**राधास्वामी!! 01-12-2020- आज शाम सतसंग में पढे जाने वाले पाठ:-
(1) प्रेमी जागो रे तुम अब ही। मोह की नींद बिसार।।टेक।। भूल भरम में कब तक रहना। गफलत तज अब हो हुशियार।।-(राधास्वामी मेहर से सुरत चढावें। पहुँचे इक दिन निज दरबार।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ.सं.42)
(2) अजब जहाँ के बीच काल ने जाल बिछाया अपना है। अंग अंग से बंधे जीव सब छुटन भया अति कठिना है।। -(कोई मूरत मंदिर में अटके कहिं तीरथ में पचना है। कंहिं पुस्तक को होय डंडवते करम भरम कहिँ फँसना है।) (प्रेमबिलास-शब्द-100-पृ.सं.143,144)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
*राधास्वामी!! / 01- 12- 2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-( 72)
पीछे यह संकेत में वर्णन हो चुका है कि संसार में मालिक से एकता चाहने वालों के लिए दो ही मार्ग है। एक भक्ति- मार्ग और दूसरा ज्ञान- मार्ग पर संसार की अधिकांश जनता को भक्ति-मार्ग ही प्रिय है क्योंकि यह सहज, आनंदमय और करनी का है।
ज्ञान- मार्ग के बहुत से अनुयायी विश्वास करते हैं कि ईश्वर-प्राप्ति के लिए किसी प्रकार की भक्ति की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सांख्यशास्त्र की शिक्षा के अनुसार बुद्धि के नेतृत्व को ठीक मान कर सत्य और असत्य के निर्णय से वास्तविक भेद प्रकट किया जा सकता है। पर प्रतिदिन का अनुभव बतलाता है कि मानुषी बुद्धि की शक्ति इतनी परिमित है कि उससे ईश्वर प्राप्ति तो क्या, संसार का कार्य भी नहीं चल सकता।
दृष्टांत के लिए देखिए - हम लोग सब विश्वास करते हैं कि कल सूर्य उदय होगा परंतु यदि केवल बुद्धि पर भरोसा किया जाय तो एक क्षण के लिए भी हमारे चित्त में कल सूर्य के उदय होने का भाव ठहर नही सकता, क्योंकि पूछने पर बुद्धि तो यही कहेगी- " मैं क्या जानूँ, कल सूर्य उदय होगा या नहीं ।
मैं केवल इतना कह सकती हूँ कि जब से सृष्टि हुई है तब से आज तक प्रतिदिन सूर्य उदय होता रहा है । कल कि मुझे कोई खबर नहीं है"। और यह सूचित करने की आवश्यकता नहीं है कि यदि आगे चल कर सूर्य के उदय होने का भरोसा न रहे तो संसार के सब कार्य आज ही बंद हो जायँ। जोकि मनुष्यमात्र को फिर सूर्य के उदय होने और कल और परसों आने का दृढ़ विश्वास है इसलिए हर कोई संतुष्ट होकर अपने काम-काज में लगा है और संसार का व्यापार चल रहा है।
पर यह दृढ़ विश्वास कहाँ से आया? यह श्रद्धा का परिणाम है । जहाँ बुद्धि थक जाती है वहाँ श्रद्धा काम देती है । अब एक और दृष्टांत लीजिये। स्कूलों और कॉलेजों में नाना प्रकार की विद्या पढ़ाई जाती है और विद्यार्थी चुपचाप हर एक बात को सत्य मानकर अपने चित्त में बिठाते जाते हैं ।
यदि वे केबल अपनी बुद्धि से काम ले तो शिक्षकों के लिए शिक्षा देना और विद्यार्थियों के लिए शिक्षा लेना असंभव हो जाय। जैसे, यदि किसी ग्रामीण पाठशाला का विद्यार्थी ,यह पढ़ाये जाने पर कि पृथ्वी गोल है, प्रमाण माँगे और शिक्षक उत्तर में जहाज के पहले पाल और एक-एक करके दूसरे भागों के दिखाई देने का जगत प्रसिद्ध दृष्टांत दे तो उसकी बुद्धि, जबकि उसने न कभी जहाज देखा है न समुंद्र, इन प्रमाण से क्या समझ सकती है? विद्यार्थी शिक्षक के कहने पर विश्वास करके बात को सत्य मान लेता है ।
उधर शिक्षक का दृढ़ विश्वास है कि जो पुस्तक वह पढ़ा रहा है भूगोल-विद्या के एक निपुण पंडित की लिखी हुई है और जो कुछ उसने लिखा है माननीय है । और पुस्तक का लिखने वाला संतुष्ट है कि उसने अपना ज्ञान विलायत कि उस भौगोलिक समिति की पुस्तकों से प्राप्त किया है जिसके कर्मचारी कोमल और बहुमूल्य यंत्रों और बारंबार के प्रयोगों और परीक्षाओं के द्वारा ज्ञात और निश्चिंत तत्वों ही को पुस्तकों में लिखते हैं ।
और उस समिति के सदस्यों को भी विश्वास है कि जो कुछ उन्होंने देखा और जाना है ऐसा सत्य ज्ञान है जो भविष्य में स्थाई रहेगा ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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