प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
राम नाम का मोल
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आज ऐसी कथा लेकर आया हूं जिसे आपने सुना भी होगा, तो फिर से क्यों सुनें! आपने अभी तक कथा बस सुनी है लेकिन आज इसे समझेंगे कि कैसे यह कथा हमारी आपकी ही है। फिर शायद आप इसे दस बार और पढ़ें।
एक पहुंचे हुए महात्माजी थे। उनके पास एक शिष्य भी रहता था। एक बार महात्माजी कहीं गए हुए थे उस दौरान एक व्यक्ति आश्रम में आया। आगंतुक ने कहा- मेरा बेटा बहुत बीमार है, इसे ठीक करने का उपाय पूछने आया हूं।
शिष्य ने बताया कि महात्माजी तो नहीं हैं, आप कल आइए. आगंतुक बहुत दूर से और बड़ी आस लेकर आया था। उसने शिष्य से ही कहा- आप भी तो महात्माजी के शिष्य हैं। आप ही कोई उपाय बता दें बड़ी कृपा होगी. मुझे निराश न करें. दूर से आया हूं।
उसकी परेशानी देखकर शिष्य ने कहा- सरल उपाय है. किसी पवित्र चीज पर राम नाम तीन बार लिख लो। फिर उसे धोकर अपने पुत्र को पिला दो. ठीक हो जाएगा।
दूसरे दिन वह व्यक्ति फिर आया। उसके शिष्य के बताए अनुसार कार्य किया था तो उसके पुत्र को आऱाम हो गया था। वह आभार व्यक्त करने आया था।
महात्माजी कुटिया पर मौजूद थे। आगंतुक ने महात्माजी के दर्शन किए और सारी बात कही- बड़े आश्चर्य की बात है, मेरे बेटा ऐसे उठ बैठा जैसे कोई रोग ही न रहा हो।
यह सब जानकर महात्माजी शिष्य से नाराज हुए।
वह बोले- साधारण सी पीड़ा के लिए तूने राम नाम का तीन बार प्रयोग कराया। तुम्हें राम नाम की महिमा ही नहीं पता। इसके एक उच्चारण से ही अनंत पाप कट जाते हैं। तुम इस आश्रम में रहने योग्य नहीं हो। जहां इच्छा है वहां चले जाओ।
शिष्य ने उनके पैर पकड़ लिए। माफी मांगने लगा। महात्माजी ने क्षमा भी कर दिया पर उन्होंने सोचा कि शिष्य को यह समझाना भी जरूरी है आखिर उसने गलती क्या की।
महात्माजी ने एक चमकता पत्थर शिष्य को दिया और बोले- शहर जाकर इसकी कीमत करा लाओ। ध्यान रहे बेचना नहीं है। बस लिखते जाना कि किसने कितनी कीमत लगाई।
यहां रूकना नहीं है। कथा पढ़ते रहिए। यहतो भूमिका है, असली बात तो अभी आऩी बाकी है।
शिष्य पत्थर लेकर चला। उसे सबसे पहले सब्जी बेचने वाली मिली। पत्थर की चमक देखकर उसने सोचा यह सुंदर पत्थर बच्चों के खेलने के काम आ सकता है। उसके बदले वह ढेर सारी मूली और साग देने को तैयार हो गई।
शिष्य आगे बढ़ा तो उसकी भेंट एक बनिए से हुई। उसने पूछा कि इसका क्या मोल लगाओगे। उसने कहा- पत्थर तो सुंदर और चमकीला है। इससे तोलने का काम लिया जा सकता है। इसलिए मैं तुम्हें एक रूपया दे सकता हूं।
शिष्य आगे चला और सुनार के यहां पहुंचा। सुनार ने कहा- यह तो काम का है। इसे तोड़कर बहुत से पुखराज बन जाएंगे। मैं इसके एक हजार रुपए तक दे सकता हूं।
फिर शिष्य रत्नों का मोल लगाने वाले जौहरी के पास पहुंचा। अभी तक पत्थर की कीमत साग-मूली और एक रुपए लगी थी इसलिए उसकी हिम्मत बड़े दुकान में जाने की नहीं पड़ी थी।
पर हजार की बात से हौसला बढ़ा. जौहरी ठीक से पत्थर को परख नहीं पाया लेकिन उसने अंदाजा लगाया कि यह कोई उच्च कोटि का हीरा है. वह लाख रूपए तक पर राजी हुआ।
शिष्य एक के बाद एक बड़ी दुकानों में पहुंचा। कीमत बढ़ती-बढ़ती करोड़ तक हो गई. वह घबराया कि कहीं उसे अब भी सही कीमत न पता चली हो। हारकर वह राजा के पास चला गया।
राजा ने जौहरियों को बुलाया। सबने कहा ऐसा पत्थर तो कभी देखा ही नहीं। इसकी कीमत आंकना हमारी बुद्धि से परे हैं। इसके लिए तो सारे राज्य की संपत्ति कम पड़ जाए।
महात्माजी की प्रसिद्धि से सब परिचित थे। राजा ने कहा- गुरूजी से कहना कि यदि वह इसे बेचना चाहें तो मैं उन्हें सारा राज्य देने को तैयार हूं। शिष्य ने कहा कि नहीं सिर्फ कीमत पता करनी है।
वह वापस आश्रम पर चला आया और सारी कहानी सुना दी। फिर बोला कि जब राजा पत्थर के बदले अपनी सारी संपत्ति देने को राजी है तो इसे बेच ही देना चाहिए।
गुरुजी ने कहा- अभी तक इसकी कीमत नहीं आंकी जा सकी है। शिष्य ने पूछा- गुरुजी राजा अपना पूरा राज्य देने को राजी है। इससे अधिक इसकी क्या कीमत हो सकती है?
