**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत- 14 मार्च 1933 -मंगलवार:-
आज तड़के भगत ईश्वरदास साहब मय अपनी पत्नी मथुरा के लिए रवाना हो गये। विदा से पहले मैंने एक कॉपी ड्रामा संसार चक्र की और एक कॉपी गीता के तर्जुमा की पेश की।
कर्नल गिडनी ने आज दयालबाग आने का वादा किया था। नहीं आये।।
रात के सत्संग में बयान हुआ कि साधारण मनुष्य मंदिरों में देवताओं की पूजा और जोत का दर्शन करके संतुष्ट हो जाते हैं कि बस भगवान से मुलाकात हो गई। हरचंद उनकी यह पूजा एक तरह से लाभकारी है क्योंकि इसकी बदौलत उनके मन में मालिक के लिये श्रद्धा और धर्म का ख्याल बना रहता है लेकिन इस पूजा का फल बमुकाबले अंतरी पूजा के निहायत निम्न है। जो उत्तम संस्कारी हैं वह अपने घट के मंदिर में चेतन जोत का दर्शन करते हैं।
उस अंतरी दर्शन से जो आनंद प्राप्त होता है उसके मुकाबले बाहरी पूजा हुए दर्शन का लुफ्त बिल्कुल तुच्छ है। उत्तम संस्कारी जीव जब कुछ अर्सा गौर से जोत का दर्शन करते हैं तो उन्हे निरंजन पुरष की खबर पड़ती है फिर ज्ञान होता है कि यह जो निरंजन माया व ब्रह्म की धारें है और माया व ब्रह्म से शुद्ध रुप ब्रह्म श्रेष्ठतर है।
फिर उन्हें परब्रह्म का ज्ञान होता है और फिर सत्पुरुष का दर्शन पाकर उन्हें पता चलता है कि सत्तपुरुष से हजारों लाखों ब्रह्मा व माया की धारें प्रकट हुई हैं। अन्ततः उनका आत्मा हर किस्म की मलिनता से पाक व साफ होकर आत्मा के भंडार सच्चे कुल मालिक राधास्वामी ध्यान से मेल होता है । इसलिए सच्चा प्रेमी जन यही हौसला करता है, अगर हो तो यही गति हासिल हो। छोटी मोटी गति से उसकी तृप्ति नहीं होती। प्रकाश लाहौर का ताजा एडिशन अवलोकन से गुजरा। महाशय कृष्ण प्रोपराइटर अखबार हजा की जानिब से एक मजमून प्रकाशित हुआ जिसमें आपने सनातन धर्मियों व राधास्वामी मत अनुयायियों की मिसाल देकर आर्य समाजी भाइयों से अपील की है कि समाज की दान प्रणाली में तब्दीली की जावे।
वाकई बड़े शोक की बात है कि आर्य भाई वेदों के प्रचार के तो प्रेमी कहलायें और गुरुकुल के खर्चों के लिए जहाँ वेद के प्रचार के लिए विद्वान तैयार किए जाते हैं, प्रिंसिपल व विद्यार्थियों को दर बदर भिक्षा माँगनी पड़े! मुझे खुशी है कि महाशय जी की तवज्जुह इस जखनिब आकृष्ट हुई। जब पिछले मर्तबा रामदेव जी से मुलाकात हुई थी तो मैंने मशवरा दिया था कि ऐसा बंदोबस्त होना चाहिए श्रद्धालु आपके पास आकर धनराशियाँ भेंट करें।
मगर उन्होंने फरमाया कि चंदा माँगना भी अच्छी बात है। इससे दीनता आती है । मगर मेरा ख्याल व तजुर्बा विपरीत है । आर्य समाजी भाइयों की तादाद करीब 10 लाख बनाई जाती है। अगर सब मेम्बर एक एक रुपया सालाना भी दें तो एक के बजाय चार गुरुकुल छ्चल सकते है।विद्यार्थियों को भिक्षा माँगने की आदत सिखलाने से उनका बडा बिगाड होता है। उनके अंदर Self Help का माद्दा कतई नहीं रहता।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज - 【शरण- आश्रम का सपूत】 कल से आगे:- डायरेक्टर- अगर कोई खुदा है तो दुनिया का राज अपने मानने वालों को क्यों नहीं देता? मास्टर - यह सवाल इन बच्चों के लिए कठिन है। मेम साहिबा -क्या कोई लड़का जवाब दे सकता है? एक लड़का- उसकी मर्जी- जिसे चाहे उसे दे। मेम साहिबा- और कोई बच्चा जवाब दें? दूसरा लड़का- जो राज के लायक होता है उसी को राज दिया जाता है। इंस्पेक्टर जनरल- प्रेमबिहारीलाल तुम जवाब दो। प्रेम०- जिसे राज की ख्वाहिश होती है मालिक उसे राज देता है और जिसे भक्ति और सेवा की ख्वाहिश होती है उसे मालिक अपनी भक्ति और अपने बच्चों की सेवा देता है। मेम साहिबा- तुम दोनों में से क्या पसंद करोगे ? प्रेम०- जो मालिक देना पसंद फरमाये। इंस्पेक्टर जनरल- अगर तुम्हें राज दिया जाय तो कैसे निभाओगे? प्रेम०- जो राज देगा वह राज करने की लियाकत भी बख्शेगा। इंस्पेक्टर जनरल - वरना उसका राज देना लाहासिल हो जाएगा क्योंकि जल्द ही मुझसे राज छिन जाएगा या नष्ट हो जायगा । डाइरेक्टर- देखो ! तुम्हारे खुदा ने तुमको यतीम बनाया है और दूसरों को अमीर व माँ-बाप वाला -क्या तुम्हें ऐसे खुदा के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है? एक लड़का- कोई शिकायत नहीं है। दूसरे बच्चे अपनी अमीरी व माँ बाप की मोहब्बत का लुत्फ लेते हैं- हम अपनी गरीबी और मुन्तजिमाने आश्रम की मोहब्बत का आनंद लेते हैं।क्मशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे-( 18 ) जिस अभ्यासी को भजन और ध्यान में रस और आनंद उसकी चाह के मुआफिक मिलता है और दिन दिन बढ़ता जाता है , उसको चाहिए कि जब अभ्यास में बैठे तब पहले इरादा करले कि मैं इस वक्त 1 घंटे या 2 घंटे या 3 घंटे अभ्यास करूंगा और उसके पीछे उठ कर फलाना काम करूँगा । इस तरह उसके मन और सूरत निश्चित किए हुए वक्त पर उतर आवेंगे और उस वक्त अभ्यास पूरा हो जावेगा। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
No comments:
Post a Comment