**राधास्वामी!! 24-03-2021-आज शाम सतँसग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु का सँग मोहि मिलिया कोई बड भाग जागा है।
जगत का सँग मन तजिया चरन में गुरु के लागा है।।
-(चरन सेवक मेरे गुरु के सभी इक दिन यह गति पाव़े।
परम गचरच राधास्वामी दाता उन्ही यह भेद भाखा है।।)
(प्रेमबिलास-शब्द-48-पृ.सं.60,61:-
करनाल ब्राँच-591 उपस्थिति!)
(2) राधास्वामी दाता दीन दयाला। दास दासी को लेव सम्हालो।।
बिरह प्रेम तब जाय छिपाई। जग कारज का रुप धराई।।-
(गहरी दया करो मेरे प्यारे। प्रेम के खोल देव भंडारे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.138)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसँग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।। (प्रे. भा. मेलारामजी!)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!! 24- 03- 2021-
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
-कल से आगे :-(194)-
छांदोग्य उपनिषद 5/10 में सत्पुरुषों के मरने के अनन्तर ऊँचे स्थानों में जाने के मार्ग (देवयान) का वर्णन आया है। लिखा है:-" वह अर्चिं(सूर्य की किरण) को प्राप्त होते हैं, अर्चिं से दिन को, दिन से शुक्लपक्ष को, शुक्लपक्ष से उन छह महीनों को जिनमें सूर्य उत्तर को जाता है (उत्तरायण )।१।
महीनों से वर्ष को, वर्ष से सूर्य को ,सूर्य से चंद्रमा को, चंद्रमा से बिजली (के स्थानों) को । वहाँ एक पुरुष है जो अमानव है (मानुषी सृष्टि का नहीं) वह इनको ब्रह्म (सबल ब्राह्म= हिरण्यगर्भ) को पहुँचा देता है"।
इस विषय पर वेदांतदर्शन अध्याय 4, पाद 3, सूत्र 7 के प्रकरण में यह प्रश्न उठाकर "आया वह अमानव पुरुष कार्य यानी अपर ब्रह्म के उपासको को ब्रह्मलोक में ले जाता है या परब्रह्म के उपासको को " बादरि आचार्य का मत बतलाया गया है-" कार्य के उपासको ही को परब्रह्म में ले जाता है, क्योंकि इसकी गति बन सकती है। कहीं जाकर प्राप्ति अपर ब्रह्म की हो सकती है,, न की परब्रह्म की। क्योंकि परब्रह्म सर्वत एक स्वरूप है।
हाँ अपरब्रह्म अपरर्हाय रचना के साथ प्रकाशित होता है, इसलिए उसके प्राप्ति के लिए स्थानविशेष में जाना बन सकता है"( देखो भाष्यों पंडित राजाराम साहब कृत पृष्ठ 593)
क्रमशः🙏🏻 यथार्थ प्रकाश🙏🏻
-यथार्थ भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**
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