गुरु ने उसे एक लोहा लेकर आने को कहा। वह लोहे के दो चिमटे लेकर आया। गुरु ने चिमटों से पत्थर का स्पर्श कराया तो वे सोने के हो गए। शिष्य की तो जैसे आंखें फटी ही रह गईं।
गुरूजी ने पूछा- तुमने इस पत्थर का चमत्कार देखा। अब बोलो इसकी क्या कीमत होनी चाहिए। शिष्य बोला- संसार में हर चीज की कीमत सोने से लगती है। पर जो स्वयं सोना बनाता हो उसका मोल कैसे लगे!
महात्माजी बोले- यह पारस है. इससे स्पर्श करते ही लोहे जैसी कुरुप और कठोर चीज सोने जैसी लचीली और चमकदार हो जाती है। भगवान के नाम का महिमा भी कुछ ऐसी ही है।
इस पारस के प्रयोग से तो केवल जड़ पदार्थ प्राप्त हो सकते हैं जो नश्वर हैं, परमात्मा तक तो यभी नहीं पहुंचा सकता। लेकिन राम नाम तो सच्चित आनंद का मार्ग है. इसका मोल पहचानो।
जिस नाम के प्रभाव से इंसान भव सागर पार करता है उस प्रभु को मामूली सी परेशानी में बुला लेना उचित नहीं। राम नाम का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए।
इसी तरह है तुम्हारी अपनी कीमत, इंसान को अपनी कीमत का तब तक पता नहीं चलता जब तक उसे सही पहचानने वाला न मिले।
सोचें कितनी बड़ी बात कही महात्माजी ने। आपकी क्या कीमत है उसे सही-सही पहचानने वाला नहीं मिला। जैसे पारस पत्थक साग बेचने वाले के लिए बस कुछ मूली के बराबर मोल का था।
बनिए के लिए एक रूपए और सुनार के लिए हजार रुपए की कीमत वाला जबकि राजा अपना पूरा राज-पाट इसके बदले देने को राजी हो गया।
भगवान का नाम सर्वश्रेष्ठ है और आप यदि भगवान के बताए मार्ग पर चल रहे हैं तो उनके प्रिय भक्त। भगवान के प्रियभक्त का मोल समझ लेना किसी ऐरे गैरे के बस की बात तो है नहीं।
यदि आप सत्य के मार्ग पर हैं और कोई आपकी कद्र नहीं कर रहा तो कमी आपमें नहीं है, कमी तो उसमें है जिसे आपका मोल नहीं पता। वह आपके योग्य नहीं। कोई आपको नहीं पहचान पा रहा तो आप हताश न हों, बल्कि पहले से ज्यादा नेककार्य आरंभ कर दें।
आप सही मार्ग पर चल रहे हैं, किसी का अहित नहीं करते, किसी से द्वेष नहीं रखते, शत्रुता नहीं रखते तो आप ही ईश्वर के प्रिय अनुचर हैं। स्वयं से प्रेम कीजिए. अपना मोल पहले आप तो समझिए, संसार तो बाद में समझेगा।
आपके लिए आप बहुत अहम है फिर संसार. परंतु ऐसा सोचने का अधिकार केवल उनको ही प्राप्त है जो सचमुच ईश्वर के मार्ग पर हैं। जिनमें सच्चाई, सद्भाव, दया और क्षमाशीलता जैसे गुण हैं। यदि इऩ गुणों से विहीन होकर यह भावना रखेंगे तो सावधान करता हूं, ईश्वर आपको कभी फलते नहीं देख सकते।
आप यदि अवगुणों से भरे किसी व्यक्ति को बहुत फलते-फूलते देख रहे हैं तो निराश न हों। आपको नहीं पता कि अंदर से वह कितना भयभीत कितना खोखला है. वह तो पूर्वजन्म के संचित पुण्यकर्मों के बैंक बैलेस में से दोनों हाथ उड़ा रहा है। जिस दिन वह बैलेंस समाप्त हुआ उसका बुरा हश्र होगा।
बुरी राह पर चलने वाले लोगों की संताने क्यों दुखी रहती हैं? माता-पिता के पूर्वजन्म से संचित कर्मों से बच्चों को अंश मिलता है। अब पापी उस बैंलेस को लुटा रहा है तो बच्चों के लिए बचाएगा ही क्या। इसी कारण उनकी संतानें कष्ट भोगती हैं।
भगवान के नाम का प्रभाव और उसका रहस्य जब तक हम नहीं समझेंगे तब तक किसी भी शिक्षा का कोई मोल नहीं।
आत्मबोध करें, दूसरों के ज्ञान और उपदेश को ग्रहण करें, कहीं ऐसा न हो कि किसी अभिमान में आप ऐसे जौहरी को ठुकरा रहे हों जो आपमें पारस देखता है।
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने रामनाम की महिमा कुछ प्रकार से बताई है,,,,,
*बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥
*महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥
भावार्थ:-जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥
*जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥
भावार्थ:-आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते हैं, जो उल्टा नाम ('मरा', 'मरा') जपकर पवित्र हो गए। श्री शिवजी के इस वचन को सुनकर कि एक राम-नाम सहस्र नाम के समान है, पार्वतीजी सदा अपने पति (श्री शिवजी) के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं॥
🕉️ राधास्वामी
!! जय श्री राम !!
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