निष्काम दान की महत्ता
प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
चिड़ी चोंच भर ले गई,
नदी न घटयो नीर।
दान दिये धन न घटे,
कह गये दास कबीर !
सुदूर देश में एक महिला संत हुई है -राबिआ ! बचपन काफी मुश्किलों में बीता, पर परमात्मा की अपार अनुकम्पा से जवानी की दहलीज पर आते-आते संत बन गई ।
एक नगर के बाहर कुटिया बना कर के तो भजन-पाठ में जीवन बिताया करती है ! बहुत ख्याति थी राबिआ की कि परमात्मा की परम अनुरक्ता है। अतः लोग दूर दूर से आ कर के तो उस से अपनी समस्याओं का समाधान करवाया करते है ! एक दफा दो फकीर राबिआ की कुटिया पर पधारे और बोले:-" राबिआ बहुत भूखे है, दो तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया है । अगर हो सके तो हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कीजियेगा !
"ठीक है महाराज" यह कह कर के तो राबिआ बर्तनों में भोजन तलाशना शुरू कर देती है ! पर यह क्या केवल दो ही रोटियाँ घर में है !
इतने में ही एक भिखारी कुटिया के बाहर से आवाज लगता है :-- -"भूखा हूँ कोई खाने को दो!"
राबिआ वे दोनों ही रोटिया उस भिखारी को दे देती है !
फकीर सब नजारा अपनी आँखों से देख रहे है। राबिआ के इस व्यवहार से काफी अचंभित हुए।
इस से पहले कि वे राबिआ को कुछ कहें, छोटी सी एक लड़की हाथों में पोटली लिये दौड़ी दौड़ी राबिआ की कुटिया में आती है ।
कहती है :-"ये अम्मा ने भेजी है। "
राबिआ उस पोटली को खोलती है , इसमें तो रोटिया है। उन्हें गिनती है पर कुछ सोच कर के तो पोटली बंद कर उसी लड़की के हाथों ही उसे वापिस भिजवा देती है ।
फकीर फटी आँखों से राबिआ की इस अशिष्टता को देख रहे थे।आपस में बुदबुदा रहे है- "लगता है कि हमें भोजन ही नहीं करवाना चाहती ! " इस से पहले कि वो राबिआ को क्रोधपूर्वक कुछ कहे , वह लड़की पोटली लिये पुनः कुटिया में आती है । "अम्मा ने भेजी है ! "
राबिआ फिर से उन्हें गिनती है ठीक है ! उन रोटियों को फकीरों की सेवा में परोसती है।
भोजन कीजिये महाराज !
राबिआ भोजन तो हम बाद में करेंगे, पहले हमें जो कुछ भी हुआ सब समझाओ !
ठीक है महाराज । जब मैंने देखा कि घर में केवल दो ही रोटिया है तो मैं सोच में पड़ गई कि इन से क्या होगा !
एक -दो. रोटी अगर मैं आप दोनों को ही दे दू तो उस से पेट क्या भरेगा ? अगर दोनों रोटिया आप में से किसी एक को ही दे दू तो दूसरा नाराज हो जायेगा ! इतने में भिखारी आ गया। मैंने सोचा कम से कम इस का तो पेट भरा जा सकता है ! सो परमात्मा का नाम ले कर के तो वे दोनों रोटिया मैंने उसे दे दी। साथ ही साथ परमात्मा से प्रार्थना भी की कि -" हे देवाधिदेव ! सुना है कि तुम दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करते हो !सो आज मुझे तुरंत ही इस दान का फल प्रदान कीजियेगा ! वह लड़की पहली बार जब रोटियां ले कर आई तो गिनने पर पाया कि केवल 18 ही रोटिया है, जब कि दो का दस गुणा तो बीस होता है ! मैंने सोचा क्या परमात्मा के नियत किये विधान में भी कोई गलती हो सकती है ?अवश्य ही उस महिला से गलती लग गई होगी, सो पोटली ज्यों कि त्यों वापिस कर दी ! अब क़ी बार जब पुनः पोटली में गिनती क़ी है तो पूरी बीस क़ी बीस रोटिया ही है ! परमात्मा क़ी शुक्रगुजार हूँ क़ि उसने मेरी लाज रख ली क़ि जो द्वार पर आये आप लोगो को भूखा नहीं जाने दिया !
धन्य हो राबिया तुम और तुम्हारी ईश्वरभक्ति और आस्था !
साधकजनों मानवता की भलाई के कार्यो में दिल खोल कर दान दिया कीजियेगा ! ये परमात्मा का विधान है क़ि वह दान देने वाले को कभी किसी का मोहताज नहीं रहने देता ! संत महात्मा फ़रमाते है क़ि वह दिये दान का दस गुणा तो कम से कम अवश्य ही वापिस किया करता है ! नि:स्वार्थ भाव से दिये दान को कभी-कभी वह हजारों-लाखों गुणा कर के भी लौटाया करता है गर उसकी रजा हुई तो !
अतः नि:स्वार्थ भाव से जन-कल्याण के कार्यो में खूब दान दीजियेगा। वापिस मिलेगा यह सोच कर नहीं ! यह तो उस पर निर्भर है क़ि वह किस कर्म का फल कब और किस काल दें !
बनवास में द्रौपदी की भी कथा है कि जब थाली के एक चावल कण से श्री कृष्ण कृपा से साधुओं को भोजन कराया।
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