Saturday, December 5, 2020

दयालबाग़ सतसंग 05/12 शाम

 **राधास्वामी!! 05-12-2020-आज शाम सतसंग में पढे गये  पाठ:-                                                          


    (1) हेरी तुम कौन हो री। जग बिच भरमनहारी।।टेक।। जीव कल्यान की सुद्ध न लीनी। दिध दिश मोह जाल बिस्तारी।।-(राधास्वामी चरन धार लो मन में। मेहर से भौजल पार उतारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-2-पृ.सं.45,46) 

                                     

(2) भाई तूने यह क्या जुल्म गुजारा। भक्ति का किया अहंकारा।।टेक।। दीन गरीबी मत इस जुग का। सतगुरु खोल पुकारा। तू सतगुरु का सेवक कैसा। जो उन बचन न धारा।।-(अब भी चेत करो मेरे भाई। बिगडी बात सँवारा। राधास्वामी दयाल के मानो बचना सहज होय निरबारा।।) (प्रेमबिलास-शब्द-102-पृ.सं.148,149)              

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                                    सतसंग के बाद स्पेशल(शौक) सतसंग में पढे गये पाठ-  

                                                    

  (1) चली सुरत अब गगन गली री। मिली जाय अब पिय से अली री।।-(दीनदयाल दयानिधि स्वामी। काढ लिया मोहि अंतरजामी।।) (सारबचन-शब्द- तीसरा-पृ.सं.706)                                     

(2) है कोई ऐसी सुरत शिरोमन। अटल सुहाग जिन पाना है।।टेक।।-(परस चरन प्रीतम राधास्वामी ।बहुरी जनम नहिं पाना है।।) (प्रेमबिलास-शब्द-62-पृ.सं.80-81)      

                  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌


 **राधास्वामी!!                                                  05- 12 -2020 -आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे --(76)  इस पर आप कह सकते हैं कि संसार में ऐसे बहुत से नास्तिक लोग मिलते हैं जो मालिक के अस्तित्व में किंचित मात्र विश्वास नहीं रखते तथापि वह अत्यंत भद्र, सत्यव्रत तथा विश्वसनीय है । आपका यह कहना अनुचित नहीं , किंतु यह तो विचार कीजिये कि इन सज्जनों को विद्या- विनय -संपन्न होने के लिए कितना अवसर मिला?  उनकी मानसिक शक्तियाँ कितनी अधिक जागृत है?  यहां वर्णन उस जनसाधारण का हुआ है जिससे संसार परिपूर्ण है।  ये मुट्ठीभर मनुष्य, जिनका आप नाम लेते हैं, इने गिने लोगों में से हैं । इने गिने लोगों में से हैं। उच्च कोटि की शिक्षा की सहायता से आँख खुल जाने पर मनुष्य अपने उत्तरदायित्वों से अभिज्ञ हो जाता है और समझ कर बर्ताव करता है ।और मालिक के भय तथा विनय के स्थान में समाज का भय और उच्च कोटि की नीति की चाँप उसके मन को सन्मार्ग पर चलाते हैं। पर ऐसी शिक्षा प्राप्त करने और उच्च कोटि की आचारिक मनोवृति जगाने का अवसर हर किसी को तो नहीं मिल सकता।?                .                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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