प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाक्यात- कल का शेष-
रात को सत्संग के बाद महकमा पब्लिक हेल्प यू. पी. की तरफ से सिनेमा फिल्म दिखाई गई। जिसमें मलेरिया, हैजा, तपेदिक, प्लैग वगैरह बीमारियों के किटाणुओं के कारनामे दिलचस्प तरीके से समझाई गई। इस दुनिया के हर कोने के अंदर जानवर कूट-कूट कर भरे हैं और हर जानवर के अंदर कुदरत में जिंदगी कायम रखने यानी जान बचाने का शौक पैदा कर रखा है।
अगर खुर्दबीन लगाकर पानी के गिलास में तैरते हुए किटाणुओं को लोहे की तेज गर्म सलाई से छूने की कोशिश की जाए तो मालूम होगा कि सलाई की आँच पहुंचते ही किटाणु जान बचाने की कोशिश करते हुए इधर-उधर भागते हैं और बड़े जानवरों का हाल तो नित्य हर किसी के देखने में आता ही है।
अगर कुदरत की जानिब से प्राण रक्षा के लिए यह बंदोबस्त ना होता तो दुनिया में मौजूदा रंगारंग के( जिस्म का बहुवचन) नजर न आते लेकिन साथ ही कुदरत ने यह भी इंतजाम कर दिया है कि जानवर किसी न किसी शक्ल में एक दूसरे का खून व गोश्त खाया करें।
अगर यह इंतजाम ना होता तो दुनिया में छोटे जानवरों की इतनी बहुतायत हो जाती की बड़े जानदारों के लिए जिंदा रहना नामुमकिन हो जाता है । चुनांचे मच्छर, मक्खियाँ,पिस्सू वगरह जिनकी मार्फत मलेरिया, हैजा,और प्लेग की बीमारियों के किटाणु हमारे जिस्म में दाखिल होते हैं जिंदा रहने की खुराक की तलाश में हमारे या दूसरे जानदारों के जिस्मों में काटते हैं या हमारी वस्तुएं खाद्य व पेय पर बैठते हैं ।
इसलिए अगर हम अपने तई और अपनी औलाद को और इंसान के हर वर्ग को जिंदा रखना चाहते हैं तो हमारे जिम् यह फर्ज हो जाता है कि जो इंसान के दिन जड़ बुद्धि दुश्मनों को अपने से दूर रखें ।स्वास्थ्य रक्षा के नियमों की पाबंदी से इंसान बहुत कुछ अपनी हिफाजत कर सकता है ।
जो शख्स इन नियमों से लापरवाह रहते हैं उन्हें कुनैन वगैरह कड़वी दवाई खाकर या इंजेक्शन की सिर दर्द सहन करके अपनी असावधानी का प्रायश्चित करना पड़ता है। इसलिए अक्लमंदी इसी में है कि दयालबाग वाले व अन्य भाई सेहत के कवायद की पूरी तल्लीनता से पाबंदी करें । फिल्म शुरू होने से पहले उपरिवर्णित शब्दों के जरिये मैनें सतसंगी भाइयों व बहनों को मजमून से परीचित करा दिया।
नतीजा यह हुआ कि हर किसी ने तमाशा निहियत गौर से देखा और लाभकारी सबक हासिल किये।काश इस किस्म की फिल्मस का मुल्क के अंदर जोर से रवाज हो।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
: *परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सतसंग के उपदेश
-भाग 2
- कल का शेष:
- बाज लोग इबादत को मजदूरी समझते हैं और ख्याल करते हैं कि जितनी मरतबा इबादत की जाए उतना ही ज्यादा फल मिलेगा लेकिन संतमत में इबादत या भजन बंदगी सिर्फ सच्चे प्रेम का इजहार है , किसी फल की उम्मीद या सजा से बचाव की गरज से भजन करना घटिया दर्जे की भक्ति है ।
यह मुमकिन है कि जैसे शुरू में बच्चा स्कूल या पाठशाला में इनाम पाने की लालच में जाता है ऐसे ही कोई परमार्थी भी खौफ व लालच से अभ्यास में लगे लेकिन जैसे सयाना होने पर विद्यार्थी को इल्म का चश्का पड़ जाता है और उसकी तवज्जुह आप से आप पढ़ने लिखने की जानिब मुखातिब होती है ऐसे ही अंदरूनी रस और आनंद का तजुर्बा हासिल होने और प्रेमअग्नि के भड़क उठने पर शौकीन परमार्थी प्रेमबस भजन बंदगी करने लगता है।
ऐसे प्रेमी जन के लिए खास समय का बंधन लाजमी नहीं है । उसकी अंतर में डोर हर वक्त लगी रहती है और वह झीनी याद चौबीसों घंटे करता रहता है।।
जिन भाइयों को यह हालत हासिल ना हो उनके लिए अलबत्ता जरूरी है कि सुबह व शाम दो वक्त और अगर कभी फुर्सत मिले तो सुबह काम करने से पहले 1 घंटे के करीब अभ्यास में बैठे और दिन रात में चलते,फिरते, कामकाज करते जब मौका मिले तो दो एक मिनट के लिए ठीक तौर पर सुमिरन ध्यान कर लिया करें और याद रखें:- पांच वक्त नमाज के लिए मुकर्रर किए गए हैं, वे रास्ता दिखाने के लिए है। मालिक के प्रेमियों के लिए हमेशा व हर वक्त नमाज का वक्त है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
*परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेमपत्र-भाग-1-
कल से आगे:-
इस से जाहिर है कि राधास्वामी नाम सच्चे कुल मालिक का सबसे ऊँचा और गहरा और पूरा नाम है।
जो कोई अपना सच्चा और पूरा उद्धार चाहे बगैर धुर धाम में पहुँचने के नही हो सकता है। और जब तक राधास्वामी नाम को अपने हृदय में नही बसावेगा और उसकी धार को पकड कर और रास्ते की मंजिलों का भेद लेकर और इस नाम को अपना साथी बना कर नहीं चलेगा , तब तक काल और माया के जाल और विघ्नों से बचाव और धुर धाम में पहुंचना नहीं हो सकेगा ।
जैसे कि आदि में धुर स्थान से धार प्रगट होकर नीचे उतरी और किसी ठिकाने पर ठहर कर वहां की रचना उसने करी, इसी तरह उस स्थान से भी धार प्रगट हुई वह पहले की तरह नीचे उतर कर दूसरे केंद्र पर ठहरी और फिर वहां रचना पहले स्थान के मुआफिक हुई और फिर वहां से धार नीचे को आई। इसी तरह जैसे कि केंद्र और स्थान धुर धाम से सुरत के मुकाम तक रचे गए, वहीं इस तरफ से चलने वाली सुरत के वास्ते मंजिलें मुकर्रर हुई। और हर एक स्थान का शब्द जुदा-जुदा है ।
जो कोई संत सतगुरु या उसके सत्संगी अभ्यासी से भेद इन मंजिलों और उनके शब्दों का लेकर बिरह और प्रेम अंग के साथ उन शब्दों की धार को( जिसको धुन्यात्मक नाम कहते हैं ) पकड़ कर चले, वहीं एक दिन आहिस्ता आहिस्ता धुर मुकाम तक पहुंच सकता है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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