Friday, December 4, 2020

रोजाना वाक्यात 05/12

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात -12 मार्च 1933 - रविवार-


आज होली का दिन है । दयालबाग होली खेलने के लिए तैयार हैं। समानता व बंधुत्व पैदा करने के लिए अत्यधिक लाभकारी है । बशर्ते कि लोग तहजीब व शिष्टता के नियमों को दृष्टिगत रखें ।11:00 बजे भंडारा हुआ जिसमें 3 हजार भाइ व बहने शरीक हुई। खाने के लिए रोटी ,कढ़ी, चावल, आलू, पापड़ और हलवा परोसा गया। अचानक मिसेज व्हीलर भी आ गई और उन्होंने कुल मजमा की फोटो उतार ली। 2:00 बजे होली का त्यौहार मनाया गया।।                                   लाहौर के भगत ईश्वरदास,एम० ए० तशरीफ लाये है। चार पाँच बरस का वादा आज पूरा हुआ । तीसरे पहर हमसे बात हो रही थी और वह दयालबाग में यज्ञ कराने के लिए जोर दे रहे थे। इतने में राजा बहादुर कुशलपाल सिंह साहब व ग्वालियर की होम मेंबर साहब की पार्टी मिलने आई।  मैंने राजा बहादुर साहब का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया । आपके दयालबाग पर जबरदस्त एहसानाता है जो मरते दम तक भूले नहीं जा सकते।                                                          रात के सत्संग में लायलपुर कॉलेज के प्रोफेसर साहब भी शरीक हुए और आत्मा, परमात्मा, सतगुरु, मजहब और प्रार्थना के अर्थ पर रोशनी डाली गई। इंसान का आत्मा व परमात्मा या मालिक एक ही तत्व है। और आत्मा व परमात्मा में अंश अंशी यानी जुज्ब व कुल व्याकुल का रिश्ता कायम है । साधारण मनुष्य का आत्मा सोया हुआ है सतगुरु का आत्मा बेदार है। और भी साधारण मनुष्य का आत्मा शरीर व मन के पदों में लिपटा हुआ है। जैसे इंसान जतन करके अपने शरीर व मन की कुव्वतों को जगाता है ऐसे ही आत्मा की शक्ति जगानी भी उसका फर्ज है। और जैसे रोशन आग से लकड़ी व कोयला के अंदर छिपी हुई आग पकड़ कर ले जाती है ऐसे ही बेदार आत्मा जाने सतगुरु के प्रसाद से साधारण मनुष्य अपने सोये हुए आत्मा को भी बेदार कर सकता है। आत्मा बेदार करके उसे हमेशा के लिए शरीर व मन के पर्दों से छुटकारा दिलाने के लिए साधन करना पड़ता है। यह छुटकारा तभी हासिल हो सकता है जब आत्मा का अपने कुल  से मेल हो जाये। इसलिए उस कुल की याद और भक्ति की जाती है। और उस कुल तक पहुंचने के रास्ते को मजहब कहते हैं।                           🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 शरण आश्रम का सपूत】 कल से आगे-[ तीसरा दृश्य]-( शरण- आश्रम में लड़के लड़कियाँ पढ़ रहे हैं -मास्टर पढ़ाता है - डायरेक्टर साहब मुहक्मा तालीम मय मेम साहिबा व इंस्पेक्टर जेनरल साहब यतीमखानाजात दाखिल होते हैं ) डाइरेक्टर- मास्टर साहब! क्या मजमून पढ़ा रहे हो?  मास्टर साहब- जनाब यह घंटा परमार्थी शिक्षा का है। डायरेक्टर- क्या यह लड़के परमार्थ के मजमून में दिलचस्पी लेते हैं?  मास्टर -जी हाँ! खासी दिलचस्पी लेते हैं। इन्सपेक्टर जनरल- कुछ समझते भी है?  मास्टर- जरूर अगर समझें नहीं तो दिलचस्पी कैसे पैदा हो सकती है। मुझे यहाँ आश्रम में काम करते 7 वर्ष हुए हैं -मेरा तजुर्बा है कि जब तक बच्चों के कोई बात काफी तौर समझ में नहीं आ जाती तब तक उन्हें उसमें कोई दिलचस्पी पैदा नहीं होती।                                                   डायरेक्टर - मास्टर साहब! आपका ख्याल दुरुस्त है क्या मैं लड़कों से एक दो सवाल पूछ सकता हूँ।मास्टर- जरूर पूछिये- मैं और लड़के इस मेहरबानी के लिए बहुत ममनून होंगे । डायरेक्टर-( लड़कों से) लोग कहते हैं कि खुदा है और जो उसकी याद करता है वह उसकी मदद करता है। आप लोगों का क्या ख्याल है?  प्रेमबिहारी -मालिक जरूर है और वह अपने सब बच्चों की मदद करता है।  जो शख्स अपनी तवज्जुह मालिक के चरणों में जोड़ता है वह मालिक की उस दया का, जो उस पर नाजिल होती है , जिंदगी में लुत्फ लेता है क्योंकि उसको मालिक की मदद का हाथ साफ नजर आई पड़ता है -और जो शख्स मालिक के विमुख रहता है वह उस लुत्फ से मेहरूम रहता है - लेकिन मालिक दया उस पर भी फरमाता है।।                                         इन्सपेक्टर जनरल -बाज लोग कहते हैं कि खुदा अवतार धारण करता है यानी इंसानी जिस्म इख्तियार करता है- आप लोग क्या समझते हैं?  शोभावन्ती- हम भी यही मानते हैं कि मालिक अवतार धारण कर सकता है और करता है। क्रमशः            🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे-(२) कषाय:- इससे यह मतलब है कि पिछले जन्मों के ख्याल भजन के वक्त उठे कि जिनको अभ्यासी ने इस जन्म में ना देखा है न सुना है ।                                     यह  ख्याल  गुनावन के तौर पर पैदा होते हैं और बगैर थोड़ी देर अपना भोग दिये दूर नहीं होते । पर जो अभ्यासी बिरह और प्रेम अंग लेकर भजन करता है या गुरुस्वरूप को अगुआ करके अभ्यास करता है, उसको यह विघ्न कम सतावेंगे । इस वास्ते मुनासिब है कि जब ऐसे ख्याल सन्मुख आवे,  उस वक्त भजन के साथ ध्यान शामिल करें। तब कुछ अर्से में यह ख्याल दूर हो जावेंगे।।                              (३) रसास्वाद:- इससे यह मतलब है कि अयाशी भजन के वक्त थोड़ा रस पाकर मगन और संतुष्ट हो जावे और फिर ज्यादा अभ्यास में उससे न बैठा जावे या किसी कदर बेखबरी आ जावे।                                    इसके दूर करने का जतन यह है कि जब ऐसी हालत होवे, तो 5 मिनट के वास्ते भजन छोड़ कर हाथ पैर फैला कर बैठ जावे या उठ कर 10,20 कदम टहले तो आहिस्ता आहिस्ता ये विघ्न दूर हो जावेगा। क्रमशः                                🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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