**राधास्वामी!! 03-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) प्रेमी लीजो रे सुध घर की। गुरु सँग शब्द कमाय।।टेक।। शब्द धार धुर घर से आई। वही धार गह अधर चढाय।।-(चढ चढ पहुँचे राधास्वामी धामा। दरश पाय निज भाग सराय।।) (प्रेमबानी-भाग -4-शब्द-7-पृ.सं.43,44)
(2) अजब जहाँ के बीच काल ने जाल बिछाया अपना है। अंग अंग से बँधे जीव सब छुटन भया अति कठिना है।। कोई कहते हम गुन के ग्राहक जहाँ मिले तहाँ लेना है। राग द्वेष हमरे कुछ नाहु इक मालिक से लगना है।।-(मगन होतस्रुत निज घर पहुँचे अमर होय रस बसना है। राधास्वामी दयाल गुरु प्यारे के लिपट रहे निज चरना है।।) (प्रेमबिलास-शब्द-100- पृ.सं.145,146)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे- 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-( 74)
विदित हो कि है विचार हमारा ही नहीं है कि बुद्धि- द्वारा प्राप्त किए हुए ज्ञान की त्रुटि पूरी करने और इस ज्ञान से व्यावहारिक लाभ उठाने के लिए सदैव श्रद्धा तथा प्रेम की आवश्यकता है । और जिस ज्ञान से श्रद्धा तथा प्रेम ह्रदय में उत्पन्न न हों वह शुष्क, रिक्त और निरर्थक है ।
तिलक महाराज ने इस संबंध में एक स्थान पर लिखा है- " जैसे बिना बारूद के केवल गोली से बंदूक नहीं चलती वैसे ही प्रेम श्रद्धा आदि मनोवृत्तियों की सहायता के बिना केवल बुद्धिगम्य ज्ञान किसी को तार नहीं सकता।
यह सिद्धांत हमारे प्राचीन ऋषियों को भली भाँति मालूम था"। ( देखो पृष्ठ 407, श्रीमद्भागवद्गीतारहस्य , छठा संस्करण , हिंदी अनुवाद माधवराव सप्रे कृत)
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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