मत के उपदेश में क्या फर्क है ? जवाब दिया गया कतई फर्क नहीं है।  चौथा सवाल विल पावर Will Power  के जगाने व मजबूत करने की तरकीब के मुतअल्लिक़ था। सो बतलाया गया कि हम उस शख्स की संकल्प शक्ति को बेदार व काफी मजबूत ख्याल करते हैं जो तीन बातें कर सकें। अव्वल यह  कि जो काम जी चाहे करे जी चाहे न करें मसलन खूब भूख लगी है जिस्म व तन खुराक तलब करते हैं, खाना सामने आता है, खाने की खुशबू मन को ललचा रही है लेकिन वह इन सब पर विजेता है और अपने जिस्म व मन को खाने की तरफ लपकने नहीं देता।  उसकी मर्जी हो तो खाता है मर्जी न हो नहीं खाता। दोयम यह कि जिस काम की जितनी देर मर्जी हो करता है और जब जी चाहे छोड़ सकता है । और सोयम- कोई काम करने के बाद अपने दिल से उसका असर धो डालें । यानी कोई ( काम) करने के बाद उसका मन उस काम के लुत्फ की याद करके चटखारे नहीं लेता।  यह ताकत हासिल करने के लिये तीन जतन करने होंगे। अव्वल मन की धारों का संसार के विषयों की जाने बहाव कम करना। दोयम यह बहाव कतई बंद कर देना और सोयम इस बहाव का रुख अंतर्मुख कर देना। राधास्वामी मत में प्रचलित सुमिरन ,ध्यान और भजन के साधनों की कमाई से यह सब बातें आसानी से बन आती हैं।  इनके अलावा चंद और सवालों के भी जवाब दिये गये।                                                             🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -【शरणाश्रम का सपूत】- कल से आगे -वकील -(मजिस्ट्रेट से) आफरीं सद आफरीं ! ऐ हजरते नुमाइंदाए शाहे इंग्लिस्तान व शहंशाहें हिंदुस्तान - तेरी रहमदिली व अदालत के कुर्बान । मेरी दर्जा अव्वल की वकालत के कुर्बान (सुपरिटेंडेंट से ) जनाब सुपरिटेंडेंट साहब! मैं आपका भी शुक्रिया अदा करता हूँ और वादा करता हूँ कि अगर आप कभी विरोधचंद के खिलाफ मुकदमा करना चाहें तो बंदे को याद करें- बंदा आपसे निस्फ फीस लेगा।( गाता है)                                ●● गाना●●                                                वाह जी वाह, हम मुंशी जी कहलाते हैं ।                                 पढे लिखे तो खाक नहीं पर, सब पर ठाट जमाते हैं।                                                 लंबी दाढ़ी रहे सलामत, इसी से काम चलाते हैं।                                                                   छूटे चाहे कोई फँसे मुवक्किल, अपनी फीस कमाते हैं।                                                  ऐसा मौका आवे सर पर, वैसी बात बनाते हैं।                                                             लगे थे फँसने आज मगर अब, हँसते घर को जाते हैं।।                                               ( सब जाते हैं )क्रमशः                                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-(16) सिवाय लय के तीन बिघ्न और भी है जो अभ्यासी को दर्जे बदर्जे सताते हैं, और उनके नाम यह है- विक्षेप, कषाय, रसास्वाद । इनके अर्थ और दूर करने की तरकीब नीचे लिखी जाती है--                     (१) विक्षेप - भजन या ध्यान में एकदम चित्त के हट जाने या झटका लगने का नाम है , जैसे किसी ने आकर आवाज देकर जगा दिया या बदन को हिला दिया, या कोई मन की जोरदार तरंग ने एकाएक उठ कर भजन या ध्यान से अलग कर दिया या किसी किस्म का असर- जैसे कीडा रेंगता है या कोई जानवर या चींटी वगैरह काटती है- बदन पर मालूम होवे और अभ्यासी उसके दूर करने को भजन और ध्यान एकदम छोड़ देवे। इसका जतन यह है कि अपने लोगों को समझा देवे कि वक्त भजन और ध्यान के कोई उसको जोर से न पुकारे और जो खास जरूरत हो तो आहिस्ता आवाज देवे, या नरमी के साथ उसके पैरों को छू देवे तो अभ्यासी जाग पड़ेगा।।                                      और जहाँ तक मुमकिन होवे मन की तरंग के साथ शामिल होकर भजन से जुदा न होवे, यानी गाफिल न हो जावे। इस किस्म के विघ्न अभ्यासी को पेश आते हैं। फिर  जिस कदर उसका अभ्यास पकता और बढता जावेगा, उसी कदर यह विघ्न दूर होते जावेंगे यानी उनका असर अभ्यासी पर बहुत कम होवेगा।क्रमशः                            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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