**राधास्वामी!! 26-03-2021-आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु की कर हर दम पूजा। गुरु समान कोई देव न दूजा।।-
(गुरु रुप धरा राधास्वामी। गुरु से बड नहीं अनामी।।)
(सारबचन-शब्द-2-पृ.सं.322,323-,कानपुर मेन ब्राँच 189 उपस्थिति)
(2) गुरु प्यारे दया करो आज नई।।टेक।।
मन और सुरत चढाओ घट में। निज सरुप का दरस दई।।
-(राधास्वामी दया करो अब पूरी। मैं गरीब तुम सरन पई।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-7-पृ.सं.15) सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन । अहा हा हा ओहो हो हो।।
(4) आर्ट एंड कल्चर,लैग्वेज,म्युजिक सैंटर का सांसकृतिक कार्यक्रम।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1-
कल से आगे
-( 53 )- 21 मई 1941
को शाम के सत्संग में 'सत्संग के उपदेश' भाग 1 से बचन नंबर 29, 'तीन कारआमद बातें' पढ़ा गया।
बचन समाप्त होने के बाद हुजूर ने फरमाया -
जो तीन उपयोगी बातें इस बचन में बयान की गई है यह सुनने में भले ही मामूली मालूम हो परंतु यह बड़ी भावपूर्ण। अच्छे और बुरे सत्संगी की पहचान उनसे हो सकती है। इनमें दरअसल वे ढंग बयान किये गए हैं जिन पर हर सत्संगी को चलना चाहिए।
यदि इन बातों को आपने गौर से सुना होगा तो यह नोट किया होगा कि इनमें सत्संगी को एक उच्च कोटि का जीवन व्यतीत करने के लिए यह कहीं नहीं कहा गया कि उसे बचन सुनने का शौक हो, उन्हें उसे सुनने में रस और आनंद आवे या पोथी का पाठ करें या इसी तरह की कोई और भी कार्रवाई करें । इन हिदायतो में तो अंतरी परिवर्तन करने पर जोर दिया गया है।
इसलिये हम लोगों के लिए यह ढंग अत्यंत आवश्यक है। उचित है कि इस बचन को दोबारा पढ़ा जाय जिससे हर सत्संगी उसे समझ सके। वह बचन दुबारा पढा गया।
फरमाया -आप शाहबान में जिनको यह शिकायत है कि उनका सुमिरन, ध्यान नहीं बनता उनके लिए इस बचन में लाभदायक हिदायतें दर्ज है। इसमें पहले यह बतलाया गया है कि हर सत्संगी को मेहनत करके हक व हलाल की रोजी पैदा करना और उसमें निर्वाह करना चाहिए। ख्याल कीजिए कि जो शख्स खुद मेहनत करके पसीना बहावे और दूसरों को भी अपने साथ मेहनत से काम करा कर उसका पसीना निकलवाये वह इस बचनं के मुताबिक समझा जावेगा।
क्रमश:
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:
- सात महर्षि, प्राचीन चार( कुमार) और मनु, जिनसे यह पैदा हुई है, मेरे भाव (जौहर) और मन से पैदा हुए। जो शख्स मेरी इस कुदरत के और योगबल के तत्वों को जान लेता है वह निस्संदेह जुंबिश न खाने वाले (अटूट) योग से मेरे साथ जुड़ जाता है। मैं सबका पैदा करने वाला हूँ और सब सृष्टि मुझसे प्रकट होती है।
ये ख्यालात लेकर समझदार लोग प्रेम में भरकर मेरी पूजा करते हैं। मुझ में चित्त और प्राण जोड़े हुए, परस्पर (एक दूसरे का) प्रेम जगाते हुए और हमेशा मेरे गुण गाते हुए वे सदा प्रसन्न रहते हैं और आनंद मनाते हैं ।
ऐसे सदायुक्त( हमेशा मुझसे जुड़े हुए) प्रेम से भजन करने वालों को मैं बुद्धियोग (बुद्धि के निर्मल व स्थिर होने से तत्वज्ञान की प्राप्ति की योग्यता) प्रदान करता हूँ जिसके द्वारा यह मुझे प्राप्त हो जाते हैं।
【10】 क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुज़ूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे-( ४ )-अंतरी सुमिरन और ध्यान वालों के साथ बर्ताव:- यह लोग अंतर में नाभि या हृदय के स्थान पर सुमिरन और ध्यान करते हैं , या नाम की चोट लगाते हैं, या नाम की धुन नीचे से उठाकर दोनों आँखों या दोनों भवों के मध्य तक पहुँचाते हैं, या दायें बायें सुर के पूरक(साँस अंदर ले जाना।) रेचक(साँस बाहर निकालना) करके गायत्री मंत्र या दूसरे नामों का कुंभक( सांस अंदर रोक कर रखना।) के साथ सुमिरन करते हैं। मगर इस अभ्यास में ठहराव दो तीन या चार मिनट से ज्यादा नहीं होता, और जो कि ध्यान करते हैं, उसमें भी स्वरूप या स्थान का भेद सही सही नहीं जानते। इस वास्ते इन सबका अभ्यास इन्ही स्थानों में पिंड के अंदर खत्म हो जाता है। यह सब लोग अपने तई अंतर्मुख अभ्यासी समझते हैं और इस कदर सही है कि इनके अभ्यास से सफाई और कुछ रस अंतरी हासिल होता है, पर संत मत में यह भी बाहरमुखी शुमार किये जाते हैं, क्योंकि इनका अभ्यास नीचे के घाट यानी 6 चक्रों की हद में है। इन लोगों से भी राधास्वामी मत के अभ्यासियों को प्रमार्थी मेल मिलाप रखना जरूरी नहीं है। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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