प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
एक कबूतर कबूतरनी का जोड़ा आकाश में विचरण कर रहा था,
तभी उनके ऊपर एक बाज उनको खाने के लिए उनके ऊपर उड़ने लगा।
तब वह दोनों जैसे-तैसे भागने लगे। तभी नीचे जमीन पर एक शिकारी भी इनको मारने के लिए घात लगाने लगा।
उस समय कबूतर भगवत नाम का स्मरण कर रहा था। और उसे कोई भय नही था, पर उसकी पत्नी को डर लग रहा था। वह सोच रही थी की की मेरा पति तो गुरु का जप कर रहा है, इसे कोई डर नही है। पर मेरी मृत्यु निश्चित है।
या तो हमें बाज मार डालेगा या वो नीचे शिकारी है वो मार देगा, अब हमारा क्या होगा हम तो मरने वाले हैं।
तभी प्रभु की कृपा से वहाँ जमीन पर एक सांप आ जाता है और वह सांप वहां खड़े शिकारी को ढस लेता है।
और उसने जो तीर अपने धनुष पर लगा रखा था वो हाथ से छूट कर उस बाज के लग जाता है।
और उनके पास दोनों तरफ से आई हुई मृत्यु टल जाती है।
इस पद से हमें ये शिक्षा मिली कि चाहे कितनी भी विपत्ति क्यों ना आ जाए प्रभु का स्मरण नही छोड़ना चाहिए,
श्री हरी हमें सारी विपत्तियों ये निकाल लेते हैं। बस उनका ही आसरा होना चाहिए।
सदैव जपिये :--
हरे कृष्ण हरे कृष्ण
कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे
!! जय श्री राम !!
कागज नैया प्रभु के सहारे!
चली जा रही है किनारे किनारे।।
!! जय श्री राम !!
हरि हरि बोल 🙏🙏🙌🙌
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