फाग कोई खेले ऐसे ढंग ।।टेर।।
कुमति कुरीत को होली जाले, मलिन सुरत को स्वच्छ बनाले ।
जैसे सतगुरु कहें खेलने, वही खेल का ढंग बनाले ।
कभी न हो जग धूल गरद से, सुरत चुनर बदरंग (1)
भक्ति भाव का अबीर बनाले, प्रीत रीत चरनन पर डाले ।
और हिरदे की पिचकारी में, प्रेम रंग अति निर्मल भरले ।
ध्यान तान मारे पिचकारी में, भर मन प्रेम उमंग (2)
सुमिरन से मन निश्चल करले, ध्यान जुक्ति से गुरू का बल ले ।
शब्द अनाहद के बाजे में, सुरत जोड़ सत शब्द परख ले।
शब्द महल चढ़ खेलो होली,
शब्द गुरू के संग (3)
यह होली है वीर जनों की, साधन रत अति धीर मनों की।
आज सुलभ सखि होली हो गई, हम जैसे मन मलीन जनों की।
चलो जोत पर होली खेलें, वक़्त गुरू के संग (4)
सखी यह होली बड़ी अमोली, खेल रही सखियों की टोली ।
जन्म मरन मिट जाए खेल री, जो कोई खेले अबके ये होली ।
स्वार्थ और परमार्थ दौऊँ की, मिले दात इक संग (5)
बड़े भाग सतगुरू जग आये , विविध ढ़ंग को फाग रचाये ।
खेल खेल कर गुरू ही रिझाले, यह अवसर आये ना आये ।
क्षण भंगुर है कालू जीवन, खेल फाग गुरू सँग (6)
राधास्वामी जी
राधास्वामी सन्तभजनावली-7
साभार- Delhi to Dayalbagh WhatsApp
0503 - 2020
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