✍️एक मालिक का प्यारा जब ध्यान पर बैठता तो उस समय पर कोई भी उससे मिलने नहीं आता था।एक बार की बात हैं उनकी कुटिया में उनके ध्यान के समय एक अतिथि आ गया उसको मालूम नहीं था कि यह उनके ध्यान का समय हैं..वह लगा बाहर से जोर-जोर से आवाज लगाने और दरवाज़ा खटखटाने पर वो मालिक के प्यार में इतना रमें थे कि उन्हें कोई ख्याल ही ना था कि कोई दरवाजे को खटखटा रहा हैं.
वह अतिथि जब दरवाजा खटखटाते हुए परेशान हो गये तो चिल्लाकर बोले अंदर कौन हैं..?"पर कोई उत्तर नहीं आया तो वह चुपचाप वहीँ प्रतीक्षा करने लग गया। शाम के समय जब वह बाहर निकले तो अतिथि ने उनके ध्यान की बहुत सराहना की और बाद में उलाहना भी दिया कि हमने आपको कई आवाजें दी आप ने हमारी एक भी आवाज का उत्तर नहीं दिया।इस पर मालिक के प्यारे फकीर ने मुस्कुराते हुए जबाव दिया कि ---"मैं तो कुटिया के भीतर ही था।" उस व्यक्ति ने कहा ---" क्या आपको हमारी आवाज सुनाई नहीं दी।" मालिक के प्यारे ने कहा ---"सुनाई दी थी...तुम्हारा सवाल था अंदर कौन हैं ?" यह सुन वह व्यक्ति रुआंसा हो बोला ---"आपने मेरी आवाज सुनकर भी दरवाजा खोलना संभव नहीं समझा ऐसा क्यो..?" मालिक के प्यारे ने कहा ---" तुम्हारे प्रश्न "अंदर कौन है" ..? का उत्तर जान्ने के लिए मुझे अंदर जाना पड़ा..सो उसी में देर हो गयी..!!"
तब तक वहाँ कई लोग जमा हो गए और मालिक का प्यारा मालिक की बातों में इतना मस्त हो गया कि इसे समय का पता ही नहीं चला।लेकिन थोड़ी देर में आंधी-तूफान आ गया।सब अपनी जान बचाने इधर-उधर भागने लगे वह अतिथि भी भागा...पर मालिक के प्यारे फकीर को देख वह वापिस वहीँ लौट आया।उसने मालिक के प्यारे से प्रश्न किया ---"इस तूफान में सब भागे पर आप नहीं..ऐसा क्यों..?"
मालिक के प्यारे ने कहा ---" जब सब बाहर की ओर भागे तब मैं भीतर की ओर चला गया, अपने ही ध्यान में वहाँ तूफान नहीं था परम शान्ति थी...अतिथि ने खुश होकर कहा ---" मुझे ध्यान का तरीका मिल गया। कहने का भाव हैं जो मालिक के ध्यान अर्थात् भजन सिमरन में दिन-रात रहता हैं उसे धूप-छाँव, सर्दी-गर्मी, आँधी-तूफान, सुख-दुःख,आदि थपेडों की कोई परवाह नहीं होती।वह हर हाल में खुश रहता हैं।
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